7 अगस्त, 1990 को प्रकाशित मंडल रिपोर्ट से देश और समाज के बंटने के कथित खतरे से निजात दिलाने के लिए भाजपा के एलके आडवाणी ने 25 सितम्बर, 1990 से गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ-यात्रा निकालने की जो घोषणा की, उसके बाद से राम नगरी अयोध्या लगातार चर्चा में रही है. उनकी उस घोषणा के बाद से गंगा-जमुना में ढेरों पानी बह चुका है. आडवाणी द्वारा शुरू किये गए राम मंदिर आन्दोलन के बाद देश की बेशुमार संपदा और असंख्य लोगों की प्राण-हानि के बाद भाजपा केंद्र से लेकर राज्यों तक एकाधिक बार सत्ता में आई और उसने सत्ता के जोर से न सिर्फ बहुजनों के आरक्षण को कागजों की शोभा बनाने में सफलता पायी बल्कि पिछले अगस्त में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन भी करा लिया. राम मदिर निर्माण के शिलान्यास के बाद लगा अयोध्या की चर्चा पर अब विराम लग जायेगा. लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ: राम नगरी अयोध्या आज भी किन्हीं न किन्हीं कारणों से लगातार चर्चा में है.जैसे कुछ दिन पूर्व यह राममंदिर के लिए भूमि खरीद घोटाले में कारण पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित की थी. इस घोटाले पर चर्चा का दौर थमा भी नहीं था कि नए सिरे से एक बार फिर यह चर्चा में तब आ गई जब गत 26 जून को अयोध्या के विकास के लिए बने विजन डॉक्यूमेंट पर चर्चा के लिए पीएम मोदी की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण बैठक वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हुई, जिसमे यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ सहित उनकी कैबिनेट के सदस्य भी शामिल रहे. मोदी ने इस वर्चुअल मीटिंग के जरिये अयोध्या के विकास की योजना की समीक्षा की.उन्होंने खास सुझाव यह दिया कि इसका इस तरह विकास हो कि आज का युवा कल के अयोध्या का तीर्थ यात्री बने. आचार्य सत्येन्द्र दास ने अयोध्या के विकास की परियोजना की समीक्षा के लिए पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली बैठक पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह अच्छी बात है. प्रधान और यूपी के मुख्यमंत्री के इससे जुड़े बगैर यहाँ जमीनी स्तर पर विकास कार्य देखने को नहीं मिलेंगे .
स्मरण रहे भाजपा का पितृ संगठन संघ जिस हिन्दू राष्ट्र की बात करता है, उसमें शूद्रातिशूद्रों का अर्थोपार्जन की गतिविधियों में भागीदारी हिन्दू धर्म के विरुद्ध जाएगी। कारण, जिन हिन्दू धर्म शास्त्रों के द्वारा संघ के सपनों के हिन्दू राष्ट्र को परिचालित होना है, वे धर्मशास्त्र अर्थोपार्जन की समस्त गतिविधियों के साथ शक्ति के समस्त स्रोतों (आर्थिक-राजनैतिक- शैक्षिक- धार्मिक इत्यादि) के भोग का अधिकार सिर्फ हिन्दू ईश्वर के मुख-बाहु-जंघे से जन्मे लोगों को ही प्रदान करते हैं। ऐसे में जाहिर है जो अयोध्या हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक नगरी में विकसित होने जा रही है, वहाँ मोदी-योगी की सरकारें शूद्रातिशूद्रों के साथ म्लेच्छों को आर्थिक गतिविधियों में भागीदार कोई प्रावधान नहीं रचेंगी। उल्टे ऐसा हो सकता कि रामनगरी में हिन्दू धर्म की पताका और शान से लहराने के लिए, गैर-सवर्णों के जो पहले के व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं, उन्हें भी छल-बल-कल से ध्वस्त कर दिया जाय।
अयोध्या के विकास को लेकर जिस विजन डाकुमेंट पर अहम् बैठक हुई उसे तैयार किया है ली एसोसिएट साउथ एशिया प्राइवेट लिमिटेड ने. इसने जो विजन डाकुमेंट तैयार किया है, उसके हिसाब से मंदिर निर्माण के दौरान और उसके बाद यहाँ 4 लाख से अधिक प्रत्यक्ष और 8 लाख अप्रत्यक्ष रोजगार की उम्मीद है. इसमें अयोध्या को वैदिक नगरी के रूप में विकसित करने का डिजायन बनाया गया है. इसमें तीर्थ नगरी अयोध्या, हैरिटेज सिटी, सौर शहर, समरस अयोध्या, स्मार्ट अयोध्या की बात शामिल है. अयोध्या को आध्यात्मिक , ज्ञान केन्द्रित, उत्सव उन्मुख नगर, तीर्थ यात्रियों की सुविधा के अनुसार विकसित किये जाने की योजना पर काम हो रहा है. यहाँ मल्टीलेवल कार पार्किंग, पर्यटन सुविधाकेंद्र की स्थापना , आउटर रिंग रोड, राम मंदिर तक जाने वाले रास्तों, स्पाइन रोड के विकास पर तेजी से काम किया जा रहा है. बहरहाल अयोध्या के विकास के विजन डाकुमेंट की प्रधानमंत्री और यूपी के सीएम द्वारा समीक्षा के बाद बहुजन बुद्धिजीवी प्रायः ग्यारह महीने पूर्व का सवाल एक बार फिर उठाने लगे हैं और वह सवाल है अयोध्या के विकास में बहुजनों की भागीदारी का!
