Tuesday, October 15, 2024
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ग्राउंड रिपोर्ट

मिर्ज़ापुर में सिलकोसिस : लाखों लोग शिकार लेकिन इलाज की कोई पॉलिसी नहीं

मिर्ज़ापुर जिले में बड़ी संख्या में लोग पत्थर खदानों में काम करते हैं और अनेक लोग कई साल तक सिलिका धूल के संपर्क में रहने के कारण सिलकोसिस के शिकार हैं। इनमें से कइयों का इलाज टीबी की दवाओं द्वारा होता रहा है। जबकि सिलकोसिस एक असाध्य बीमारी है। इस पर कोई ठोस काम करने की बजाय स्वस्थ्य विभाग और सरकार लगातार चुप्पी बनाए हुये है।

मिर्जापुर : बाँध में पर्याप्त पानी होने के बाद भी सात किलोमीटर रैकल टेल सूखी, धान की फसल बर्बाद होने की कगार पर 

'किसान अन्नदाता हैं' सुनने में यह बहुत अच्छा लगता है लेकिन किसान आज किस हाल में खेती कर पा रहे हैं, यह उनसे पूछने पर मालूम होगा। कहीं बीज नहीं मिल पा रहा है, तो कहीं खाद की समस्या है, कहीं बिजली नहीं तो कहीं सिंचाई के लिए पानी का अभाव है। किसानों के लिए अनेक योजनायें हैं लेकिन या तो कागज पर हैं या जो लागू हैं उनमें बहुत ही घालमेल है, जिसकी वजह से वह किसानों तक नहीं पहुँच पा रही हैं। मिर्जापुर जिले के अति पिछड़े इलाके मड़िहान तहसील में सिरसी पम्प कैनाल में पानी नहीं आ पाने के कारण किसानों की फसल सूखने की कगार पर है। पढ़िए संतोष देव गिरि की रिपोर्ट

वाराणसी : आठ गांवों की जिंदगी को नारकीय बना चुका है हरित कोयला प्लांट

विकास के नाम पर पूँजीपतियों के फायदे के लिए सरकार किस हद तक जा सकती है, इसका एक उदाहरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के गाँव रमना के नैपुरा कलां में दिखाई देता है। इस गाँव में देश का पहला कचरे से हरित कोयला बनाने का प्लांट स्थापित किया गया है, जिससे निकलने वाला जहरीला धुआँ लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। कैसे नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं यहाँ के लोग, पढ़िए इस ग्राउन्ड रिपोर्ट में।

जौनपुर-अंबेडकर नगर फोर लेन : बिना मुआवज़ा तथा पुनर्वास तय किए मकानों-दुकानों को जबरन लेने पर उतारू

शाहगंज से अंबेडकरनगर सड़क को फोरलेन बनाने के लिए सड़क के किनारे स्थित मकानों, दुकानों और खेतों में निशान लगा दिया गया है लेकिन इसके लिए पहले न तो ग्राम प्रतिनिधि की नियुक्ति हुई न फ़िजिकल सर्वे हुआ। इन बात से स्थानीय निवासियों में भाय और आक्रोश है तथा वे आंदोलन कर रहे हैं। मुआवज़े और सर्किल रेट को लेकर भी अभी कोई बात स्पष्ट नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर सरकार हमारी ज़मीन लेना चाहिती है तो हमें उचित सर्किल रेट से मुआवजा दिया जाय तथा भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 का पालन किया जाय।

मिर्ज़ापुर : नहरों में पानी की जगह सूखा घास-फूस की सफाई के नाम पर खर्च हो जाता है करोड़ों का बजट

नहरें खेत के लिए जीवनदायिनी होती हैं। इनका रख-रखाव ठीक से न हो तो नहरें किसी काम की नहीं रहती हैं। यही हाल है मिर्जापुर में नहरों का जिनमें पानी की जगह सूखे और घास-फूस का बोलबाला है। इनकी साफ-सफाई के नाम पर लाखों का हेर-फेर हो जाता है। यहां वर्षों पहले किसानों ने नहरों के लिए कृषि योग्य जमीन दी थी, जिसको लेकर वे कहते हैं कि बारिश न हो तो फसल सूख जाए। जब जमीन दी थी तब उम्मीद थी कि हमें नहरों से पानी मिलने लगेगा लेकिन लगातार हमको सूखा ही मिला है। इसी तथ्य की पड़ताल करती संतोष देव गिरी की ग्राउंड रिपोर्ट।

