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इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना सूचना के अधिकार का उल्लंघन : सुप्रीम कोर्ट

सीजेआई ने कहा कि हमारी राय है कि कम से कम प्रतिबंधात्मक साधनों से परीक्षण संतुष्ट नहीं होता है। उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड के अलावा दूसरे साधन भी हैं। इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण और चुनावी ट्रस्ट के दूसरे माध्यमों से योगदान किया जा सकता है। इस प्रकार काले धन पर अंकुश लगाना इलेक्टोरल बॉन्ड का आधार नहीं है।

इलेक्टोरल बॉन्ड अब गुप्त नहीं रहेगा, अब पब्लिक को ये जानने का अधिकार होगा कि किसने, किस पार्टी को कितना चंदा दिया है। बॉन्ड पर अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की खंड पीठ ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।

इलेक्टोरल बॉन्ड पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि निजता के मौलिक अधिकार में एक नागरिक की राजनीतिक गोपनीयता और राजनीतिक संबद्धता का अधिकार शामिल है। किसी नागरिक की राजनीतिक संबद्धता के बारे में जानकारी से किसी नागरिक पर अंकुश लगाया जा सकता है या उसे ट्रोल किया जा सकता है। इसका उपयोग मतदाता निगरानी के माध्यम से मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने के लिए किया जा सकता है। राजनीतिक दलों को वित्तीय योगदान आम तौर पर पार्टी के समर्थन के लिए या बदले में दिया जाता है। अब तक कानून निगमों और व्यक्तियों द्वारा इसकी अनुमति देता है। जब कानून राजनीतिक समर्थन दिखाने वाले राजनीतिक योगदान की अनुमति देता है तो उनकी रक्षा करना संविधान का कर्तव्य है। कुछ योगदान गैर-प्रमुख पार्टियों के लिए भी होता है और यह आम तौर पर समर्थन दिखाने के लिए होता है।

सीजेआई ने कहा कि हमारी राय है कि कम से कम प्रतिबंधात्मक साधनों से परीक्षण संतुष्ट नहीं होता है। उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड के अलावा दूसरे साधन भी हैं। इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण और चुनावी ट्रस्ट के दूसरे माध्यमों से योगदान किया जा सकता है। इस प्रकार काले धन पर अंकुश लगाना इलेक्टोरल बॉन्ड का आधार नहीं है।

इलेक्टोरल बॉन्ड की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए चार याचिकाएं दायर की गई थीं जिनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर, सीपीआई (एम) और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से दायर याचिकाएं भी शामिल हैं। कोर्ट ने 2 नवंबर, 2023 को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सरकार ने इस योजना की घोषणा 2017 के केंद्रीय बजट भाषण में की थी जब स्वर्गीय अरुण जेटली वित्त मंत्री थे। इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी, 2018 को कानूनन लागू कर दिया था।

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?

इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये राजनीतिक दलों को चंदा दिया जाता है। ये एक तरह की रसीद होती है जिसमें चंदा देने वाले का नाम नहीं होता है। इस बॉन्ड को खरीदकर आप जिस पार्टी को चंदा देना चाहते हैं, उसका नाम लिख सकते हैं और इस बॉन्ड का पैसा उस राजनीतिक दल को मिल जाता है। इस बॉन्ड पर कोई रिटर्न नहीं मिलता है। इतना ही नहीं आप इस बॉन्ड को बैंक को वापस कर अपना पैसा वापस भी ले सकते हैं लेकिन उसकी एक समय सीमा तय होती है। ये बॉन्ड जब बैंक जारी करता है तो इसको 15 दिनों में वापस लिया जा सकता है।

बॉन्ड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में बेचे जाते हैं और भारतीय स्टेट बैंक इन्हें बेचने के लिए अधिकृत एकमात्र बैंक है। दानकर्ता बॉन्ड खरीद सकते हैं और बाद में किसी राजनीतिक दल को दान कर सकते हैं जो 15 दिनों के भीतर अपने सत्यापित खाते के जरिये बॉन्ड को कैश करा सकता है। किसी भी व्यक्ति या कंपनी द्वारा बॉन्ड खरीदने की कोई कोई सीमा नहीं है। अगर किसी पार्टी ने 15 दिनों के भीतर कोई बॉन्ड कैश नहीं कराया है तो एसबीआई इसे प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा कर देता है।

इसी वजह से इस स्कीम को पारदर्शिता कार्यकर्ताओं ने कोर्ट में चुनौती दी है क्योंकि मतदाता अब यह नहीं जान सकते हैं कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया है। इससे पहले पार्टियों को 20,000 रुपये से अधिक का चंदा देने वाले सभी दानदाताओं का ब्यौरा देना होता था। हालांकि, केंद्र ने नकद दान के विकल्प के रूप में और राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के तरीके के रूप में बॉन्ड को पेश किया है।

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की संवैधानिकता को चुनौती देने के अलावा याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से सभी राजनीतिक दलों को सार्वजनिक कार्यालय घोषित करने और उन्हें सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में लाने और राजनीतिक दलों को अपनी आय और व्यय का खुलासा करने के लिए बाध्य करने की मांग की है।

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को चुनौती देने वाली पहली याचिका दायर होने के बाद से छह वर्षों में भारत के छह मुख्य न्यायाधीशों ने पदभार संभाला और दो बार 2019 और 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि कोर्ट को सुनवाई पूरी करने और फैसला सुरक्षित रखने में केवल छह सत्र लगे।

कोर्ट ने क्या कहा था?

इससे पहले 2 नवंबर, 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कोर्ट ने कहा था कि सरकार के इस तर्क को स्वीकार करना थोड़ा मुश्किल है कि मतदाताओं को राजनीतिक दलों के धन के स्रोत को जानने का अधिकार नहीं है और सुझाव दिया कि वर्तमान योजना में “गंभीर कमियों” को ध्यान में रख कर एक बेहतर पोल बॉन्ड स्कीम तैयार की जा सकती है।

किस पार्टी को कितना चंदा मिला?

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम शुरू होने के बाद से 2018 से 29 चरणों में इस स्कीम के जरिये पार्टियों द्वारा इकट्ठा की गई कुल राशि अब 15,922.42 करोड़ रुपये से अधिक हो गई है। बॉन्ड के जरिये दिए गए धन का आधे से अधिक या 57% पैसा भाजपा के पास गया है। चुनाव आयोग को दी गई घोषणा के अनुसार पार्टी को 2017-2022 के बीच बॉन्ड के जरिये 5,271.97 करोड़ रुपये मिले। भाजपा के बाद कांग्रेस दूसरे स्थान पर है, पार्टी को 952.29 करोड़ रुपये मिले हैं।

राज्यों में सत्ता में मौजूद क्षेत्रीय दलों को भी बॉन्ड के जरिये बड़ी धन राशि मिली है। 2011 से पश्चिम बंगाल में सरकार में रही तृणमूल कांग्रेस ने पिछले कुछ वर्षों में 767.88 करोड़ रुपये के योगदान की घोषणा की है। इसके साथ ही टीएमसी बॉन्ड के जरिये पैसा पाने वाली तीसरी पार्टी बन गई है।

(‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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