स्मरण रहे 2020 के 5 अगस्त को जब अयोध्या में राममंदिर का भूमि पूजन हुआ, उसके अगले ही दिन से चारों दिशाओं में रामनगरी के आर्थिक विकास के चर्चे के शुरू हो गए थे। इस चर्चा के पीछे रामजन्मभूमि परिसर में भूमि पूजन के बाद आयोजित समारोह मे मोदी–योगी द्वारा व्यक्त उद्गार रहा। यूपी के मुख्यमंत्री योगी ने उक्त समारोह में जहाँ रामायण सर्किट के बहाने विकास की झलक दिखलाई, वहीं मोदी ने अपने भाषण में रामनगरी के आर्थिक विकास का सूत्र देते हुये कहा था कि इस मंदिर के बनने से इस क्षेत्र का अर्थतंत्र ही बादल जाएगा। यहाँ हर क्षेत्र मे नए अवसर बनेंगे: हर क्षेत्र में नए अवसर बढ़ेंगे।‘ बहरहाल योगी- मोदी द्वारा अयोध्या के विकास का सपना दिखाये जाने के बाद जिस रामनगरी का आर्थिक विकास चर्चा का विषय बना,उसके बारे में मोदी सरकार के मुखपत्र के रूप में विख्यात देश के सबसे बड़े अखबार में 9 अगस्त,2020 को‘ समृद्ध अयोध्या ‘ शीर्षक से संपादकीय लिखकर इसकी भावी समृद्धि की तस्वीर पेश की थी, जिसमें लिखा था – ‘अयोध्या में राममंदिर भूमि पूजन के साथ ही रामनगरी का भी बहुत जल्दी कायाकल्प करने की पूरी तैयारी हो चुकी है। व्यावसायिक गतिविधियों का बहुत व्यापक केंद्र शीघ्र ही धरातल पर होगा। अयोध्या नगरी अब तक के अपने सौंदर्य से अलग ही नजर आएगी। यहाँ वाणिज्यिक संकुल के रूप में तीन नए बाजार विकसित होंगे। हालांकि कुछ वर्षों में अयोध्या के शहरी ढांचे में काफी बदलाव हुआ है। लेकिन नयी परिस्थितियों में भविष्य की जरूरतों को देखते हुये आधुनिक स्वरूप वाली बाज़ारों की अवश्यकता है। राम मंदिर जाने के लिए एनएच-27 पर मोहबरा से होते हुये टेढ़ी बाजार तक एलीवेटेड रोड को सबसे उपुक्त माना जा रह है। इसी के आसपास ये आधुनिक बाजार तैयार होंगे, ताकि इस मार्ग से आवागमन करने वाले श्रद्धालु और पर्यटकों को ख़रीदारी की बेहतर सुविधा मिल सके। इसके अलावा भी व्यावसायिक गतिविधियों के लिए कई योजनाएँ हैं।
यहाँ मैं फिर सिद्धान्त के साथ अपवाद की बात दोहराना चाहूँगा। हिंदुओं अर्थात भारत के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग को धर्म से मिली शक्ति / सत्ता का सामान्य यह सिद्धान्त है कि शासक वर्ग ने इसका सद्व्यवहार सिर्फ और सिर्फ अपनी सुख-समृद्धि का महल खड़ा करने में किया है। इस मामले मे तो भाजपा सरकारों ने बहुत ही शर्मनाक दृष्टांत स्थापित किया है। राममंदिर के सहारे राज्यों से लेकर केंद्र तक की सत्ता पर मजबूती से काबिज हुई भाजपा ने सत्ता का इस्तेमान सिर्फ बहुसंख्य वंचितों को गुलाम बनाने;देश को तोड़ने तथा हिंदुओं को बार्बर मानव समुदाय में तब्दील करने में किया है। यह काम इतनी निर्ममता और बेहयाई से किया है कि मुमकिन है मर्यादा पुरुषोत्तम का लिहाज करते हुये उनमे प्रायश्चित बोध पनपे और वे शंबूक व सबरियों की वर्तमान पीढ़ी का जीवन सुखमय बनाने के लिए अपवाद स्वरूप कुछ अलग काम कर जाएँ।
