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ग्राउंड रिपोर्ट

संतों के नए अभियान का कैसे मुकाबला करेंगे सामाजिक न्यायवादी

आरएसएस हमेशा से भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहता था। सत्ता में आने के बाद वर्ष 2014 से एक हो लक्ष्य साधने का काम कार रहा है। इधर महाकुंभ का आयोजन के बाद धर्म सेना के जरिए संतों का संगठन देश को युद्ध क्षेत्र में तब्दील करने की तैयारियों में जुट चुका है! आखिर जिस देश की सत्ता पर हिंदुत्ववादियों की बहुत ही मज़बूत पकड़ है, उस देश में साधु-संतों को धर्म-सेना की कोई जरूरत हो सकती है! बहरहाल यहाँ सबसे बड़ा सवाल पैदा होता है कि सामने न तो कोई चुनाव है और न ही तानाशाही हिंदुत्ववादी सत्ता को कोई खतरा, फिर साधु-संत गुलामी के प्रतीकों के खिलाफ अभूतपूर्व माहौल पैदा करने के साथ गाँव-गाँव हिन्दू राष्ट्र का संविधान पहुंचाने, हस्ताक्षर अभियान चलाने, धर्म-सेना खड़ा करने के साथ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लायक तरह-तरह की गतिविधियाँ चलाने में नए सिरे क्यों मुस्तैद हो गए हैं?

13 जनवरी की पौष पूर्णिमा से शुरू होकर 45  दिनों तक चला महाकुम्भ  26 फरवरी  को महाशिवरात्रि के दिन समाप्त हो गया है। प्रयागराज के इस महाकुंभ के समापन के बाद अब अगला महाकुंभ दो साल बाद 2027 में हरिद्वार के गंगा तट पर लगेगा, जो अर्ध कुंभ के नाम से जाना जायेगा। अबतक के इतिहास का सबसे बड़ा महाकुंभ अपनी भव्यता सहित अन्यान्य कारणों से लम्बे समय तक याद किया जाएगा। प्रयागराज महाकुंभ को सफल व सुरक्षित बनाने के लिए 37,000 पुलिसकर्मी, 14,000 होम गार्ड तैनात किये गए थे, जबकि श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए 2,750  एआई सीसीटीवी, तीन जल पुलिस स्टेशन, 18 जल पुलिस नियंत्रण कक्ष और 50  वॉच टॉवर लगाए गए थे, बावजूद इसके आग लगने और भगदड़ से कई मौतों का साक्षात् करने के लिए यह ऐतिहासिक  महाकुंभ अभिशप्त हुआ। महाकुंभ में जहाँ आयोजकों के मुताबिक़ 60 करोड़ से अधिक लोग नहाए वहां का जल खतरनाक फेकल कोलीफॉर्म बैक्टेरिया, जो जानवरों और मानव मल में पाया जाता है, से प्रदूषित होने के लिए भी बदनाम हुआ।

बहरहाल महाकुंभ के आयोजन को लेकर जो ढेरों नकारात्मक बातें सामने आईं, उसका जवाब यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने इन शब्दों में दिया है,’किसी ने सच कहा है कि महाकुंभ में जिसने जो तलाशा उसको वह मिला – गिद्धों को केवल लाश मिली, सूअरों को गन्दगी मिली, संवेदनशील लोगों को रिश्तों की खूबसूरती मिली, आस्थावान को पुण्य मिला, सज्जनों को सजन्नता मिली, भक्तों को भगवान मिले।’ इससे आगे बढ़कर इसके समापन पर अपना सन्देश देते हुए कहा है,’प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में आयोजित मानवता का ‘महायज्ञ’ आस्था, एकता और समता का महापर्व महाकुंभ, प्रयागराज महाशिवरात्रि के पवित्र स्नान के साथ ही अपनी पूर्णाहुति की और अग्रसर है। विश्व इतिहास में यह अभूतपूर्व है – अविस्मरणीय है। पूज्य अखाड़ों, साधु-संतों, महा मंडेलेश्वरों व धर्माचार्यों के पुण्य आशीर्वाद का ही प्रतिफल है कि समरसता का यह महासमागम दिव्य और भव्य बनकर सकल विश्व को एकता का सन्देश दे रहा है।’ इसके साथ ही उन्होंने मेला प्रशासन, स्थानीय प्रशासन व् पुलिस, स्वच्छताकर्मियों, गंगा दूतों, धार्मिक संस्थाओं, नाविकों इत्यादि को साधुवाद दिया है। बहरहाल कुछ कमियों और सवालों के बावजूद प्रयागराज का महाकुंभ यादगार रहा,जिसे योगी-मोदी और उनके समर्थक  लम्बे समय  भाजपा के हित में सद्व्यवहार करते रहेंगे।  लेकिन यह महाकुंभ जहां हिंदुत्ववादियों को पुलकित किया है, वहीं सामाजिक न्यायवादियों को चिंता में डाल दिया है!

