मिर्जापुर लोकसभा के मझवां विधानसभा का आखिरी गांव सिन्धोरा जो गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है और नदी, हरियाली और पहाड़ उसको सौन्दर्य प्रदान करते हैं। सीखड़-सिंधोरा को जोड़नेवाला पीपापुल यहीं बना है। घाट के ऊपर स्थित दुर्गा मंदिर के सामने पीपल का विशाल पेड़ है जिसके नीचे बने चबूतरों पर अनेक लोग जमे हैं। यह जगह लोगों से गुलजार बनी रहती है क्योंकि यहाँ न केवल बैठने की जगह है बल्कि चाय और पान की गुमटी भी हैं। सबकुछ सामान्य लगता है लेकिन लोगों से स्थानीय स्तर की समस्याओं की बात की जाय तो वे कहते हैं यहां भी बेरोजगारी, शिक्षा और सड़क की समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। कुछ लोगों ने कहा कि रेलवे अंडरपास नीचे होने से अब गाँव में बड़ी गाड़ियाँ नहीं आ पातीं।
पूछने पर पता लगा कि इस गांव के निषाद जाति के लोगों की सबसे बड़ी समस्या ग्राम समाज की जमींन का पट्टा नहीं मिलना है। यह समस्या वर्षों से अभी बनी हुई है। यही नहीं, लोग कहते हैं कि गांव में नहर तो बनी हुई है लेकिन नहर में पानी अभी भी नहीं आ रहा है। गांव के किसान नहर में पानी न आने से 70 रूपए प्रति घंटे के हिसाब से पानी खरीद कर खेती कर रहे हैं।
इसी गांव के किसान राजाराम भारती जिनके पास आज सिर्फ दो बीघा ही जमीन है, किसानों की सबसे बड़ी समस्या के सवाल पर बोले, ‘किसानों की सबसे बड़ी समस्या तो यही है कि खाद, बिजली और पानी पहले से काफी महंगा हो गया है। 70 रुपए घंटे के हिसाब से पानी लेकर खेती करता हूं।’ राजाराम भारती की शिकायत इस बात को लेकर भी है कि गंगा नदी पास में है और गांव तक नहर भी बनी हुई है लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण आज तक नहर में पानी नहीं आया।’ उनके मुताबिक नहर 2002 में ही बन गई थी।
राजाराम भारती ने किसानों के साथ हो रहे छल की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘यह सरकार किसानों के साथ कितना छल कर रही है उसका एक नमूना खाद में देखने को मिल सकता है। यूरिया की एक बोरी पहले 50 किलो की आती थी। आज 45 किलो की बोरी आ रही है और दाम भी बढ़ाकर 300 कर दिया गया है।’
स्थानीय स्तर पर गांव के लोगों के लिए सड़क एक बड़ी समस्या बनी हुई है। रेलवे पुल के बाद से गाँव में आने के लिए रास्ता ही नहीं है। गाँव में आने वाली गाड़ियाँ उधर ही रोकनी पड़ जाती हैं। यहां से सिन्धोरा गांव के लिए जो सड़क जाती है वह न सिर्फ पूरी तरह से टूट चुकी है बल्कि उसपर कोई बड़ी गाड़ी भी नहीं जा सकती।
राजाराम भारती कहते हैं, ‘इमरजेंसी में एम्बुलेंस गांव तक नहीं आ पाती है। यही नहीं, गांव में जब किसी का मकान बनवाना होता है तो हम लोग ट्रैक्टर से सामान नहीं मंगवा पाते हैं।’ इस समस्या के खिलाफ आप लोगों ने आवाज क्यों नहीं उठाई? इस सवाल के जवाब में राजाराम बोले, ‘गांव के आवागमन के मार्ग कि समस्या को दूर करने के लिए गांव के लोगों ने जनप्रतिनिधियों से मिलने के अलावा धरना प्रदर्शन भी किया। कई बार हम लोगों ने ब्लॉक पर इसके लिए लिखित आवेदन भी किया, लेकिन बात नहीं बनी। मिर्जापुर अमीपट्टी से चुनार तक एक सड़क गई हुई है, उसमें एक नाला है। उस पर एक पुलिया बननी है जो कि अभी तक नहीं बनी है। उसकी वजह से बड़ी गाड़ियां नहीं आ पा रही हैं। रेलवे अंडरपास की ऊंचाई कम होने से भारी गाड़ियों के आवागमन पर सरकार की ओर से रोक लगा दी गई है जिसके कारण इस क्षेत्र के लोगों को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।’
