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मालेगांव विस्फोट मामला : सत्रह साल बाद पीड़ितों के जख्म पर नमक की तरह आया फैसला

मालेगांव विस्फोट का मामला महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते के पास था। वर्ष 2011 में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने इस मामले को अपने हाथ में लिया। अदालत ने पाया कि अभियुक्तों के शामिल होने का प्रबल संदेह है, लेकिन अभियोजन पक्ष इसे संदेह से परे साबित नहीं कर पाया, इसलिए सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया गया। सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया, जो पीड़ितों के लिए एक बड़ा झटका और हिंदुत्व खेमे के लिए जश्न का विषय था।

क्या मुसलमानों के बाद अब ईसाइयों की बारी है?

आए दिन ईसाई धर्म के लोगों के साथ-साथ उनके चर्च, नन और पादरियों पर धर्मांतरण के आरोप लगाकर हिंसक हमला कर उत्पीड़ित किया जा रहा है। भारत में ईसाइयों के उत्पीड़न का मुख्य स्रोत संघ परिवार है, जो हिंदू चरमपंथियों का एक संगठन है, जिसमें आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) नामक प्रभावशाली अर्धसैनिक और रणनीतिक समूह, भाजपा, प्रमुख राजनीतिक दल और बजरंग दल, एक हिंसक युवा शाखा शामिल है।

छत्तीसगढ़ धर्मांतरण मामला : झूठे साबित हुए हिंदुत्व के ठेकेदार, ननों को मिली जमानत

फिलहाल सिस्टर प्रीति मैरी, वंदना फ्रांसिस और आदिवासी युवक सुखमई को जमानत मिल गई है। इस प्रकरण में पूरे देश में हुए हंगामे के बाद एनआईए अदालत से आरोपियों को जमानत मिलने का एक ही अर्थ है कि सरकार के प्रथम दृष्टया सबूतों को अदालत ने खारिज कर दिया है।

कांवड़ के बहाने युवा उन्मादी भीड़ को हिंसक और बर्बर बना नफरत फैलाना है

जब खुद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ कांवड़ियों के सत्कार में लगे हों, पुलिस के आला अफसरों की ड्यूटी उन पर फूल बरसाने की हो, थानों में पदस्थ अधिकारी और पुलिस के जवान महिला, पुरुष दोनों – कांवड़ियों के पाँव दबाने और पंजे सहलाने के काम में लगाये गए हों, ऐसा करते हुए उनके फोटो वीडियो सार्वजनिक किये जा रहे हों और इस तरह कोतवाल खुद मालिशिए हुए पड़े हों, तो फिर कांवरियों को किसका डर। डर तो दुकानदारों, होटल वालों और पैदल व गाड़ी पर चलने वाले लोगों को हो रहा है।

जीते जी किंवदंती बन गए कॉम अच्युतानंदन समझौता विहीन कम्युनिस्ट परंपरा के प्रतीक थे

कॉमरेड वी.एस. अच्युतानंदन का कम्युनिस्ट नेता, विधान सभा के सदस्य, विपक्ष के नेता और मुख्यमंत्री के रूप में दिया गया योगदान अविस्मरणीय है। वे पुन्नप्रा-वायलार संघर्ष के पर्याय बन गए थे। राजनीति की सीमाओं को लांघकर, उन्होंने  पर्यावरण, मानवाधिकार और महिला समानता जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भी काम किया। इसी प्रक्रिया में, पार्टी नेता रहते हुए भी उन्हें जनता की स्वीकृति मिली। उन्होंने सामाजिक महत्व के अन्य मुद्दों को मुख्यधारा के राजनीतिक मुद्दों से जोड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

डॉ मनमोहन सिंह : भूमंडलीकरण के भारतीय सूत्रधार का जाना

देश के जाने-माने अर्थशास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का 92वें वर्ष की उम्र में निधन हो गया। डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे एक अर्थशास्त्री, शिक्षाविद्, नौकरशाह और राजनीतिज्ञ रहे, जिन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में दो बार कार्य किया। उनका जन्म 26 सितंबर, 1932 को हुआ था और उन्होंने अपनी शिक्षा पंजाब विश्वविद्यालय और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से प्राप्त की। 1982 से 1985 तक वे भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर रहे और पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री का दायित्व भी संभाला। 1991 में भारत में आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने का श्रेय उन्हें दिया जाता है। उन्होंने 2004 से 2014 तक अपने प्रधानमंत्री काल के दौरान कई महत्वपूर्ण नीतियों और कार्यक्रमों को लागू किया था।

