Monday, June 24, 2024
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ग्राउंड रिपोर्ट

बलिया : ऑनलाइन खरीद के बढ़ते चलन से दुकानदारों के सामने संकट बढ़ रहा है

केवल पच्चीस वर्ष पहले जब कुछ कंपनियाँ इस क्षेत्र में सक्रिय थीं तब भी यह क्षेत्र काफी संभावनाशील था लेकिन एण्ड्राएड फोन आने के बाद तो इसमें सुनामी आ गई। बढ़ते उपभोक्ताओं की संख्या ने जहां नए-नए ब्रांड के लिए रास्ता खोला वहीं कंपनियों और डीलरों ने ग्राहकों की आर्थिक सीमाओं को देखते हुये शून्य ब्याज दर पर किश्तों पर मोबाइल उपलब्ध कराया। लेकिन अब बढ़ते ऑनलाइन बाज़ार से खुदरा व्यवसायी संकट में पड़ रहे हैं।

मिर्ज़ापुर : कहने को मंडल पर स्वास्थ्य का चरमराता ढाँचा ढोने को विवश

किसी मंडलीय अस्पताल उर्फ मेडिकल कॉलेज के पर्ची काउंटर पर साँड़ आराम फरमा रहा हो और अस्पताल के ठीक पीछे मेडिकल वेस्ट का डम्पिंग ग्राउंड हो तो आप आसानी से समझ सकते हैं कि यह अस्पताल शहर और जिले का स्वास्थ्य कितने बेहतरीन ढंग से दुरुस्त रखता होगा। इसके लिए कहीं दूर जाने की आवश्यकता भी नहीं है। बस विंध्याचल मंडल के मुख्यालय मिर्ज़ापुर आइये और यह नज़ारा देख लीजिये।

सेना की तैयारी करनेवाले पूर्वाञ्चल के युवा अब क्या कर रहे हैं?

भाजपा सरकार द्वारा अग्निपथ योजना लाये जाने के बाद बड़े पैमाने पर सेना में जाने की तैयारी करने वाले युवाओं को निराश किया है। जिन लोगों को सांस्कृतिक रूप से सेना हमेशा अपनी ओर आकर्षित करती थी अब वे युवा अचानक दिशाहीन हो गए हैं। बलिया और गाजीपुर जिलों में सेना की तैयारी करने वाले ऐसे ही युवाओं की स्थितियों की पड़ताल करती ग्राउंड रिपोर्ट।

मजदूरों को काम देने में नाकाम होती जा रही हैं बनारस की श्रम मंडियाँ

एक समय था जब असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को मंडियों में आसानी से काम मिल जाया करता था लेकिन आज स्थिति यह हो गई है कि पूरे महीने भर में केवल 10-15 दिन ही लोगों को रोजगार मिल पा रहा है। यह स्थिति मजदूरों के अनुसार पिछले 8-10 वर्षों में जयादा तेजी के साथ आई है।

भदोही : आखिर क्यों रेफरल अस्पताल बनकर रहा है सौ शय्या वाला जिला अस्पताल

छोटे शहरों और जिलों में क्या मरीज केवल रिफर होने के लिए अस्पताल खोले जाते हैं? इस सवाल के जवाब में पूर्वाञ्चल के भदोही जिले की स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल यही हो गया है। यहाँ आने वाले मरीजों को दूसरे जिलों में रिफर कर दिया जाता हैं। जबकि अस्पताल के अधिकारियों का कहना है यहाँ सभी जरूरी सुविधाएं और आधुनिक जांच मशीनें मौजूद हैं।

