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रिपोर्ट : भारत में तेजी से बढ़ी बेरोजगारी, शिक्षित बेरोजगारों की हिस्सेदारी में 11% की वृद्धि

भारत में बीते 22 वर्षों के दौरान माध्यमिक या उससे ऊपर की शिक्षा प्राप्त बेरोजगार युवाओं की संख्या बढ़ी है। सन 2000 में सभी बेरोजगारों में शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी 54.2% थी अब यह संख्या बढ़कर 2022 में 65.7% हो गई है।

आपको वह दृश्य तो याद ही होगा जब विगत वर्ष संसद के शीतकालीन सत्र में 4 युवा रोजगार की मांग करते हुए देश की संसद तक पहुंच गए थे, जिनमें से 2 युवक संसद के अंदर पहुंच गए थे और गैस का स्प्रे कर लोकसभा को धुएं से भर दिया था। संसद में सुरक्षा चूक के साथ ही इस घटना ने देश में बेरोजगारी की गंभीर हो चुकी समस्या को भी देश के सामने ला दिया था।

भारत में बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है। इस बात की पुष्टि हाल ही में जारी इंडिया इम्प्लॉयमेन्ट रिपोर्ट 2024 ने भी की है। लोकसभा चुनाव-2024 के मद्देनजर विपक्षी पार्टियां बेरोजगारी को चुनावी मुद्दा भी बना रही हैं। इंडिया इम्प्लॉयमेन्ट रिपोर्ट 2024 को इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन एवं इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट ने जारी किया है। इस रिपोर्ट के आंकड़े काफी चिंताजनक है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में काम ढूंढ रहे कुल बेरोजगारों में 83 प्रतिशत युवा हैं।

शिक्षित युवाओं में बढ़ी बेरोजगारी

भारत में बीते 22 वर्षों के दौरान माध्यमिक या उससे ऊपर की शिक्षा प्राप्त बेरोजगार युवाओं की संख्या बढ़ी है। सन 2000 में सभी बेरोजगारों में शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी 54.2% थी अब यह संख्या बढ़कर 2022 में 65.7% हो गई है।

इन शिक्षित बेरोजगार युवाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी 76.7% है जो पुरुषों (62.2%) की तुलना में ज्यादा है। यह बताता है कि पढ़ी-लिखी महिलाओं के लिए रोजगार प्राप्त करना पुरुषों के मुकाबले ज्यादा दुर्लभ है। 

रिपोर्ट के अनुसार देश में माध्यमिक शिक्षा के बाद स्कूल छोड़ने की दर अभी भी काफी ज्यादा है, गरीब राज्यों और हासिए के समाज में रहने वाले लोगों में यह दर सबसे ज्यादा है। 

रोजगार की तलाश में भटक रहे युवा

भारत में काम की तलाश में लगे हुए कुल बेरोजगारों में 83% युवा हैं। श्रमिकों की बात की जाए तो 90% श्रमिक अनौपचारिक काम में है जबकि नियमित काम का हिस्सा जो 2000 के बाद लगातार बढ़ रहा था 2018 के बाद कम हो गया है। नियमित श्रमिकों और स्वरोजगार वाले व्यक्तियों के वेतन में साल 2019 के बाद गिरावट देखी गई है।  कौशलहीन श्रमिकों को 2022 में न्यूनतम वेतन भी नहीं मिला है। 

भारत के कार्यबल में शामिल कुल लोगों में से बहुत कम प्रतिशत सामाजिक सुरक्षा के दायरे में है, श्रमिकों एवं कर्मचारियों के अधिकारों के प्रति लापरवाह ठेकेदारी प्रथा में वृद्धि हुई है। कुछ प्रतिशत नियमित कर्मचारी ही दीर्घकालिक अनुबंधों के दायरे में आते हैं।

रोजगार के क्षेत्र में भी असमानता कायम 

एफर्मेटिव एक्शन (आरक्षण), वंचित एवं दमित समुदायों को लक्षित नीतियों के बावजूद अनुसूचित जाति और जनजाति अभी भी बेहतर नौकरियां तक पहुंच के मामले में पीछे हैं। अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की काम में भागीदारी तो है लेकिन यह भागीदारी कम वेतन वाले अस्थाई, अनौपचारिक कामों में है। रिपोर्ट के अनुसार सभी समूहों के शैक्षिक स्तर में सुधार होने के बावजूद सामाजिक समूह के भीतर पदानुक्रम (ऊंच-नीच) कायम है।

स्किल इंडिया पर सवाल 

रिपोर्ट के आंकड़ों ने भारत सरकार के स्किल इंडिया कार्यक्रम की कलई भी खोल दी है। युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से यह कार्यक्रम 15 जुलाई 2015 को लांच हुआ था। 

रिपोर्ट के अनुसार- युवाओं के पास आधुनिक समय की जरूरतों के अनुसार कार्य करने का कौशल नहीं है। 75% युवा अटैचमेंट के साथ ई-मेल भेजने में असमर्थ हैं, 60% युवा फाइलों को कॉपी-पेस्ट करने में असमर्थ हैं और 90% युवा मैथ के फॉर्मूले को स्प्रेडशीट में डालने में असमर्थ हैं।

क्या हैं सुझाव- 

रिपोर्ट के अनुसार, नौकरी की तलाश में महिलाओं, बच्चों और युवाओं का पलायन तेजी से शहरों की ओर देखने को मिला है। ऐसे में सरकार को शहरों के विकास को लेकर ऐसी योजना बनाने की जरूरत है, जिसमें इन सभी को शामिल किया जा सके।

इसके अलावा रिपोर्ट में रोजगार सृजन को बढ़ावा देना, रोजगार की गुणवत्ता में सुधार करना, श्रम बाज़ार की असमानताओं को दूर करना, कौशल और सक्रिय श्रम बाजार नीतियों को मजबूत करना, श्रम बाजार पैटर्न और युवा रोजगार पर ज्ञान के अंतर को कम करना जैसे सुझाव बताए गए हैं। 

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