पांच लाख गांवों तक पहुंचाया जाएगा ऋषि संविधान

वैसे तो नई सदी में जब-जब  प्रयागराज में संतों का जमावड़ा हुआ, हर बार हिन्दू राष्ट्र को लेकर डरावनी घोषणाएं  हुईं पर,  2025 का महाकुंभ अतीत की घोषणाओं को म्लान कर दिया है। इस बार सनातनी राष्ट्र(हिन्दू राष्ट्र) बनाने को लेकर साधु-संतों, दंडी सन्यासियों ने वहां से एक नए अभियान की घोषणा कर दिया है, जिस कारण ही सामाजिक न्यायवादियों के पेशानी पर चिंता की लकीरें खीच गई हैं। 18 फरवरी के एक बड़े राष्ट्रीय अखबार में छपी खबर के मुताबिक़ इस अभियान के अंतर्गत ऋषि संविधान को आधार बनाकर पांच लाख गांवों को सनातन धर्म से जोड़ा जाएगा। इसके लिए बीस साल का लक्ष्य तय किया गया है। 24 सालों के मंथन और पुराणों के अध्ययन के महाकुंभ में पहली बार ऋषि संविधान को आम जनता के सामने पेश किया गया।

यह संविधान पूरब, पश्चिम, उत्तर-दक्षिण के 15  संतों की टीम ने तैयार किया है। वसुधैव कुटुम्बकम को आधार बनाकर संतों ने ऋषि संविधान बनाया है। इसका मुख्यालय उत्तराखंड के ऋषिकेश में स्थित दर्शन क्षेत्र को बनाया गया है। इसके अलावा चार अस्थाई मुख्यालय होंगे, जिसके लिए उन जगहों को चुना गया है, जहां महाकुंभ का आयोजन होता है। इसमें प्रयागराज, नासिक, उज्जैन और हरिद्वार को चुना गया है। इस अभियान के तहत हर सनातनी को एक गाँव बनाने की जिम्मेवारी दी जायेगी। इसके लिए 300 संतों की टोली तैयार की गई है, जो ऋषि संविधान को आधार बनाकर पहले चरण में 300 गावों में तैनात किये जायेंगे। ऋषि संविधान के तहत 17 अभियान चलेंगे।  इनमें विचार क्रान्ति, साधना क्रांति, संपर्क क्रांति, सेवा क्रांति, धर्मजागरण, संस्कार क्रांति, गो क्रांति, युवा क्रांति, व्यवस्था क्रांति, नारी जागरण, समता क्रांति, शिक्षा क्रांति, स्वास्थ्य क्रांति, व्यसन मुक्ति, हरित क्रांति और सामाजिक समरसता को शामिल किया गया है। संतों की इस घोषणा से ऐसा लगता है, जैसे राहुल गांधी हाथ में संविधान लेकर जन-जन को आंबेडकर के संविधान की उपयोगिता से अवगत कराने का जो अभियान छेड़े हुए हैं, उसकी काट के लिए साधु-संतों  ने  हिन्दू राष्ट्र का संविधान जन-जन तक पहुचाने का उपक्रम चलाने की योजना बना लिया है।

