Wednesday, December 4, 2024
Wednesday, December 4, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमग्राउंड रिपोर्ट

ग्राउंड रिपोर्ट

नट समुदाय : पाँच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के दावे के बीच पूरा समुदाय आदतन अपराधी के तौर पर उत्पीड़न झेलने को अभिशप्त

जैसे ही नट समुदाय की बात होती है, वैसे ही सभी के जेहन में या जुबान पर उनके चोर होने व उनसे सतर्क रहने का भाव या बात सामने आती है। यह बात आज नहीं बल्कि 150 वर्ष पहले लागू की गई थी, जब ब्रिटिश सरकार ने 1871 से 1952 के बीच, वीजेएनटी जनजातियों पर 'जन्मजात अपराधी' माना, लेकिन स्वतंत्रता के बाद, विभिन्न जनजातियों में पुनर्वर्गीकरण होने के बाद, उनके सामाजिक बहिष्कार व बुनियादी सुविधाओं से वंचित होने के साथ 'आदतन अपराधी' के कलंक का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उसके बाद भारतीय संविधान में 1952 में संशोधन कर इसे 'आदतन अपराधी' माना गया। पुलिस-प्रशासन कैसे इसे उपयोग में लाते हुए नट बस्तियों में रहने वाले लोगों को प्रताड़ित करते हैं, पढ़िये प्रेम नट की ग्राउंड रिपोर्ट 

तमनार : बेकाबू कॉर्पोरेट ताकतों ने आदिवासी समुदाय को जरूरी संसाधनों से किया बेदखल

भूमि अधिग्रहण अधिनियम कहता है कि बिना उचित सहमति और उचित मुआवज़े के सार्वजनिक या औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भूमि नहीं ली जा सकती, लेकिन गारे के ग्रामीणों को अपनी भूमि और संपत्ति के अधिकार की रक्षा के लिए शक्तिशाली कंपनियों के खिलाफ लड़ाई में अकेला छोड़ दिया गया है। पढ़िए राजेश त्रिपाठी की तमनार से ग्राउंड रिपोर्ट

भदोही में आबादी की ज़मीन का मामला : एक व्यक्ति की हत्या हुई और हमलावर खुलेआम घूम रहे हैं

भदोही जिले के सराय होला गाँव में आबादी की ज़मीन के झगड़े में विरोधियों की जानलेवा पिटाई से एक व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है लेकिन उसके परिजनों को इसकी एफआईआर लिखवाने में नाकों चने चबाना पड़ा। मौत के छह दिन बाद एसपी ऑफिस में गुहार लगाने के बाद ही एफआईआर दर्ज़ हो पायी। योगी आदित्यनाथ की पुलिस की कार्यशैली के ऐसे अद्भुत नमूनों के कारण ही हमलावर न केवल खुले घूम रहे हैं बल्कि अपने विरोधियों को औकात में ला देने का दावा भी ठोंक रहे हैं। भदोही से लौटकर अपर्णा की रिपोर्ट।

जौनपुर : क्या तबाही का सबब बनने वाला है गोमती रिवर फ्रंट

पुराने शहरों के नए विकास ने अनेक पुराने और हेरिटेज शहरों के स्वरूप को तहस-नहस कर दिया है। इसका एक बड़ा उदहारण बनारस है जो लगातार अपना पुराना स्वरूप खो रहा है। इसी तरह रिवरफ्रंट्स ने भी नदियों के स्वरूप और बहाव को कई विपरीतताओं से जोड़ दिया है। जौनपुर में गोमती रिवर फ्रंट के निर्माण से भी कई सवाल उठने लगे हैं कि क्या इससे शहर का पर्यावरण सुरक्षित रह पायेगा? जौनपुर से वरिष्ठ पत्रकार आनंद देव गोमती रिवर फ्रंट को लेकर खतरे की उठती आशंकाओं की रिपोर्ट कर रहे हैं।

मनरेगा की अकथकथा : गाँवों में मशीनों से काम और भ्रष्ट स्थानीय तंत्र ने रोज़गार गारंटी का बंटाढार किया

मनरेगा की शुरुआत सौ दिन की मजदूरी के गारंटी के साथ हुई थी लेकिन बीस वर्ष भी नहीं बीते कि अब यह योजना मजदूर विरोधी गतिविधियों में तब्दील हो गई। गाँव में ज्यादातर काम मशीनों से कराया जा रहा है, जिसके बाद मस्टर रोल में नाम मजदूरों के चढ़ाए जा रहे हैं और उनसे अंगूठा लगवाकर मजदूरी प्रधान और रोजगार सेवक हड़प रहे हैं। इस तरह मजदूरों को काम से वंचित किया जा रहा है। हमने वाराणसी के कपसेठी ब्लाक के नवादा नट बस्ती में पता किया, जिसमें यह बात सामने आई कि वर्ष भर में मुश्किल से उन्हें 10 दिन ही काम मिलता है और मजदूरी आने में महीनों लग जाते हैं। इस तरह देखा जाए तो मजदूरों के लिए मनरेगा दु:स्वप्न बनकर रह गया है। नवादा नट बस्ती से लौटकर अपर्णा की रिपोर्ट

एक दिहाड़ी मजदूर का जीवन

सहरता को साल तो याद नहीं है लेकिन वो बताते हैं कि जम्मू और बाकी जगहों पर जब दिहाड़ी तीन रुपया थी तब वो बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के एक गाँव से अपने माँ-बाप के साथ जम्मू में ईंट के भट्ठे पर काम करने के लिए गए थे। घर पर खेती के लिए कोई जमीन नहीं थी इसलिए माता-पिता जम्मू और पंजाब में काम के लिए आते थे और सहरता के अनुसार अपने माता-पिता की तरह ही काम करने की उम्र होते ही उन्होंने भी ईंट भट्ठे पर काम करना शुरू कर दिया था। कुछ सालों में जब माता-पिता वापस गाँव में रहने के लिए चले गए तो सहरता भी जम्मू से चंडीगढ़ कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी का काम करने के लिए आ गए।

मनरेगा: रोजगारसेवक को खर्चा-पानी दिए बिना भुगतान नहीं

2010 में गाँव सैदपुर में उनका एनरोलमेंट मनरेगा में हुआ और तब से औसतन प्रतिवर्ष दो महीने का काम मिलता रहा है । 2010 में उन्हें 65 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी मिलती थी जो अब बढ़कर 120 रुपये हो गई है। मनरेगा के अपने अनुभवों को साझा करते हुए रामचंद्र बताते हैं कि उन्होंने अब तक गाँव के आस-पास पुलिया लगाने, सड़क और नाली की मरम्मत करने और नई नालियां बनाने के काम में लगे रहे। उनका अब कोई बकाया नहीं है लेकिन तमाम मनरेगा मजदूरों की तरह वे भी कहते हैं कि जब भी वे बैंक से पैसा निकालते हैं तो तुरंत ही प्रधान का आदमी आकर अपना हिस्सा ले जाता  है।