गौरतलब है कि हावड़ा-दिल्ली रेलमार्ग पर इस गाँव में आने के लिए जो अंडरपास बनाया गया है वह सतह से आठ-नौ फीट ऊंचा ही रह गया है जिसके कारण कार या जीप वगैरह तो आसानी से आ जा सकती हैं लेकिन ऊँची गाड़ियाँ नहीं आ पातीं। इसके लिए सड़क को और नीची करनी पड़ेगी जिसकी फिलहाल कोई संभावना नज़र नहीं आती। लोगों ने बताया कि विगत दिनों गाँव में सिलेन्डर फटने और घर गिरने की घटनाएँ हुईं लेकिन अंडरपास के कारण ही दमकल और एंबुलेंस यहाँ तक नहीं पहुँच पाई और दो लोगों की मृत्यु हो गई थी। इस बात से लोगों में बहुत गुस्सा है।
कथित रूप से सरकार अनेक प्रकार की योजनाएं चला रही है लेकिन क्या इन योजनाओं का लाभ आम जनता को मिल रहा है? इसी को जानने के लिए जब सिन्धोरा गांव के पप्पू से पूछा गया कि आप किन- किन सरकारी योजनाओं का लाभ पा रहे हैं तो वे बोले, ‘आज तक मुझे किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला। प्रधानमंत्री आवास के लिए मैं कई बार अपने प्रधान रामबिलास से मिला, आश्वासन भी उनकी तरफ से मिला, लेकिन मकान नहीं।’
पप्पू के पास न तो जमीन-जायदाद है और न ही रहने के लिए मकान। किसी तरह से मजदूरी करके अपना परिवार चला रहे हैं। पप्पू के चार बच्चे हैं। वे भी मजदूरी का काम करते हैं, लेकिन कमाई इतनी नहीं हो पाती कि वे अपने रहने के लिए एक पक्का मकान बनवा सकें। पप्पू की इच्छा है कि उनके पास अपना एक पक्का मकान हो लेकिन उनकी यह इच्छा कब पूरी होगी यह एक बड़ा सवाल है।
इसी गांव के रहने वाले पवन कुमार गांव की समस्या के सवाल पर बोले, ‘गांव में पचास साल से भी अधिक समय से जो लोग रह रहे हैं, उनमें जो लोग गरीब और भूमिहीन थे उनको जमींन तो नहीं मिली, लेकिन यहां जो काश्तकार थे उनका पट्टा हो गया। आज तक भूमिहीनों को पट्टा हुआ ही नहीं।’
पवन कुमार का आरोप है कि गांव के प्रधान ग्राम सभा की जमींन को कुछ खुद दबा लिए और कुछ अपने करीबी काश्तकारों को दे दिए। जिनके पास जमींन नहीं है वे आज भी यह आस लगाए बैठे हैं कि उन्हें जमींन मिल जायेगी।’
क्या आपने कभी प्रधान से मिलकर जमींन की मांग की? इस सवाल पर पवन कुमार बोले, ‘प्रधान से मिलकर बोले थे तो उन्होंने कहा कि हमने भूमिहीनों को भूमि देने के लिए अधिकारियों के समक्ष आवेदन दिया है।’
क्या आपने फिर उस आवेदन के बारे में प्रधान से पूछा कि उस आवेदन पर क्या कार्रवाई हुई? इसके जवाब में पवन ने कहा, ‘हां मैंने प्रधान से फिर से प्रधान से पूछा तो वे बोले, अभी तक उस पर कुछ हुआ नहीं है।’
क्या जिले के अधिकारियों की ओर से इस गाँव के भूमिहीनों को चिन्हित कर उनकी लिस्ट बनाने का काम हुआ? इस सवाल पर पवन कुमार बोले, ‘नहीं अभी तक इस तरह का काम (सर्वे) नहीं हुआ है जिसमें भूमिहीनों को चिन्हित किया गया हो।’
गरीबी, अशिक्षा और जागरूकता के अभाव के चलते आज भी बहुत सारे ग्रामीण सरकारी योजनाओं का लाभ उठा पाने में असमर्थ हैं। उनकी इसी मजबूरी का फायदा ग्राम प्रधान से लेकर जिले के दूसरे अधिकारी उठाते हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि गांव के जितने भी भूमिहीन ग्रामीण हैं उनका सरकार की ओर से सर्वे क्यों नहीं कराया गया? क्यों नहीं इनकी एक लिस्ट बनायी गई?