ग्राम प्रहरी उर्फ़ गोंड़इत अर्थात चौकीदार : नाम बिक गया लेकिन जीवन बदहाल ही रहा

इस सरकार ने जमीनी तौर पर कोई काम किया हो या न किया हो, कह नहीं सकते लेकिन नाम बदलने का काम बहुत किया है। इलाहाबाद का नाम प्रयागराज, योजना आयोग हो गया नीति आयोग, विकलांग हो गए दिव्याङ्ग और चौकीदार हो गए ग्राम प्रहरी। लेकिन नाम बादल देने से कुछ बदलने वाला नहीं है। ग्राम प्रहरी उर्फ़ गोंड़इत अर्थात चौकीदारों के सामने आज जीवन चलाने का बड़ा संकट खड़ा है। सरकार उन्हें कर्तव्य तो बताती है लेकिन अधिकार से महरूम रखती है। पढ़िये ग्राम प्रहरियों की वास्तविक स्थिति की पड़ताल करती संतोष देवगिरि की ग्राउंड रिपोर्ट।

मथुरा : भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन से देवकी नंदन शर्मा की मौत का ज़िम्मेदार है सरकारी तंत्र

मथुरा जिले की मांट तहसील निवासी देवकी नंदन शर्मा विगत पंद्रह वर्षों से ग्राम सभा से लेकर तहसील और जिला प्रशासन तक भ्रष्टाचार के खिलाफ़ सक्रिय थे। उन्होंने गले तक सरकारी लूट में लिप्त छोटे और बड़े अधिकारियों कर्मचारियों के अलावा ग्राम प्रधान, सचिव और दबंगों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा दो महीने पहले अनशन पर बैठने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मौत की जिम्मेदारी लेने की जगह जिला और तहसील प्रशासन उस पर लीपापोती करने का प्रयास कर रहा है।

Varanasi : व्यवसाय की मंदी का बुरा असर रंगरेज़ों पर भी पड़ा है

बनारसी साड़ी, भारत के प्रमुख पारंपरिक वस्त्रों में से एक है। यह साड़ी विशेष रूप से बनारस (वाराणसी) शहर की शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण है। बनारसी साड़ी के रंगने की प्रक्रिया भी बेहद रोचक और जटिल होती है। देखिये ग्राउंड रिपोर्ट

Azamgarh : आत्मनिर्भर होने की ललक और जुनून में महिलाएं रात में घर के लोगों से छिपकर करती थीं काम

मेजवां वेलफेयर सोसायटी की महिलाएं आत्मनिर्भरता की दिशा में एक प्रेरणादायक यात्रा पर थीं। उनके पास आत्म-सम्मान और आर्थिक स्वतंत्रता की गहरी इच्छा थी,...

मीरजापुर : PMSGY योजना के इंतज़ार में है मनऊर गाँव के ग्रामीण

उत्तर प्रदेश के वाराणसी, चंदौली जनपद से लगा हुआ मिर्ज़ापुर जिले का जमालपुर विकास खंड के मनऊर गाँव के सड़क की हालत इतनी खराब है कि स्कूल पहुँचने के बाद बच्चे कीचड़ से लथपथ हो जाते हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत आज तक इस गाँव में सड़क बनने की कोई योजना नहीं पहुँच पाई है। विकास की बात करने वाली सरकार अपने किए काम का बहुत ज़ोर-शोर से प्रचार करती है। जैसे 2014 के बाद ही वाराणसी को क्योटो बनाने और 100 स्मार्ट सिटी बनाने की योजना थी। लेकिन 10 वर्ष बाद भी बनारस क्योटो नहीं बन सका बल्कि 1 घंटे की बारिश में रास्ते जलमग्न हो जाते हैं।