श्रीकृष्णजन्मभूमि मुक्ति के लिए हस्ताक्षर अभियान

महाकुंभ से एक और खबर आई है, जो सामाजिक न्यायवादियों के लिए सुखकर नहीं है। अमर उजाला में प्रकाशित 19 फरवरी की एक खबर के मुताबिक़, ‘त्रिवेणी के तट से आरंभ हुए श्रीकृष्णजन्मभूमी मुक्ति आंदोलन की गूँज अब सात समुन्दर पार तक पहुँच गई है। यह पहला मौक़ा होगा जब विदेशी धरती से श्रीकृष्णजन्मभूमी मुक्ति अन्दोलान का शंखनाद होगा। विश्व भर के अप्रवासी भारतीयों को अन्दोलान से जोड़ने लिए तैयारियां शुरू हो गई हैं। मार्च के अंतिम सप्ताह में  आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न में होने वाले  श्रीकृष्णजन्मभूमि  मुक्ति के लिए महासंवाद की रूपरेखा  तैयार हो चुकी है। इसकी शुरुआत हस्ताक्षार अभियान से हो गई है। हस्ताक्षर अभियान के जरिये ही प्रवासी भारतीयों को श्रीकृष्णजन्मभूमि मुक्ति अभियान से जोड़ा जाएगा। काबिले गौर है कि  श्रीकृष्णजन्मभूमि  मुक्ति के लिए अबतक साढे तीन करोड़ से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर अभियान में हिस्सा लिया है। इस अभियान के लिए 28 से 30 मार्च तक श्रीकृष्णजन्मभूमि  मुक्ति के लिए महासंवाद होगा। इसमें छः हजार से अधिक अप्रवासी भारतीय शामिल होंगे। महासंवाद में बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया जाएगा। यज्ञ के साथ ही महासंवाद के जरिये विश्व भर के सनातनी हिन्दू और अप्रवासी भारतीयों को हिन्दू राष्ट्र के प्रति जागरूक किया जाएगा। महासंवाद में मेलबोर्न की हिन्दू समितियां, अप्रवासी भारतीय और साधु-संत भी शामिल होंगे। मेलबोर्न के बाद दक्षिण अफ़्रीका, केन्या, मारीशस मलेशिया और यूएस में महासंवाद, हस्ताक्षर और जागरूकता अभियान चालाया जाएगा। श्रीकृष्णजन्मभूमि  मुक्ति आन्दोलान को धार देने के लिए विश्व भर में विधि विशेषज्ञ,  शिक्षाविद, रिटायर्ड अधिकारियों, वास्तुशास्त्रियों, आर्किलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के सदस्यों,  विचारकों और साधु–संतों की 51 सदस्यीय समिति तैयार की जा रही है।

अमर उजाला की इस खबर से ऐसा लगता है हिंदुत्ववादी आन्दोलन के एक बड़े माध्यम हस्ताक्षर-अभियान को हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना को जमीन पर उतारने का एक बड़ा माध्यम बनाने जा रहे हैं। काबिले गौर है कि जिस राम मंदिर आंदोलन के जरिये  भाजपा केंद्र से लेकर राज्यों की सत्ता पर काबिज होकर अप्रतिरोध्य बन गई, उसमें हस्ताक्षर अभियान को एक प्रभावी जरिया बनाया गया था। उसी तरह अब श्रीकृष्णजन्मभूमि सहित गुलामी के दूसरे प्रतीकों की मुक्ति के लिए हस्ताक्षर-अभियान को हथियार बनाकर देश-विदेश के पढ़े-लिखे हिन्दुओं को जोड़ा जाएगा।