इसी गांव में रहते हैं मैनेजर साहनी। वह अपने ससुराल में रह रहे हैं। इनके पास अपनी कोई जमीन नहीं है। ऐसे में वह वन विभाग की जमीन पर अपना एक झोंपड़ा बना कर रह रहे हैं। यह पूछने पर कि ‘क्या आपको कभी वन विभाग के लोगों ने भगाया नहीं?’ मैनेजर साहनी बोले, ‘अभी तक वन विभाग के लोगों ने कभी मुझे भगाने की कोशिश नहीं की।’
क्या आपको ग्राम समाज की जमींन का पट्टा नहीं मिला? इस सवाल पर मैनेजर साहनी बोले, ‘जहां तक मैं जानता हूं गांव के किसी भी गरीब व्यक्ति को ग्राम समाज की जमीन का पट्टा नहीं मिला है। हां जिनको मिला वे काश्तकार थे। उनके पास पहले से जमीनें थीं। ऐसे लोगों को ही जमीन मिली है। इस गांव में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिनके पास राशन कार्ड तक नहीं है। यही नहीं, इस गांव में कई ऐसे लोग हैं जिनके घर में कई-कई लाल राशन कार्ड हैं। काश्तकारों को लाल कार्ड जारी कर दिया गया जबकि भूमिहीनों, गरीबों को लाल कार्ड ही नहीं दिया गया। यहां पर समस्याएं बहुत हैं, लेकिन उसका निराकरण नहीं हो रहा है।’
बगल के मंदिर की ओर इशारा करते हुए मैंनेजर साहनी बोले, ‘यहां पर पूजा-पाठ के लिए पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। यहां के स्थानीय विधायक के प्रतिनिधि को मैंने खुद कई बार फोन किया। वे कहते हैं आज लग जाएगा, कल लग जाएगा लेकिन अभी तक नहीं लगा।’
सिन्धोरा गांव के ही निवासी सुरेश निषाद अपनी पीड़ा को व्यक्त करने के लिए आगे आए और बोले, ‘साहब मुझे भी कुछ कहना है। मेरे पास भूमि नहीं है। पत्थर तोड़ने और ढोने के काम के अलावा और भी जो भी काम मिल जाता है, कर लेता हूं। जब काम नहीं मिलता तो बगल में गंगा नदी में मछली पकड़कर जैसे-तैसे परिवार चला लेता हूं। जब यहां काम नहीं मिलता तो काम के सिलसिले में बाहर भी चला जाता हूं। दिल की एक ही इच्छा है कि अपनी भी कोई जमींन और आशियाना हो जहां पर मेहनत-मजदूरी करके शांतिपूर्वक जीवन बिताया जाय।’
‘स्थानीय जनप्रतिनिधियों से अपनी समस्याओं की बात आपने की?’ इस सवाल पर सुरेश उदासी भरे स्वर में बोले, ‘चुनाव जीतने के बाद यहां कौन आता है? जब चुनाव होने वाला होता है तभी नेता लोग दुबारा दिखाई देते हैं।’
इस गाँव के निवासी मुरारी पार्किंसन की बीमारी से पीड़ित हैं और कई जगहों से दवा कर रहे हैं। जब उनसे आयुष्मान भारत कार्ड से मिलने वाली सहूलियत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ‘कार्ड है लेकिन मुझे कोई जानकारी नहीं कि उससे क्या सुविधा मिलती है। मुरारी का कहना है कि कई अस्पतालों में वह कार्ड चला ही नहीं इसलिए अब कहीं नहीं ले जाते।
चाय की दुकान चलाने वाले भाई लाल निषाद स्थनीय समस्या पर बोले, ‘यहां के इस गांव में बहुत सारे ऐसे भूमिहीन लोग हैं जिनके पास जमीन नहीं है। किसी तरह से मेहनत-मजदूरी करके वो अपना घर- परिवार चला रहे हैं। रोजगार का कोई साधन नहीं है। ऐसे में लोग या तो बाहर जाएं या फिर गंगा में मछली पकड़कर उससे जीवनयापन करें।’
वह कहते हैं प्रशसन में हर कहीं भ्रष्टाचार है। अपने साथ हुये एक हादसे का ज़िक्र करते हुये उन्होंने बताया कि ‘मैं अपने भतीजे का इलाज करने जिला अस्पताल में गया था। वहाँ मेरी मोटरसायकिल चोरी हो गई। इसकी रिपोर्ट लिखवाने के लिए जब मैं थाने में गया तो पुलिस वाले ने रिपोर्ट लिखने के एवज में मुझसे 500 रुपए लिए। उसके आठ महीने बाद मुझे मोटर सायकिल का क्लेम मिला। तो समाज में जो इस तरह का भ्रष्टाचार है, उस पर रोक लगनी चाहिए।
सरकार से सवाल पूछने वाले अंदाज में भाई लाल निषाद बोले, ‘मेरे पास इतने पैसे नहीं होते तो मेरी रिपोर्ट नहीं लिखी जाती है। फिर उसकी वजह से मुझे मोटर सायकिल का क्लेम नहीं मिलता। सरकार का ध्यान इस तरफ कब जायेगा?’