बलिया : ऑनलाइन खरीद के बढ़ते चलन से दुकानदारों के सामने संकट बढ़ रहा है

केवल पच्चीस वर्ष पहले जब कुछ कंपनियाँ इस क्षेत्र में सक्रिय थीं तब भी यह क्षेत्र काफी संभावनाशील था लेकिन एण्ड्राएड फोन आने के बाद तो इसमें सुनामी आ गई। बढ़ते उपभोक्ताओं की संख्या ने जहां नए-नए ब्रांड के लिए रास्ता खोला वहीं कंपनियों और डीलरों ने ग्राहकों की आर्थिक सीमाओं को देखते हुये शून्य ब्याज दर पर किश्तों पर मोबाइल उपलब्ध कराया। लेकिन अब बढ़ते ऑनलाइन बाज़ार से खुदरा व्यवसायी संकट में पड़ रहे हैं।

मिर्ज़ापुर : कहने को मंडल पर स्वास्थ्य का चरमराता ढाँचा ढोने को विवश

किसी मंडलीय अस्पताल उर्फ मेडिकल कॉलेज के पर्ची काउंटर पर साँड़ आराम फरमा रहा हो और अस्पताल के ठीक पीछे मेडिकल वेस्ट का डम्पिंग ग्राउंड हो तो आप आसानी से समझ सकते हैं कि यह अस्पताल शहर और जिले का स्वास्थ्य कितने बेहतरीन ढंग से दुरुस्त रखता होगा। इसके लिए कहीं दूर जाने की आवश्यकता भी नहीं है। बस विंध्याचल मंडल के मुख्यालय मिर्ज़ापुर आइये और यह नज़ारा देख लीजिये।

सेना की तैयारी करनेवाले पूर्वाञ्चल के युवा अब क्या कर रहे हैं?

भाजपा सरकार द्वारा अग्निपथ योजना लाये जाने के बाद बड़े पैमाने पर सेना में जाने की तैयारी करने वाले युवाओं को निराश किया है। जिन लोगों को सांस्कृतिक रूप से सेना हमेशा अपनी ओर आकर्षित करती थी अब वे युवा अचानक दिशाहीन हो गए हैं। बलिया और गाजीपुर जिलों में सेना की तैयारी करने वाले ऐसे ही युवाओं की स्थितियों की पड़ताल करती ग्राउंड रिपोर्ट।

मजदूरों को काम देने में नाकाम होती जा रही हैं बनारस की श्रम मंडियाँ

एक समय था जब असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को मंडियों में आसानी से काम मिल जाया करता था लेकिन आज स्थिति यह हो गई है कि पूरे महीने भर में केवल 10-15 दिन ही लोगों को रोजगार मिल पा रहा है। यह स्थिति मजदूरों के अनुसार पिछले 8-10 वर्षों में जयादा तेजी के साथ आई है।

भदोही : आखिर क्यों रेफरल अस्पताल बनकर रहा है सौ शय्या वाला जिला अस्पताल

छोटे शहरों और जिलों में क्या मरीज केवल रिफर होने के लिए अस्पताल खोले जाते हैं? इस सवाल के जवाब में पूर्वाञ्चल के भदोही जिले की स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल यही हो गया है। यहाँ आने वाले मरीजों को दूसरे जिलों में रिफर कर दिया जाता हैं। जबकि अस्पताल के अधिकारियों का कहना है यहाँ सभी जरूरी सुविधाएं और आधुनिक जांच मशीनें मौजूद हैं।

पर्यावरण संरक्षण और कचरा प्रबंधन करने के लिए नागरिकों को ज़िम्मेदार बनना जरूरी

जिसे हम खराब कहकर अपदस्थ कर देते हैं, वह कचरा नहीं है। फेंकी जाने वाली हर चीज का मूल्य होता है। फलों और सब्जियों के छिलके जो हम फेंक देते हैं, उन्हें पेड़-पौधों के उपयोग में आने वाली बेशकीमती खाद के रूप में बदला जा सकता है। इन छिलकों को अगर हम घर के एक गमले में मिट्टी की तहों से दबाकर रखें तो तीन से चार सप्ताह के अंदर यह तथाकथित कचरा बेशकीमती खाद बन जाता है जो पूरी तरह ऑर्गेनिक और पेड़ पौधों के लिए प्राणदायक है।