15 लाख धर्म सैनिक तैयार करने में जुटे हैं साधु-संत

साधु-संतों की गतिविधियों से खौफजदा सामाजिक न्यायवादी यह भी ध्यान दें कि साधु-संत हिन्दू राष्ट्र्र को ध्यान में रखकर सिर्फ गांव-गांव तक ऋषि संविधान पहुंचाने,  हस्ताक्षर अभियान चलाने और हर मंदिर के नीचे मस्जिद तलाशने में ही नहीं जुटे हैं, वे विशाल धर्म-सेना खड़ी करने में भी मुस्तैद हो गए हैं। इस विषय में भाजपा के मुख पत्र के रूप में जाने जाने वाले देश के सबसे  बड़े अखबार दैनिक जागरण में 27  नवम्बर, 2024 को एक ऐसी खबर छपी  थी, जिसे जान कर सामाजिक न्यायवादियों के  रोंगटे खड़े हो सकते हैं। वह खबर यह थी, ‘समाज में मर्यादित आचरण को बढ़ावा देने, मंदिरों की सफाई व सुधार, आर्थिक व सामूहिक स्तर पर समाज में मदद बढ़ाने के साथ ही हिंदू त्योहारों-जुलूसों पर आक्रमण को रोकने जैसे मामलों को लेकर देशभर में साल 2025 तक 15 लाख धर्म सैनिक तैयार होंगे। यह समाज के जागरूक लोग होंगे, जिन्हें शारीरिक, धार्मिक व तकनीकी के साथ अन्य प्रशिक्षण दिए जाएंगे। इसमें अग्नि वीरों और युवाओं को प्राथमिकता मिलेगी। धर्म सैनिक बनने के लिए देशभक्त होना पहली शर्त होगी। यह पहल देश के संतों के प्रमुख संगठन ‘अखिल भारतीय संत समिति’ की है, जिसके लिए विस्तृत रणनीति संतों के मार्गदर्शन में कुंभ में तय होगी। उसी में समिति के धर्म सेना प्रकोष्ठ के तहत धर्म सैनिक के लिये योग्यता व प्रशिक्षण का प्रारूप तय होगा। संत समिति द्वारा प्रायोगिक तौर पर गुजरात में पाँच वर्ष में 1.5 लाख धर्म सैनिक तैयार किए गये हैं। इसमें बिना किसी भेदभाव के हिंदुओं के सभी 127 संप्रदायों तथा सिख, बौद्ध व जैन समुदाय के युवक-युवतियों को सभ्यता, संस्कृति व सनातन मान्यताओं से जोड़ा जाएगा। राष्ट्र व धर्म रक्षा के लिए यह अवैतनिक सैनिक तैयार होंगे समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती के अनुसार देश के विभिन्न क्षेत्रों में हिंदू आस्था व सम्मान पर हमले बढ़े हैं। उन्हें धार्मिक आधार पर निशाना बनाया जा रहा है। इसलिए, इस पहल की जरूरत महसूस हुई। उन्होंने कहा कि यह कोई नई सोच नहीं है।  अखिल भारतीय संत समिति के संविधान में ही इसकी अवधारणा  है।’  पता नहीं प्रयागराज महाकुंभ में इस दिशा में क्या रणनीति बनी पर, इतना तय है कि साधु-संत हिन्दू राष्ट्र के लक्ष्य को अंजाम तक पहुंचाने के लिए बड़े पैमाने जागरूक यवक-युवतियों को धर्म सैनिक के रूप में तब्दील करने के काम में जुट गए हैं।

