नवयान एक वैश्विक और सार्वभौमिक दर्शन है। इसके विभिन्न आयामों पर अनेक लेखकों ने लिखा है; कितनी ही किताबें इसके पक्ष को प्रस्तुत करती रही हैं। लेकिन दुख की बात है कि इस सम्पूर्ण दर्शन पर कोई एक समग्र पुस्तक उपलब्ध नहीं है।
इस कमी को पूरा करते एकदम सरल, व्यवहारिक, रोचक, किंतु तर्कशील और सकारात्मक अंदाज़ में लिखी रत्नेश कातुलकर की पुस्तक नवयान दर्शन : बुद्ध की शिक्षाओं का आधुनिक विवेचन बौद्ध धर्म से जुड़ रहे नए पाठकों को धम्म की सही जानकारी उपलब्ध कराने का एक उत्कृष्ट माध्यम सिद्ध होगी। साथ ही, उन लोगों को भी सही धम्म से अवगत करा पाएगी, जो वर्षों से स्वयं को बौद्ध कहते हैं, परंतु आज भी कुछ या कई मामलों में पुरातनपंथी मान्यताओं से जकड़े हुए हैं।
पुस्तक के लेखक ने बताया कि कुछ लोगों ने ‘नवयान दर्शन’ पर आपत्ति उठाते हुए उनसे कहा- “वैसे ही क्या कम विभाजन हैं, जो तुम यह नवयान लाकर एक नया मतभेद खड़ा कर रहे हो?” यह सवाल उठाने वालों की मंशा भले ही सही हो, लेकिन इसमें जानकारी का अभाव है। बौद्ध धर्म- या जिसे हम धम्म कहते हैं- अपने शुरुआती दौर को छोड़ दिया जाए, तो कभी भी एकरूप नहीं रहा है। इसमें विभिन्न पंथ और एक ही पंथ में अनेक शाखाएँ समय-समय पर उभरी हैं-कभी व्यवहारिक तो कभी वैचारिक कारणों से। हर मत अपनी मान्यता को सही और अन्य की मान्यता को त्रुटिपूर्ण मानता है।
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ऐसे में नवयान दर्शन का लिखा जाना कोई अनावश्यक विभाजन नहीं, बल्कि तमाम मान्यताओं और विश्वासों को दरकिनार करते हुए सत्य तक पहुँचने का एक ईमानदार अन्वेषण है। इसके पीछे एक ही दर्शन है: ‘ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।’ यह पुस्तक निश्चित ही ‘कालाम सुत्त’ का व्यवहारिक विश्लेषण है।
कुछ लोग नवयान नाम सुनते ही इसे सीधे डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर से जोड़कर देखने लगते हैं। सच कहें तो ऐसा करना 1956 की महान धम्मक्रांति को सीमित कर देना है। यह पुस्तक बताती है कि नवयान की जड़ें बहुत गहरी हैं। विशेषकर, इसका आरंभ बौद्ध-रिनेसां यानी ‘बौद्ध पुनर्जागरण’ से हुआ, जब ब्रिटिश खोजकर्ताओं के शोध और अन्वेषणों ने पहली बार बुद्ध, सम्राट अशोक, और बौद्ध संस्कृति को इतिहास के पन्नों में दर्ज किया। इसके पहले तक बुद्ध अनेक देवी-देवताओं की तरह एक मिथकीय व्यक्तित्व माने जाते थे।
इस शोध ने कई बुद्धिजीवियों को बौद्ध दर्शन की ओर आकर्षित किया, जिसके फलस्वरूप बौद्ध धर्म को नए सिरे से परिभाषित करती कई कृतियाँ सामने आईं। दक्षिण भारत में भौतिकी के प्रोफेसर पी.एल. नरसु और महाराष्ट्र में आचार्य धर्मानंद कौसम्बी ने बौद्ध धर्म पर जमी अंधविश्वास और मान्यताओं की परतों को हटाया। इनकी कृतियों ने डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर को अत्यधिक प्रभावित किया और उन्होंने इस मुहिम को कहीं अधिक ताक़त और ऊर्जा से आगे बढ़ाया। डॉ. आनंद कौसल्यायन जैसे चिंतकों पर भी इन प्रयासों का गहरा असर पड़ा, और यह सिलसिला आज भी जारी है।
यह प्रयास केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि थाईलैंड, जापान और पश्चिमी देशों तक इसकी गूंज पहुँची और आज यह दर्शन सशक्त रूप से फैल रहा है। इस पुस्तक में इन सभी विचारकों के तर्कों और अध्ययनों का विवेचन किया गया है। इसे पढ़कर स्वयं आप जान सकते हैं कि नवयान, इस किताब के लेखक की कल्पना का परिणाम नहीं, बल्कि एक सार्वभौमिक और सार्वजनीन सत्य की खोज है।
मान्यताओं, विश्वासों और परंपराओं को दरकिनार रखते हुए एक वैज्ञानिक और मानववादी सोच के साथ लिखी गई यह पुस्तक जाति, धर्म, क्षेत्र से परे हर खुले मन वाले व्यक्ति को पसंद आएगी। परंतु, हर धर्म-विशेषकर बौद्ध धर्म-की छाया में पलने वाले पाखंड, अंधविश्वास, भेदभाव, अन्याय और शोषण के समर्थकों को यह पुस्तक न केवल चुभेगी, बल्कि उन मान्यताओं की ताबूत पर अंतिम कील का कार्य करेगी।
इस पुस्तक की समीक्षा पढ़कर मैं बहुत ही खुश हुआ। रत्नेश कातुलकर की लेखन कला बहुत सरल, व्यवहारिक और रोचक है। नवयान दर्शन को आधुनिक तरीके से समझाना वाक्य का बहुत ही सही उदाहरण है। इससे मुझे बौद्ध धर्म की एक नई दृष्टि मिली है। पुस्तक में बाबा साहेब आम्बेडकर के बारे में बहुत सही जानकारी दी गई है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण पुस्तक है।