लोकविद्या जनांदोलन और गाँव के लोग ने लोकगायन और प्रदर्शनकारी कलाओं के प्रस्तुतिकरण की दिशा में पहलकदमी करते हुये बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती के मौके पर एक सांस्कृतिक आयोजन शुरू किया जिसमें पहला आयोजन लोरिकी गायन का हुआ। आजमगढ़ निवासी प्रसिद्ध लोरिकी कलाकार केदार यादव ने अपने गायन से उपस्थित जनसमूह को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत में रामजी यादव ने आयोजन के बारे में बताते हुये कहा कि यह आयोजन लोककलाओं के माध्यम से जनता में संवाद बनाने की दिशा एक प्रयास है। लोकविद्या जनांदोलन और गाँव के लोग इसे हर महीने की एक निश्चित तारीख को विद्या आश्रम, सारनाथ के प्रांगण में आयोजित करते रहेंगे। सुनील सहस्रबुद्धे ने गायक केदार यादव और उनके सहयोगी लालता प्रसाद को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।
स्वागत उद्बोधन में लोकविद्या जनांदोलन के प्रणेता सुनील सहस्रबुद्धे ने कहा कि जिन्हें लोग लोककलाएँ कहते हैं दरअसल वे कलाएँ है। ये पीढ़ियों से चलती आई हैं और इनमें जीवन का निचोड़ है। ये कलाएँ न सिर्फ जनता के राग-विराग की अभिव्यक्तियाँ हैं बल्कि जनता के जीवन में परिवर्तन लाने का सबसे सशक्त माध्यम भी हैं। आज जरूरत है कि इन कलाओं के मूल स्वर को सुना जाय और समाजों-समुदायों के बीच संवादों की टूटी कड़ियों को जोड़ा जाय।
गायक केदार यादव ने बताया कि उन्होंने दस वर्ष पहले लोरिकी गायन छोड़ दिया था लेकिन रामजी यादव आर्काइव यूट्यूब चैनल पर इंटरव्यू देते समय जब मुझसे गाने का आग्रह किया गया तब मैंने न केवल एक प्रसंग गया बल्कि मेरे मन नए सिरे से गाने की ललक पैदा हुई। रामजी भाई और बेचू भाई की प्रेरणा से यह संभव हुआ और अब मैं समझता हूँ कि मुझे अपने पूर्वज की यह गाथा गानी चाहिए।
केदार ने अपने गायन लोरिक की शादी के प्रसंग से कथा को उठाया और तीन घंटे तक गाया। लोरिक और मंजरी की शादी इसलिए लोकाख्यान का एक असाधारण प्रसंग है क्योंकि मंजरी एक अत्याचारी सामंत के भय के साये में बड़ी हुई। उसकी तीन बड़ी बहनें उस अत्याचारी मोलागित द्वारा अपहृत कर ली गईं और चौथी बहन ने कुएं में कूदकर जान दे दी। स्वयं मंजरी को बारह वर्ष की उम्र में उसका शिकार बनना था। लोरिक की खोज उस युवती की मुक्ति के लिए ही की गई। लेकिन शादी के अभियान का यह प्रसंग असामान्य घटनाओं और चुनौतियों वाला था।
इस पूरे प्रसंग को केदार ने पूरी तन्मयता से गाया। उनकी लय और प्रसंगानुसार उतार-चढ़ाव ने सुनने वालों को भाव-विह्वल कर दिया। वे और भी गाना चाहते थे लेकिन कार्यक्रम आठ बजे रात को समाप्त कर दिया गया।
डॉ अंबेडकर जयंती पर शहर में अनेकों आयोजन होने के कारण उपस्थिति अपेक्षाकृत कम थी लेकिन फिर भी प्रबुद्ध श्रोताओं का एक जमावड़ा मौजूद था जिसमें वाराणसी के अतिरिक्त चंदौली, गाजीपुर और जौनपुर से भी लोग शामिल हुये। उपस्थित श्रोताओं में डॉ सुनील सहस्रबुद्धे, चित्रा सहस्रबुद्धे, डॉ भैयालाल यादव, सत्यनारायण सिंह यादव, योगेंद्रनाथ आर यादव, दीपक शर्मा, धीरेंद्र कुमार यादव, अपर्णा, राहुल यादव, लक्ष्मण प्रसाद, कमलेश प्रसाद, रामजनम, ऋषभ यादव, शैलेंद्र प्रताप यादव, ओम प्रकाश अमित, महेंद्र सिंह यादव, ओम कुमार श्रीवास्तव तथा रामजी यादव आदि थे।
अंत में धन्यवाद ज्ञापन करते हुये लोकविद्या की संयोजक डॉ चित्रा सहस्रबुद्धे ने कहा कि विद्या आश्रम इस तरह के आयोजन लगातार करता रहेगा।
अगला आयोजन मई महीने में होगा।