कांग्रेस के सामाजिक न्याय के तूफ़ान से खौफजदा हैं साधु-संत

क्या यह  खबर पढ़कर ऐसा नहीं लगता कि धर्म सेना के जरिए संतों का संगठन देश को युद्ध क्षेत्र में तब्दील करने की तैयारियों में जुट चुका है! आखिर जिस देश की सत्ता पर हिंदुत्ववादियों की बहुत ही मज़बूत पकड़ है, उस देश में साधु- संतों को धर्म-सेना की कोई जरूरत हो सकती है! बहरहाल यहाँ सबसे बड़ा सवाल पैदा होता है कि सामने न तो कोई चुनाव है और न ही तानाशाही हिंदुत्ववादी सत्ता को कोई खतरा, फिर साधु-संत गुलामी के प्रतीकों के खिलाफ अभूतपूर्व माहौल पैदा करने के साथ गाँव-गाँव हिन्दू राष्ट्र का संविधान पहुंचाने, हस्ताक्षर अभियान चलाने, धर्म-सेना खड़ा करने के साथ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लायक तरह-तरह की गतिविधियाँ चलाने में नए सिरे क्यों मुस्तैद हो गए हैं? इसका जवाब है राहुल गांधी के जरिए उठता सामाजिक न्याय का तूफ़ान! यह सही है कि लोकसभा चुनाव 2024 में सामाजिक न्याय के तत्वों से लबालब भरे न्याय-पत्र नामक घोषणापत्र के जरिए मोदी के 400 पार के मंसूबों पर पानी फेरने वाले राहुल गांधी ने हरियाणा और महाराष्ट्र में अप्रत्याशित रूप से शिकस्त खाने के बावजूद सामाजिक न्याय की राजनीति के जोर से हिन्दू राष्ट्र के सपने में विभोर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अत्यंत कमजोर कर दिया है। अब मोदी सिर्फ केंचुआ सहित अपने बाकी तंत्र और साधु-संतों के सहारे ही उनके सामाजिक न्याय की आंधी का मुकाबला कर सकते हैं और साधु-संतों ने भी उनके पक्ष में अपना कर्तव्य स्थिर कर लिया है। जिस तरह साधु-संतों ने मंडल के बाद उठी सामाजिक न्याय की आंधी का मुकाबला मंदिर आन्दोलन के जरिए धर्मोन्माद फैला कर किया, उसी तरह वे अपने वर्गीय हित में हाथ में संविधान लेकर सामाजिक न्याय का तूफ़ान पैदा कर रहे राहुल गांधी के मुकाबले की तैयारियों में नए सिरे से जुटे गए हैं।