इन व्यावसायिक और आर्थिक गतिविधियों का दूसरा पहलू यह है कि रामनगरी के लोगों को स्वरोजगार के लिए व्यवस्थित स्थान मिल सकेगा। निश्चित रूप से सरकार का यह कदम न केवल अयोध्या की सूरत बदलने वाला है, बल्कि उसकी आर्थिक समृद्धि का नया अध्याय भी रचने वाला है। भले ही अयोध्या राम नगरी हो, लेकिन आर्थिक विकास के मामले में काफी पिछड़ी रही है। ऐसा उसका अपेक्षित विकास न होने के कारण था, लेकिन अब यह जिला चौतरफा सड़कों की जाल से जुड़ चुका है। आसपास के जिले भी न केवल इसके और करीब आ चुके हैं, बल्कि बाहरी पर्यटकों और श्रद्धालुओं के भी पहुँचने का मार्ग प्रशस्त है। उम्मीद है कि यह अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन की सूची में बहुत जल्द अत्यंत लोकप्रिय केंद्र साबित होगा। ऐसे में एक अतिविकसित धर्मनगरी में जो भी आधुनिक सुख-सुविधाएं अपेक्षित होती हैं, उन सब का विकास अति शीघ्र और बहुत तेजी से करना होगा। इन जरूरतों को समझते हुये प्रदेश सरकार इसी दिशा में काम कर रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही अयोध्या नगरी हर दृष्टि से एक नए और समृद्ध स्वरूप में हमारे सामने होगी। अयोध्या की विकासगाथा उत्तर प्रदेश को भी समृद्ध करेगी।‘ बहरहाल ऐसा नहीं कि सिर्फ भाजपा के मुखपत्र के रूप में विख्यात अख़बार में ही अयोध्या के विकास का नक्शा खींचा गया था : तमाम प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में ही कमोबेश ऐसा ही कहा गया था. मीडिया में अयोध्या के भावी विकास का रूप देखकर तब ढेरों बहुजन बुद्धिजीवियों ने सवाल उठाया था ,’अयोध्या की आर्थिक समृद्धि में क्या दलित, आदिवासी , पिछड़े और अल्पसंख्यक भी हिस्सेदार होंगे?’ 26 जून को विजन डाकुमेंट की समीक्षा के बाद एक बार फिर वे सवाल उठा रहे हैं कि क्या अयोध्या के विकास में बहुजन भी भागीदार होंगे?
बहुजन बुद्धिजीवी जो सवाल उठा रहे हैं, उस पर जरुर चर्चा का दौर शुरू होगा और सरकार के लिए इसकी अनदेखी भी आसान नहीं होगी. हो सकता है इसे लेकर बहुजनों की ओर से धरना-प्रदर्शन भी शुरू हो. किन्तु उपरोक्त सवाल के जवाब में दो कारणों से इस लेखक का मानना है कि अयोध्या की समृद्धि में बहुजनों को हिस्सेदार बनाने की जितनी भी मांग क्यों न उठे, दो कारणों से उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं होगी। पहला, यह कि आज़ाद भारत मे संघ प्रशिक्षित मोदी ने जिस उग्र तरीके से वर्ग-संघर्ष छेड़ा है, वह अभूतपूर्व है। वर्ग- संघर्ष मे वह अपने वर्ग- शत्रुओं (शूद्रातिशूद्रों) को फिनिश करने तथा शक्ति के समस्त स्रोत देश के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हाथ में सौपने के लिए जिस हद तक आमादा हैं, उससे अयोध्या की आर्थिक समृद्धि मे दलित, आदिवासी, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की भागीदारी का सपना देखना दुष्कर है। लेकिन सिर्फ जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हाथों में शक्ति के समस्त स्रोत सुलभ कराने के लिए ही नहीं, बल्कि हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की दोहरी जरूरत भी मोदी-योगी सरकारों को अयोध्या की आर्थिक गतिविधियों में गैर-सवणों को हिस्सा देने से रोकेगी ।