तालिबान, धार्मिक कट्टरता और महिलाओं के मानवाधिकार

किसी भी देश में धार्मिक कट्टरता का पहला निशाना वहां की महिलायें होती हैं। अफगानिस्तान हो या ईरान या भारत ही क्यों न हो। आज के समय में धार्मिक परम्पराओं का राजनैतिक उपयोग कर राज्य सत्ता समाज पर लादती है और यह सभी परम्पराएं समाज को 100 साल पीछे ले जाती हैं क्योंकि ये सभी परम्पराएँ घीसी-पिटी, दमनकारी व मानसिक गुलामी का झंडा उठाये रहती हैं। हिन्दू राष्ट्रवादियों और तालिबान की नीतियां और कार्यक्रमों में परिमाण या स्तर का फर्क हो सकता है मगर दोनों में मूलभूत समानताएं हैं।

भोपाल गैस त्रासदी : विकास के नाम पर खोले गए कारखाने हमेशा पर्यावरण और जनसाधारण को खत्म करते हैं

भोपाल गैस त्रासदी में मौत के खौफनाक मंजर के बाद आज भी उस त्रासदी से गुजरे हुए लोग जब अपने अनुभव साझा करते हैं, तो उनके चेहरे पर वही डर और दुःख के साथ आवाज़ में वही दर्द मिलता है, जिस मंज़र से आज से 40 वर्ष पहले गुजरे थे। तब से लेकर आज तक वह कारखाना बंद है, लेकिन हर रोज ज़िंदा बचे लोग उस रात हुए हादसे को याद कर तकलीफ से भर जाते हैं। सवाल यह उठता है कि कारखाना बंद हो चुका है लेकिन त्रासदी से पीड़ित लोग आज भी न्याय की उम्मीद में कब तक भटकते रहेंगे?

भोपाल गैस कांड : मानवीयता कभी खत्म नहीं हुई, पीड़ित लोगों के संघर्ष के साथ हैं ये लोग

भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट में 2 दिसंबर 1984 को आधी रात में मिथाइल आइसोनेट (एमआईसी) के रिसाव के कारण लगभग दस हजार लोगों की मौत हो गई थी। इस हादसे को आज 40 वर्ष हो जाने के बाद भी बचे हुए लोगों के स्वास्थ्य पर इसका असर देखा जा रहा है। हादसे के बाद भोपाल की जो स्थिति थी, उसे संभालने के लिए अनेक संस्थाओं और व्यक्तियों ने लगातार गैस पीड़ितों के लिए काम किया।

75 की दहलीज पर हमारा संविधान

भारत एक अभूतपूर्व स्थिति का सामना कर रहा है, जहां संविधान के नाम पर सत्ता में चुने गए और पद ग्रहण करने वाले लोग ऐसी नीतियों का पालन कर रहे हैं, जिससे धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और संघवाद के स्तंभों पर टिका संविधान का बुनियादी ढांचा धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है।

संविधान दिवस : देश में संविधान की किताब तो है लेकिन लोग पढ़ नहीं रहे हैं

ऐसे समय में जबकि हिन्दू राष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए चैम्पियन संविधान विरोधी मोदी भारत के संविधान की जगह मनु लॉ को स्थापित करने में सर्वशक्ति लगाते दिख रहे हैं। आंबेडकर के संविधान में आस्था रखने बुद्धिजीवियों/ एक्टिविस्टों के ऊपर संविधान के उद्देश्यों को सफल बनाने की विशेष जिम्मेवारी आन पड़ी है। यह जिम्मेवारी इसलिए और आन पड़ी है क्योंकि संविधान में गहरी आस्था जताने वाले खुद सामाजिक न्यायवादी दल तक मोदी सरकार की संविधान विरोधी साजिशों से आँखें मूंदे हुए हैं। बहरहाल संविधान समर्थक जागरूक लोग अगर संविधान के उद्देश्यों को सफल बनाना चाहते हैं तो उन्हें सबसे पहले संविधान के उद्देश्यों की पूर्ति लायक एजेंडा तय करना पड़ेगा।
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