साधु-संतों का वर्गीय हित है ब्राह्मणों की स्वार्थ रक्षा

बहरहाल बहुतों को पता नहीं कि मोक्ष के लिए हरि-भजन में निमग्न रहने का संकल्प लेने वाले साधु-संत क्यों हरि भजन से ध्यान हटाकर खुद को भाजपा के औजार में तब्दील कर लेते हैं? इसका जवाब है अपना वर्गीय स्वार्थ ब्राहमणों के स्वार्थ की रक्षा।  जिन साधु-संतों के नेतृत्व में चले गुलामी के प्रतीकों के मुक्ति आंदोलन ने भाजपा को अप्रतिरोध्य बना दिया, उनके विषय में बहुतों को ठीक से जानकारी नहीं कि वे जाति से ब्राह्मण हैं। जी हाँ, साधु-संतों में 90% से ज्यादा उपस्थिति ब्राह्मणों की ही है क्योंकि शास्त्रों द्वारा संतई के लिये अधिकृत ब्राह्मण ही होते हैं। कुछ संख्या क्षत्रियों की भी हो सकती है।  पर, गुलामी के प्रतीकों की मुक्ति आँदोलन के दौर में उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, गिरिराज किशोर , आचार्य धर्मेन्द्र जैसे शुद्र साधु- साध्वियों का भी उदय हुआ, जिन्हें देखकर बहुतों को भ्रम हो सकता है कि  मंदिर आंदोलन में लगे साधु-संतों में सभी जाति के लोग रहे. नहीं,  उसमें अपवाद रुप से कुछ शुद्र और थोड़े क्षत्रिय रहे, 90 % से अधिक संख्या ब्राहमणों की ही रही, तो सचाई यह है कि साधु-संतों के भेष में गुलामी के प्रतीकों की मुक्ति की लड़ाई ब्राह्मणों द्वारा लड़ी गयी और आगे भी लड़ी जाती रहेगी। बहरहाल जगत मिथ्या, ब्रह्म सत्य का उच्च उद्घोष  करने वाले जिन साधु-संतों ने सड़कों पर उतर कर मंदिर आंदोलन के जरिये, अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में स्वाधीन भारत का सबसे बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया, वे किंतु मुसलमान और अंग्रेज भारत में कभी भी हरि-भजन से अपना ध्यान नहीं भटकाए। जबकि उस दौर में ब्राह्मण समाज से शंकराचार्य, रामानुज, तुलसीदास, सूरदास, रामदास काठियाबाबा, गंभीरनाथ, भोलानाथ गिरि, तैलंग स्वामी, वामाक्षेपा जैसे सुपर साधक भारत भूमि को धन्य किये थे। लेकिन, वे मुसलमानों और ईसाइयों की गुलामी से आंखें मूंदे हरि भजन में निमग्न रहे। पर, तीन दशक पूर्व देश पर कौन सी आफत आई कि साधु-संत  का वेष धारण किए लाखों- करोड़ों  की तादाद में ब्राह्मण हरि भजन छोड़कर गुलामी के प्रतीकों के मुक्ति आंदोलन में न सिर्फ संघ-भाजपा के साथ हो लिये, बल्कि उस आंदोलन का सामने रहकर नेतृत्व देने लगे? जिस आफत ने साधु-संतों  के वेश में छिपे ब्राह्मणों को  हरि- भजन से ध्यान हटाने के लिये विवश किया, वह थी मंडल की रिपोर्ट, जिसने आरक्षण का विस्तार करने के साथ बहुजन राज की संभावना उजागर कर दी थी। यही नहीं मंडल रिपोर्ट से ब्राहमणों सहित हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग से जन्मे क्षत्रियों और वैश्यों का शक्ति के स्रोतों पर एकाधिकार ध्वस्त हो जाने की संभावना पैदा गई थी, इसलिए साधु-संत उस हिन्दू राष्ट्र की लालच में भाजपा से अपना भविष्य जोड़ लिए, जो हिन्दू राष्ट्र उनके सजातियों को एक बार फिर स्वर्णिम काल में ले जा सकता है। मंडल की रिपोर्ट से ब्राह्मणों का  स्वार्थ जितना बाधित होने की संभावना जगाई थी, वैसी ही बल्कि, उससे भी ज्यादा संभावना राहुल गांधी के सामाजिक न्यायवादी अभियान ने पैदा कर दी है, इसलिए वे अपने वर्गीय हित में नए सिरे से भाजपा के पक्ष में मुस्तैद हो गए हैं।

साधु-संतों के अभियान की कैसे काट करे बहुजन बुद्धिजीवी 

बहरहाल जो साधु-संत संघ-भाजपा  के हिन्दू राष्ट्र के सपने को मूर्त रूप देने के लिए तरह-तरह का अभियान चला रहे हैं, उनका मुकाबला राजनीतिक दल के नेता प्रभावी तरीके से नहीं कर सकते। कारण, इनका हिन्दू समाज में इतना सम्मान है कि राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति, सीएम से पीएम तक उनके चरणों में लोटकर खुद को धन्य महसूस करते हैं। ऐसे सम्मानित साधु-संतों के खिलाफ  कुछ भी बोलने से उन्हें भारी राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। ऐसे में उनका मुकाबला कर सकते सिर्फ बहुजन बुद्धिजीवी जिनका समाज में पर्याप्त सम्मान है और वे अपने युक्ति-तर्कों से प्रतिक्रियावादी साधु-संतों को निरुत्तर भी कर सकते हैं। ऐसे में अगर बहुजन बुद्धिजीवी हिन्दू राष्ट्र के खतरे से समाज को बचाने के लिए सामने आने का मन बनाते हैं तो उन्हें कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा!  सबसे  पहले उन्हें ध्यान देना होगा कि कि प्रयागराज में पुण्य लूटने के लिए जो रिकॉर्ड तोड़ भीड़ जुटी,उसमें दलित-पिछड़ों की उपस्थिति आश्चर्यजनक रही।  महाकुंभ में जुटी भीड़ ही अबतक भाजपा का भरपूर साथ देते हुए, उसे अप्रतिरोध्य बनाती रही  है।

