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हाईकोर्ट ने मदरसा अधिनियम को बताया असंवैधानिक, मान्यता का इंतजार करते रह गए मदरसा संचालक

यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा, ‘कोर्ट के फैसले से आश्चर्य हुआ है। बड़ा फैसला है, इसकी समीक्षा की जाएगी। 2004 में सरकार ने एक्ट बनाया था। आज 20 साल बाद एक्ट को असंवैधानिक बताया गया है।’

उत्तर प्रदेश में मदरसों को लेकर चल रहा घटनाक्रम इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद एक नए मोड़ पर पहुँच गया है। 22 मार्च शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक बताते हुए मदरसों को बंद करने का आदेश दे दिया है। कोर्ट ने इस अधिनियम को धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन बताया है। हाईकोर्ट के न्यायाधीश विवेक चौधरी और सुभाष विद्यार्थी ने मदरसों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया है। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच ने कहा, ‘मदरसा अधिनियम, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 की धारा 22 का उल्लंघन है। राज्य के पास धार्मिक शिक्षा के लिए बोर्ड बनाने या केवल किसी विशेष धर्म और उससे जुड़े दर्शन के लिए स्कूली शिक्षा प्रदान करने की कोई शक्ति नहीं है। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले का सीधा-सीधा असर राज्य के 25 लाख से अधिक छात्रों के भविष्य पर पड़ेगा। 

मदरसा बोर्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कोर्ट को बताया कि मदरसों मे पढ़ने वाले बच्चों को 10-20 रुपये प्रति माह के शुल्क पर पढ़ाया जा रहा है, अगर ये संस्थान बंद हो जाएंगे तब ये बच्चे इस शिक्षा से भी वंचित रह जाएंगे। 

हाई कोर्ट ने मदरसों में पढ़ने वाले सभी छात्रों के भविष्य को देखते हुए उन्हें विभिन्न बोर्ड के नियमित स्कूलों में समायोजित करने के लिए भी निर्देशित किया है। 

वकील अंशुमान सिंह राठौड़ ने मदरसा अधिनियम की संवैधानिकता पर सवाल उठाते हुए याचिका दाखिल की थी।  बता दें कि इस फैसले के बाद अब मदरसों को मिलने वाली सरकारी सहायता बंद हो जाएगी, वहां काम करने वाले शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन पर तलवार लटक गई है। 

साल 2022 में सत्ता में आने के बाद योगी सरकार ने मदरसों का सर्वे कराने का फैसला किया था। सर्वे को लेकर सरकार ने कहा था कि इसका मुख्य उद्देश्य इनको मान्यता प्रदान कर समाज की मुख्य धारा में लाने का प्रयास करना है। 

सर्वे में मुख्य रूप से यह पता किया जा रहा था कि मदरसों की आय के क्या स्रोत हैं। इसके साथ ही भवन, पानी, फर्नीचर, बिजली व शौचालय का इंतजाम किस रूप में किया गया है। 

यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष इफ्तखार अहमद जावेद ने पिछले साल नवंबर में सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर इन गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को मान्यता प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू करने का अनुरोध किया था। 

मदरसों की जांच कर रही एसआईटी ने 7 मार्च को प्रदेश सरकार को रिपोर्ट सौंपते हुए प्रदेश के 13000 अवैध मदरसों को बंद करने की सिफारिश कर दी। 

वहीं अब 22 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक करार दिया है। 

9 मार्च को प्रयागराज पहुंचे नेता विपक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा था, ‘ भाजपा सरकार केवल मदरसे ही नहीं संस्कृत विद्यालय भी बंद करवाने वाली है। भाजपा सिर्फ एक समाज नहीं बल्कि पूरे देश की दुश्मन है।’

मदरसों पर आए कोर्ट के फैसले पर ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव यासूब अब्बास ने कहा, ‘मैं उत्तर प्रदेश सरकार से यह गुजारिश करता हूँ कि ऐसा कानून बनाए जिससे मदरसा बोर्ड को फिर से जिंदा किया जा सके। क्योंकि इससे हजारों लोगों की रोजी रोटी चल रही है।’ 

उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने हाईकोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘न्यायालय के निर्णय को देख-समझ लें, फिर इसकी समीक्षा करवाई जाएगी। इसके बाद सरकार इस संबंध में उचित निर्णय लेगी।’

यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा, ‘कोर्ट के फैसले से आश्चर्य हुआ है। बड़ा फैसला है, इसकी समीक्षा की जाएगी। 2004 में सरकार ने एक्ट बनाया था। आज 20 साल बाद एक्ट को असंवैधानिक बताया गया है।’

बता दें कि राज्य में कुल 16,513 मान्यता प्राप्त और 8,449 गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे हैं, जिनमें लगभग 25 लाख छात्र पढ़ते हैं। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ मदरसा संचालक सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं। 

 

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