Thursday, November 21, 2024
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ग्राउंड रिपोर्ट

तमनार : बेकाबू कॉर्पोरेट ताकतों ने आदिवासी समुदाय को जरूरी संसाधनों से किया बेदखल

भूमि अधिग्रहण अधिनियम कहता है कि बिना उचित सहमति और उचित मुआवज़े के सार्वजनिक या औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भूमि नहीं ली जा सकती, लेकिन गारे के ग्रामीणों को अपनी भूमि और संपत्ति के अधिकार की रक्षा के लिए शक्तिशाली कंपनियों के खिलाफ लड़ाई में अकेला छोड़ दिया गया है। पढ़िए राजेश त्रिपाठी की तमनार से ग्राउंड रिपोर्ट

भदोही में आबादी की ज़मीन का मामला : एक व्यक्ति की हत्या हुई और हमलावर खुलेआम घूम रहे हैं

भदोही जिले के सराय होला गाँव में आबादी की ज़मीन के झगड़े में विरोधियों की जानलेवा पिटाई से एक व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है लेकिन उसके परिजनों को इसकी एफआईआर लिखवाने में नाकों चने चबाना पड़ा। मौत के छह दिन बाद एसपी ऑफिस में गुहार लगाने के बाद ही एफआईआर दर्ज़ हो पायी। योगी आदित्यनाथ की पुलिस की कार्यशैली के ऐसे अद्भुत नमूनों के कारण ही हमलावर न केवल खुले घूम रहे हैं बल्कि अपने विरोधियों को औकात में ला देने का दावा भी ठोंक रहे हैं। भदोही से लौटकर अपर्णा की रिपोर्ट।

जौनपुर : क्या तबाही का सबब बनने वाला है गोमती रिवर फ्रंट

पुराने शहरों के नए विकास ने अनेक पुराने और हेरिटेज शहरों के स्वरूप को तहस-नहस कर दिया है। इसका एक बड़ा उदहारण बनारस है जो लगातार अपना पुराना स्वरूप खो रहा है। इसी तरह रिवरफ्रंट्स ने भी नदियों के स्वरूप और बहाव को कई विपरीतताओं से जोड़ दिया है। जौनपुर में गोमती रिवर फ्रंट के निर्माण से भी कई सवाल उठने लगे हैं कि क्या इससे शहर का पर्यावरण सुरक्षित रह पायेगा? जौनपुर से वरिष्ठ पत्रकार आनंद देव गोमती रिवर फ्रंट को लेकर खतरे की उठती आशंकाओं की रिपोर्ट कर रहे हैं।

मनरेगा की अकथकथा : गाँवों में मशीनों से काम और भ्रष्ट स्थानीय तंत्र ने रोज़गार गारंटी का बंटाढार किया

मनरेगा की शुरुआत सौ दिन की मजदूरी के गारंटी के साथ हुई थी लेकिन बीस वर्ष भी नहीं बीते कि अब यह योजना मजदूर विरोधी गतिविधियों में तब्दील हो गई। गाँव में ज्यादातर काम मशीनों से कराया जा रहा है, जिसके बाद मस्टर रोल में नाम मजदूरों के चढ़ाए जा रहे हैं और उनसे अंगूठा लगवाकर मजदूरी प्रधान और रोजगार सेवक हड़प रहे हैं। इस तरह मजदूरों को काम से वंचित किया जा रहा है। हमने वाराणसी के कपसेठी ब्लाक के नवादा नट बस्ती में पता किया, जिसमें यह बात सामने आई कि वर्ष भर में मुश्किल से उन्हें 10 दिन ही काम मिलता है और मजदूरी आने में महीनों लग जाते हैं। इस तरह देखा जाए तो मजदूरों के लिए मनरेगा दु:स्वप्न बनकर रह गया है। नवादा नट बस्ती से लौटकर अपर्णा की रिपोर्ट

रोज़गार और निवाले के संकट से जूझता वाराणसी का मुसहर समुदाय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण वाराणसी हमेशा चर्चा में रहता है क्योंकि अक्सर यहाँ से हजारों करोड़ की विकास परियोजनाएं लांच की जाती हैं लेकिन ये योजनाएं भरे पेट वालों का राजनीतिक गान भर हैं। वास्तविकता यह है कि हाशिये पर रहनेवाले समाजों के लिए इनका अर्थ एक जुमला भर है। वाराणसी समेत पूर्वांचल की बहुत बड़ी आबादी अपने रोजगार से हाथ धोती जा रही है। आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले सवा चार करोड़ लोग हैं। अर्थात उत्तर प्रदेश का हर पाँचवाँ व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है। न उसके पास रोजगार है, न जमीन है, न शिक्षा और न ही अच्छा स्वास्थ्य है। वह आजीविका कमाना चाहता है लेकिन गांवों तक मशीनों से काम होने लगा है और इस प्रकार उनका रोजगार हमेशा के लिए छिन गया है। वाराणसी जिले के हरहुआ ब्लॉक के चक्का गाँव में रहनेवाले मुसहर समुदाय के सामने आज रोजगार और निवाले की गंभीर समस्या खड़ी है। उनकी ज़मीनों पर दबंगों का कब्ज़ा है। उनकी अनेक बुनियादी समस्याएं हैं। चक्का गाँव से अपर्णा की यह रिपोर्ट।

तमनार : बेकाबू कॉर्पोरेट ताकतों ने आदिवासी समुदाय को जरूरी संसाधनों से किया बेदखल