महाकुंभ में  भीड़ इसलिए नहीं जुटी कि वह मोक्ष की आकांक्षी है। नहीं! उसकी आकांक्षा दैवीय-चमत्कार के जरिये अपने जीवन में सुख समृद्धि लाना रहा है। इसी आकांक्षा के वशीभूत होकर वह भाजपा के गुलामी के प्रतीकों की मुक्ति अभियान का संगी बनती रही है। उसे लगता है ऐसे अभियान में साथ देने पर उनके जीवन में राम, कृष्ण जैसे भगवानों कृपा की  बरसात हो सकती है, जिससे उन्हें भी औरों की भांति जागतिक सुख सुलभ हो जायेगा। इस तबके ने कुंभ में अपनी उपस्थिति से रिकॉर्ड बनाकर यह भी साबित कर दिया है कि बहुजन बुद्धिजीवियों का ब्राह्मणवाद विरोधी आंदोलन पूरी तरह व्यर्थ रहा है। ऐसे में जरुरत इस बात की है कि वे दलित-पिछड़े वंचितों को जीवन में जागतिक सुख भोगने लायक सपना  दें, जिससे वे ईश्वर कृपा पर निर्भर रहना छोड़ दें।  दूसरी बात, यदि वे साधु-संतों के अभियान को व्यर्थ करना चाहते हैं तो वे कुछ ऐसा उपक्रम चलायें, जिससे समाज परिवर्तनकारी आंबेडकरवादी साहित्य जन-जन तक पहुंचे। ऐसे साहित्य के जोर से न सिर्फ ऋषि संविधान के खतरे से वंचित बहुजनों को बचाया जा सकता है, बल्कि हिन्दू धर्म शास्त्रों द्वारा पैदा की गई दैविक गुलामी से भी उन्हें निजात दिलाया  जा सकता है। अब तक प्रयासों से हम उतना आंबेडकरवादी साहित्य लोगों तक नहीं पहुंचा पाए, जितना चाहिए। लेकिन आज के इंटरनेट के युग में ई-बुक की शक्ल में नाम मात्र का शुल्क लेकर सैकड़ों की संख्या में आंबेडकरवादी साहित्य बड़ी सुगमता से लोगों को मुहैया कराया जा सकता है।

एक बात और ध्यान में रखनी  होगी  कि बहुजन बुद्धिजीवी,  नेताओं की तरह लाखों की भीड़ जुटाकर अपनी बात जनता तक नहीं पहुंचा सकते, पर,  हस्ताक्षर अभियान के जरिये यह काम करने में कोई समस्या नहीं है।  जिस तरह साधु-संत श्रीकृष्णजन्मभूमि  मुक्ति  आन्दोलन को धार देने के लिए विश्व भर में विधि विशेषज्ञ,  शिक्षाविद, रिटायर्ड अधिकारियों, वास्तुशास्त्रियों, आर्किलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के सदस्यों,  विचारकों को जोड़कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हस्ताक्षर अभियान चलाने जा रहे है, इंटरनेट के युग में  ऐसा अभियान चलाना बहुजन बुद्धिजीवियों के लिए भी कठिन नहीं है। लेकिन बात सिर्फ जन-जन तक आंबेडकरवादी साहित्य पहुँचाने और हस्ताक्षर अभियान चलाने से भी नहीं बनेगी! उनके हिन्दू राष्ट्र के अभियान पर पानी फेरने के लिए 15 लाख धर्म-सैनिकों का विकल्प भी ढूँढना होगा, जो थोड़ा कठिन तो है पर, असंभव नहीं।

एच एल दुसाध
एच एल दुसाध
लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

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