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राजस्थान : मिट्टी से भविष्य की फसल उगाते युवा
पिछले कई दशकों में युवा गांव में खेती-किसानी की जगह शहरी नौकरियों, मेट्रो-ज़िंदगी और शहरों की चमक-दमक की तरफ खिंचे चले आए हैं। लेकिन अब एक बार फिर से बदलाव नजर आने लगा है। कुछ युवा वापस गाँव और खेती की तरफ लौट रहे हैं या कम-से-कम खेती को एक सम्मानजनक, तकनीकी और लाभदायक करियर विकल्प के रूप में देखते हुए लाखों की आमदनी कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में बिजली दरों में वृद्धि : अमीरों को राहत लेकिन किसानों और गरीबों पर बढ़ेगा भार
छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत नियामक आयोग ने बिजली की दरों में भारी वृद्धि की घोषणा की है। 100 यूनिट तक उपभोग करने वाले लोगों पर, जिनमें से एकल बत्ती कनेक्शन धारी और गरीबी रेखा के नीचे और कम आय वर्ग के लोग शामिल हैं, उन पर 20 पैसे प्रति यूनिट का अतिरिक्त भार डाला गया है। जबकि कृषि क्षेत्र के लिए प्रति यूनिट 50 पैसे वृद्धि की गई है।
टैरिफ युद्ध : क्या हम तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं?
डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल को अमेरिका की मुक्ति का दिन घोषित किया है। इसी दिन ट्रंप ने पूरी दुनिया के खिलाफ टैरिफ युद्ध छेड़ा है,जो अब तक के बनाए तमाम पूंजीवादी नियमों और बंधनों को तोड़कर केवल अमेरिकी प्रभुत्व और नियंत्रण की इच्छा से संचालित होता है। यह प्रभुत्व और नियंत्रण की इच्छा न्याय की किसी भी भावना और अवधारणा को कुचलकर आगे बढ़ना चाहती है।
राजस्थान के लोहार समुदाय के अस्तित्व और संघर्ष की कहानी : जब बर्तन बिकेंगे, तब खाने का इंतजाम होगा
लोहे के बर्तन बनाना लोहार समुदाय के लिए केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि उनकी पहचान और अस्तित्व का प्रतीक है। लेकिन बदलते समय के साथ उनके लिए रोज़ी रोटी चलाना मुश्किल होता जा रहा है। नयी तकनीक, सस्ते विकल्प और बदलते उपभोक्ता व्यवहार ने उनके पारंपरिक काम को संकट में डाल दिया है।
दाल देख और दाल का पानी देख!
नेफेड और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता फेडरेशन (एनसीसीसीसी) बता रहा है कि सरकार के गोदाम में केवल 14.5 लाख टन दाल ही बची है, जो कि न्यूनतम आवश्यकता का केवल 40% ही है। इसमें तुअर दाल 35000 टन, उड़द 9000 टन, चना दाल 97000 टन ही है, जिसे लोग खाने में सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। इन दालों की जगह दूसरी दाल के इस्तेमाल के बारे में सोचें, तो मसूर दाल का स्टॉक भी केवल पांच लाख टन का ही बचा है। भारत के संभावित दाल संकट पर संजय पराते।
फेयर डिजिटल फाइनेंस- कठिन है राह
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े भी यह दर्शाते हैं कि कोविड-19 ने लोगों को डिजिटल लेनदेन के लिए बाध्य किया और इस कारण साइबर अपराधियों की बन आई। वर्ष 2019 में ऑनलाइन फ्रॉड के लगभग 2000 मामले दर्ज हुए थे जो 2020 में बढ़कर चार हजार की संख्या को पार कर गए।
छुट्टा पशुओं से खेती की बर्बादी का विकल्प क्या है?
गौशाला के संचालन में होने वाले अन्य व्यय जैसे सुरक्षा, पानी, छाया, चिकित्सा, टीकाकरण आदि पर होने वाले व्यय को देखा जाय तो न्यूनतम 100 प्रतिदिन प्रति पशु से कम खर्च नही होगा, ऐसे में किसी भी गौशाला को सरकारी सहायता से लम्बे समय तक संचालित कर पाना संभव और व्यवहारिक नही है। एक-दो प्रतिष्ठित और स्वनामधन्य गौशालाओं जिनका संचालन किसी बड़ी संस्था या समूह द्वारा किया जा रहा हो को कुछ आर्थिक सहयोग समाज से प्राप्त हो जाता है किन्तु ग्राम स्तर पर संचालित गौशाला के लिए यह अकल्पनीय बात है कि यहाँ कोई आर्थिक मदद समाज से सतत रूप में मिलेगी।
स्वास्थ्य बजट में कोरोना के भयानक दौर को क्या भूल गई सरकार?
मध्याह्न भोजन कार्यक्रम अर्थात प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण के बजट में 11 प्रतिशत की कटौती की गई है और अब यह 2021-22 के 11500 करोड़ रुपए से घटकर 10233.75 करोड़ रुपए रह गया है। कोविड-19 के कारण मध्याह्न भोजन कार्यक्रम अस्तव्यस्त हो गया है। चर्चा तो यह हो रही थी कि इसमें सुबह का नाश्ता भी शामिल किया जाए। 5000 करोड़ का अतिरिक्त बजट अपेक्षित था। किंतु सरकार ने उलटे कटौती कर दी।
बजट 2022 – गांव और किसान की खटकने वाली अनदेखी
बजट में सरकार कहीं भी गरीब, कमजोर और जरूरतमंद के साथ खड़ी दिखाई नहीं देती। मनरेगा के लिए वित्तीय वर्ष 2022-23 में 73000 करोड़ का प्रावधान किया गया है जो मनरेगा के जानकारों की दृष्टि में निराशाजनक है। विगत वित्तीय वर्ष के संशोधित आकलन की तुलना में वर्तमान बजट में मनरेगा हेतु आबंटित राशि में 25.51 प्रतिशत की कटौती की गई है।
विनिवेश में प्राथमिकता मिले गैर-हिंदू उद्यमियों को
विनिवेश की हिस्ट्री में एयर इंडिया का टाटा के हाथों में जाना एक नयी और सुखद घटना थी, इसलिए इस पर लोगों की राय जानने के लिए मैंने एक बड़े अख़बार में इससे जुड़ी खबर की फोटो की खींचकर उसके साथ फेसबुक पर इस शीर्षक- अपने ईष्ट से प्रार्थना करें कि देश हिंदुओं के बजाय गैर- हिंदू व्यवसायियों के हाथ में बिके- के साथ निम्न पोस्ट डाल दिया।
यह बजट संघर्षरत किसानों से सरकार के बदले की कार्यवाही है
अफलातून -
राज्य की सभी विधानसभा क्षेत्रों में किसान संगठनों की साझा बैठकें, प्रेस वार्ता, रैलियां, सभाएं और घर-घर एस.के.एम द्वारा जारी पर्चा के व्यापक कार्यक्रम होंगे। मिशन यूपी के इस नए चरण की शुरूआत 3 फरवरी को प्रेस वार्ता के साथ होगी। बैठक के दौरान बजट पर अनौपचारिक चर्चा के दौरान किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने बजट को संघर्षरत किसानों से सरकार का बदला करार दिया। बजट एमएसपी और किसानों की आय दोगुनी करने के सरकार के खोखले वादों को उजागर करता है।