भूमि अधिग्रहण अधिनियम कहता है कि बिना उचित सहमति और उचित मुआवज़े के सार्वजनिक या औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भूमि नहीं ली जा सकती, लेकिन गारे के ग्रामीणों को अपनी भूमि और संपत्ति के अधिकार की रक्षा के लिए शक्तिशाली कंपनियों के खिलाफ लड़ाई में अकेला छोड़ दिया गया है। पढ़िए राजेश त्रिपाठी की तमनार से ग्राउंड रिपोर्ट

भदोही में आबादी की ज़मीन का मामला : एक व्यक्ति की हत्या हुई और हमलावर खुलेआम घूम रहे हैं

भदोही जिले के सराय होला गाँव में आबादी की ज़मीन के झगड़े में विरोधियों की जानलेवा पिटाई से एक व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है लेकिन उसके परिजनों को इसकी एफआईआर लिखवाने में नाकों चने चबाना पड़ा। मौत के छह दिन बाद एसपी ऑफिस में गुहार लगाने के बाद ही एफआईआर दर्ज़ हो पायी। योगी आदित्यनाथ की पुलिस की कार्यशैली के ऐसे अद्भुत नमूनों के कारण ही हमलावर न केवल खुले घूम रहे हैं बल्कि अपने विरोधियों को औकात में ला देने का दावा भी ठोंक रहे हैं। भदोही से लौटकर अपर्णा की रिपोर्ट।

जौनपुर : क्या तबाही का सबब बनने वाला है गोमती रिवर फ्रंट

पुराने शहरों के नए विकास ने अनेक पुराने और हेरिटेज शहरों के स्वरूप को तहस-नहस कर दिया है। इसका एक बड़ा उदहारण बनारस है जो लगातार अपना पुराना स्वरूप खो रहा है। इसी तरह रिवरफ्रंट्स ने भी नदियों के स्वरूप और बहाव को कई विपरीतताओं से जोड़ दिया है। जौनपुर में गोमती रिवर फ्रंट के निर्माण से भी कई सवाल उठने लगे हैं कि क्या इससे शहर का पर्यावरण सुरक्षित रह पायेगा? जौनपुर से वरिष्ठ पत्रकार आनंद देव गोमती रिवर फ्रंट को लेकर खतरे की उठती आशंकाओं की रिपोर्ट कर रहे हैं।

मनरेगा की अकथकथा : गाँवों में मशीनों से काम और भ्रष्ट स्थानीय तंत्र ने रोज़गार गारंटी का बंटाढार किया

मनरेगा की शुरुआत सौ दिन की मजदूरी के गारंटी के साथ हुई थी लेकिन बीस वर्ष भी नहीं बीते कि अब यह योजना मजदूर विरोधी गतिविधियों में तब्दील हो गई। गाँव में ज्यादातर काम मशीनों से कराया जा रहा है, जिसके बाद मस्टर रोल में नाम मजदूरों के चढ़ाए जा रहे हैं और उनसे अंगूठा लगवाकर मजदूरी प्रधान और रोजगार सेवक हड़प रहे हैं। इस तरह मजदूरों को काम से वंचित किया जा रहा है। हमने वाराणसी के कपसेठी ब्लाक के नवादा नट बस्ती में पता किया, जिसमें यह बात सामने आई कि वर्ष भर में मुश्किल से उन्हें 10 दिन ही काम मिलता है और मजदूरी आने में महीनों लग जाते हैं। इस तरह देखा जाए तो मजदूरों के लिए मनरेगा दु:स्वप्न बनकर रह गया है। नवादा नट बस्ती से लौटकर अपर्णा की रिपोर्ट

रोज़गार और निवाले के संकट से जूझता वाराणसी का मुसहर समुदाय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण वाराणसी हमेशा चर्चा में रहता है क्योंकि अक्सर यहाँ से हजारों करोड़ की विकास परियोजनाएं लांच की जाती हैं लेकिन ये योजनाएं भरे पेट वालों का राजनीतिक गान भर हैं। वास्तविकता यह है कि हाशिये पर रहनेवाले समाजों के लिए इनका अर्थ एक जुमला भर है। वाराणसी समेत पूर्वांचल की बहुत बड़ी आबादी अपने रोजगार से हाथ धोती जा रही है। आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले सवा चार करोड़ लोग हैं। अर्थात उत्तर प्रदेश का हर पाँचवाँ व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है। न उसके पास रोजगार है, न जमीन है, न शिक्षा और न ही अच्छा स्वास्थ्य है। वह आजीविका कमाना चाहता है लेकिन गांवों तक मशीनों से काम होने लगा है और इस प्रकार उनका रोजगार हमेशा के लिए छिन गया है। वाराणसी जिले के हरहुआ ब्लॉक के चक्का गाँव में रहनेवाले मुसहर समुदाय के सामने आज रोजगार और निवाले की गंभीर समस्या खड़ी है। उनकी ज़मीनों पर दबंगों का कब्ज़ा है। उनकी अनेक बुनियादी समस्याएं हैं। चक्का गाँव से अपर्णा की यह रिपोर्ट।

मिर्ज़ापुर : ढोलक बनानेवाले परिवार अच्छे दिनों के इंतज़ार में हैं

मिर्ज़ापुर के चुनार कस्बे में ढोलक बनानेवाले तीन परिवार बताते हैं कि हमारी दाल-रोटी चल जाती है लेकिन पहले वाली बात इसमें नहीं रही। इसलिए नई पीढ़ी के बच्चे अब इस काम में कोई दिलचस्पी नहीं रखते और दूसरे काम करते हैं। सामान्य आमदनी के चलते इनमें शिक्षा के प्रति ललक भी नहीं पैदा हुई इसलिए ज़्यादातर कारीगरी से विमुख हो मजदूरी की ओर जा रहे हैं।