स्मरण रहे भाजपा का पितृ संगठन संघ जिस हिन्दू राष्ट्र की बात करता है, उसमें शूद्रातिशूद्रों का अर्थोपार्जन की गतिविधियों में भागीदारी हिन्दू धर्म के विरुद्ध जाएगी। कारण, जिन हिन्दू धर्म शास्त्रों के द्वारा संघ के सपनों के हिन्दू राष्ट्र को परिचालित होना है, वे धर्मशास्त्र अर्थोपार्जन की समस्त गतिविधियों के साथ शक्ति के समस्त स्रोतों (आर्थिक-राजनैतिक- शैक्षिक- धार्मिक इत्यादि) के भोग का अधिकार सिर्फ हिन्दू ईश्वर के मुख-बाहु-जंघे से जन्मे लोगों को ही प्रदान करते हैं। ऐसे में जाहिर है जो अयोध्या हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक नगरी में विकसित होने जा रही है, वहाँ मोदी-योगी की सरकारें शूद्रातिशूद्रों के साथ म्लेच्छों को आर्थिक गतिविधियों में भागीदार कोई प्रावधान नहीं रचेंगी। उल्टे ऐसा हो सकता कि रामनगरी में हिन्दू धर्म की पताका और शान से लहराने के लिए, गैर-सवर्णों के जो पहले के व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं, उन्हें भी छल-बल-कल से ध्वस्त कर दिया जाय। किन्तु अयोध्या की आर्थिक समृद्धि में गैर-सवर्णों के बहिष्कृत होने के पक्ष में मैंने जो युक्ति खड़ी की है, वह भाजपा के अतीत का चाल–चलन देखते हुये एक सामान्य सिद्धान्त मे आएगा। किन्तु विद्वान कहते हैं कि हर सामान्य सिद्धान्त का कुछ अपवाद भी होता है। इसलिए रामनगरी के अर्थतन्त्र मे गैर-सवर्णों की हिस्सेदारी के प्रति चाहे तो कुछ लोग आशावादी भी हो सकते हैं।
जो लोग आशावादी होना चाहते हैं उनके पक्ष सबसे बड़ी जो बात जाती है, वह यह कि इस धार्मिक नगरी का अर्थतन्त्र उस राम के नाम पर विकसित होने जा रहा है, जिन्हें आम हिन्दू से लेकर छोटे-बड़े सभी साधु-संत और राष्ट्रवादी सदम्भ मर्यादा पुरुषोतम कहते हैं। राम मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों हैं, इसके पक्ष मे युक्ति खड़ी करते हुये भाजपा समर्थक सबसे बड़े अखबार ने कहा है,’भगवान राम का सम्पूर्ण जीवन सबको साथ लेकर चलने, सबके मान-सम्मान की चिंता करने, सबकी भलाई सुनिश्चित करने के प्रति समर्पित रहा है, इसीलिए वह मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता कि राममन्दिर निर्माण की प्रक्रिया जैसे-जैसे आगे बढ़े, वैसे-वैसे जन-जन में यह संदेश जाये कि राम मंदिर का निर्माण एक राष्ट्र निर्माण का माध्यम है’।
यहाँ मैं फिर सिद्धान्त के साथ अपवाद की बात दोहराना चाहूँगा। हिंदुओं अर्थात भारत के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग को धर्म से मिली शक्ति / सत्ता का सामान्य यह सिद्धान्त है कि शासक वर्ग ने इसका सद्व्यवहार सिर्फ और सिर्फ अपनी सुख-समृद्धि का महल खड़ा करने में किया है। इस मामले मे तो भाजपा सरकारों ने बहुत ही शर्मनाक दृष्टांत स्थापित किया है। राममंदिर के सहारे राज्यों से लेकर केंद्र तक की सत्ता पर मजबूती से काबिज हुई भाजपा ने सत्ता का इस्तेमान सिर्फ बहुसंख्य वंचितों को गुलाम बनाने;देश को तोड़ने तथा हिंदुओं को बार्बर मानव समुदाय में तब्दील करने में किया है। यह काम इतनी निर्ममता और बेहयाई से किया है कि मुमकिन है मर्यादा पुरुषोत्तम का लिहाज करते हुये उनमे प्रायश्चित बोध पनपे और वे शंबूक व सबरियों की वर्तमान पीढ़ी का जीवन सुखमय बनाने के लिए अपवाद स्वरूप कुछ अलग काम कर जाएँ।