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सहकारी समिति से यूरिया न मिलने से बलिया के किसान परेशान

बलिया। गेंहू की खेती शुरू होने के साथ किसानों के लिए डीएपी और यूरिया का संकट एक बार फिर से शुरू हो गया है। सरकार के तमाम दावों के बावजूद किसान के सामने सब्सिडी रेट पर यूरिया हासिल करना आसान नहीं है। सहकारी समिति कोटवा के गोदाम से किसानों को यूरिया उर्वरक नहीं मिल पाने […]

बलिया। गेंहू की खेती शुरू होने के साथ किसानों के लिए डीएपी और यूरिया का संकट एक बार फिर से शुरू हो गया है। सरकार के तमाम दावों के बावजूद किसान के सामने सब्सिडी रेट पर यूरिया हासिल करना आसान नहीं है। सहकारी समिति कोटवा के गोदाम से किसानों को यूरिया उर्वरक नहीं मिल पाने से किसान परेशान हैं।

सहकारी समिति गोदाम से किसानों को नैनो यूरिया खरीदने का दबाव भी किसानों पर बनाया जाता है। किसानों का कहना है कि नैनों यूरिया का प्रयोग बहुत खर्चीला है। जानकारी के मुताबिक हहकारी समिति कोटवा से खरीफ की सीजन में मात्र 500 पैकेट यूरिया की बिक्री की गई है।

इस बारे में प्रभारी सचिव का कहना है कि हमारे गोदाम 1000 यूरिया पैकेट के लिए पैसा जमा है जबकि हमे वितरण के लिए मात्र 500 पैकेट ही उपलब्ध कराई गई है। उनका कहना है कि उनके केंद्र पर लगभग 3000 पैकेट की डिमांड रहती है। यूरिया के पैकेट की जहां भारी किल्लत हैं वहीं प्रभारी से मिली जानकारी के मुताबिक नैनो यूरिया की कोई कमी नहीं है।

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किसान इस किल्लत से परेशान हैं और उन्हें 320 से 350 रूपये प्रति पैकेट की दर से बाजार से यूरिया खरीदनी पड़ रही है। नैनो यूरिया की खरीद जहां मंहगी पड़ती है वहीं इसका छिड़काव भी कठिन होता है। सामान्य यूरिया का छिड़काव जहां सरलता से हो जाता है वहीं नैनो यूरिया के छिड़काव के लिए मशीन का प्रयोग करना पड़ता है। इस वजह से भी किसान नैनो यूरिया का छिड़काव करने से बचते हैं। फिलहाल बलिया ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों के किसान भी यूरिया ना मिलने से परेशान हैं।

कई जिलों से यह खबर मिल रही है कि खाद वितरण केंद्र यानी सहकारी समिति की  मिलीभगत से खाद खुली दुकानों पर बेची जा रही है, जहाँ से किसानों को एमआरपी रेट से ज्यादा पैसे देकर खरीदने को मजबूर होना पड़ रहा है। बड़े और एप्रोच वाले किसान भले ही सहकारी समिति (खाद वितरण केंद्र) से खाद हासिल करने में सफल हो जाते हैं पर आम और छोटे किसान निजी दुकानों से खाद खरीदने को मजबूर हैं।

यूरिया की जगह किसानों को दी जा रही ‘नैनो यूरिया’

खाद वितरण की समस्या बलियाकी ही नहीं बल्की पूरे उत्तर प्रदेश की समस्या बनती जा रही है और सरकार और सरकारी सिस्टम इस मुद्दे के प्रति आवश्यकता अनुरूप संवेदनशील नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह है किसानों के प्रति सामाजिक सम्मान का रवैया न होना।

खाद के संतुलित प्रयोग के पक्ष में सरकार ने पहल करते हुये वर्ष 2015 में सभी यूरिया की नीम-कोटिंग को अनिवार्य कर दिया। वर्ष 2018 में मांग में कटौती के लिये 50 किग्रा. के स्थान पर 45 किग्रा. के यूरिया बैग प्रस्तावित किये। भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (इफको) द्वारा वर्ष 2021 में लिक्विड ‘नैनो यूरिया’ लॉन्च किया गया। इसी को ध्यान में रखते हुए गुजरात के कलोल में पहला लिक्विड नैनो यूरिया (LNU) संयंत्र का उद्घाटन हुआ। LNU एक नैनोपार्टिकल के रूप में यूरिया है जो पारंपरिक यूरिया को बदलने तथा इसकी आवश्यकता को कम-से-कम 50% कम करने के लिये विकसित किया गया है।

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यदि यह उर्वरक रियायती दरों पर उपलब्ध हो जाता है तब किसानों के लिये कृषि लागत कम करने का माध्यम बन जाता है किन्तु यदि यह उर्वरक सरकारी वितरण केंद्र पर नहीं मिल पाता है, तब किसानों की कृषि लागत बढ़ जाती है।

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल में कटौती नहीं की गई तो मानव जीवन पर इसका काफी दुष्प्रभाव पड़ेगा।  उनके मुताबिक, खाद्यान्नों की पैदावार में वृद्धि की मौजूदा दर से वर्ष 2025 तक देश की आबादी का पेट भरना मुश्किल हो जाएगा। इसके लिए मौजूदा 253 मीट्रिक टन खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ा कर तीन सौ मीट्रिक टन के पार ले जाना होगा।

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