स्थानीय स्तर पर यहाँ समस्याएँ तो अनेक हैं जैसे नहर तो है लेकिन पानी नहीं आता। भूमिहीन आज भी ग्राम समाज की जमींन का पट्टा पाने के हक़ से दूर हैं। गरीबी रेखा के नीचे के लोगों के पास लाल कार्ड ही नहीं जबकि किसी-किसी परिवार में 5-6 लाल कार्ड हैं।
इन तमाम समस्याओं से जूझने के बावजूद सिंधोरा गाँव के लोग अपना वोट देने या राजनीतिक परिवर्तन करने के सवाल पर स्पष्ट नहीं हैं। आमतौर लोग कहते हैं कि उनके विधायक ने कुछ नहीं किया और संसद को उन्होंने देखा तक नहीं। इसके बावजूद वे मोदी का गुणगान करते नहीं थक रहे थे।
इसकी वजह जल्दी ही हमें समझ में आ गई और वह यह थी कि गाँव के सम्पन्न और भाजपा से जुड़े लोग उनसे बताते रहे हैं कि मोदी जी ने देश की सुरक्षा के लिए बहुत काम किया है। वहीं पर मौजूद दिवाकर चौबे इसी गांव के निवासी हैं और पहले रेलवे के किसी प्रोजेक्ट में काम करते थे लेकिन अब बेरोजगार हैं। बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि मोदी जी ने 370 हटाया जिससे देश का कोई भी आदमी कश्मीर में ज़मीन खरीद सकता है।
उनकी बात को कई लोगों ने ठीक कहा लेकिन जब मैनेजर साहनी से पूछा गया कि क्या आप कश्मीर में ज़मीन खरीदना चाहेंगे? तब व्यंग्य से हँसते हुये कहा कि ‘हमारी गरीबी हटेगी तो हम ज़मीन कैसे ले लेंगे। वहाँ हम क्यों ज़मीन खरीदेंगे।’
दिवाकर ने कहा कि जब कांग्रेस के सत्तर साल के राज में ज़मीन की समस्या हल नहीं हुई तो बीजेपी क्या हल करेगी? हमने पूछा कि आखिर आपकी समस्या क्या है तो दिवाकर ने कहा हमारी समस्या बेरोजगारी है। इसके साथ ही उन्होंने रेलवे के सँकरे अंडरपास और रेलवे ट्रैक के पास जमा रहनेवाले पानी के बिलकुल करीब से गुजरते बिजली के तार से होनेवाले खतरे के बारे में बताया। इसके बावजूद वह मोदी सरकार को क्लीन चिट देते हुये पुनः उसे ही चुनने की बात कर रहे थे।
दिवाकर तथा उन्हीं की तरह अनेक लोग अपने राजनीतिक प्रोपेगंडा में राममन्दिर, देश की सुरक्षा और धारा 370 की बात करते हैं। ऐसे लोगों की बात से दूसरे लोग भी भ्रमित और प्रभावित होते हैं। सिंधोरा गाँव के लोगों में भी आर्थिक स्तर पर कई धड़े हैं जिनकी अपनी ऐसी समस्याएँ हैं कि उनका हल दूर-दूर तक निकलता नहीं दिखता। अब देखना यह है कि जिंदगी की बुनियादी चुनौतियों से जूझ रहे लोग लोकसभा चुनाव में बदलाव लाना चाहेंगे या पुराने प्रतिनिधि पर ही भरोसा कायम करेंगे। यह तो आने वाला वक्त ही बतलायेगा।