Tuesday, December 3, 2024
Tuesday, December 3, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमलोकल हीरोबिरहा का मान बढ़ाने वाले गायक थे परशुराम यादव

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

बिरहा का मान बढ़ाने वाले गायक थे परशुराम यादव

बिरहा मूलत: मनोरंजन का एक साधन रहा है, लेकिन उसके ज़रिये दर्शकों को कोई न कोई सन्देश ज़रूर दिया जाता है। बिरहा के जानकर और उसके रसिक यह जानते हैं कि अधिकांश बिरहियों में मनोरंजन का तत्व अधिक रहता है। परशुराम यादव ने मनोरंजन और लालित्य तत्व में संतुलन स्थापित किया।

संस्मरण

उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा पंडित उपाधि से अलंकृत बिरहा के भीष्म पितामह कवि-गायक परशुराम यादव का निधन हो गया। 31 अगस्त को उन्होंने बीएचयू में आखिरी साँस ली। वे 66 वर्ष के थे। परशुराम यादव का जन्म 1 जनवरी, 1958 को बलिया के ग्राम नसीरपुर मठ, कोटवा नरायनपुर में हुआ था। उनके निधन की खबर सुनकर मैं स्तब्ध रह गया। अभी पिछले महीने की 15 तारीख को मेरी उनसे बात हुई थी। वे स्वस्थ थे। मैंने उनसे कहा कि एक ख़ुशी की बात है कि कवि-गायक श्री मंगल यादव के गीतों की किताब प्रकाशित हो रही है। उसकी भूमिका मैं लिख रहा हूँ। मेरा आपसे आग्रह है कि आप भी अपने गीतों का एक संग्रह तैयार कर दीजिए। मैं किसी प्रकाशक से उसे छपवाने की कोशिश करूँगा और मैं उसकी भूमिका भी लिखा दूँगा। आप बिरहा के महान कवि-गायक हैं। आपके गीतों का प्रकाशन बहुत ज़रूरी है। अपने लिए प्रयुक्त ‘महान’ विशेषण’ से उन्होंने विनम्रतापूर्वक असहमति व्यक्त की और पुस्तक के प्रकाशन संबंधी मेरे प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए कहा कि अभी मैं थोड़ा व्यस्त हूँ। दरअसल मैं अपना एक स्टूडियो बनवा रहा हूँ। स्टूडियो बन जाने के बाद मैं गीतों को संकलित करूँगा। स्टूडियो के चक्कर में इस साल मैं अपनी कोई कजरी रिकॉर्ड नहीं करा सका। आपकी भी दो कजरियाँ मेरे पास पड़ी हुई हैं। उन्हें भी रिकॉर्ड करवाना है।

यह जवाब सुनकर मैं आश्वस्त हुआ। मुझे यह सोचकर अच्छा लगा कि बिरहा के कवि-गायकों के बिरहे और गीतों के प्रकाशन से बिरहा और अन्य गीतों पर लिखने-बोलने और शोध करने में आसानी हो जाएगी। जल्दी ही उनसे फिर बात करने की बात कहकर मैंने उनसे विदा ली। उस दिन मुझे या परशुराम जी को क्या पता था कि यह हम दोनों की आखिरी बातचीत है । खैर, कल वे हम सबको अलविदा कहकर चले गए। अन्तेवासी को मेरा कोटिश: नमन और भावपूर्ण श्रद्धांजलि।

परशुराम जी का जाना बिरहा जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। इतने धीर-गंभीर और उदात्त कवि-गायक का स्थान बिरहा जगत में शायद ही कोई ले सके।अपने गीतों और गायकी के द्वारा उन्होंने बिरहा जगत और अपने कुल का नाम रौशन कर दिया। भर्तृहरि का यह श्लोक उन पर पूरी तरह लागू होता है—

परिवर्तिनि संसारे मृत: को वा न जायते। स जातो येन जातेन याति वंश: समुन्नतिम्।।

वर्ष 2020 में कोरोना-काल में मैंने अपने साथियों के साथ मिलकर संवाद नाम से फेसबुक पटल पर साहित्य-संस्कृति के अलावा लोकगीत और लोक संगीत विषयक व्याख्यान, परिचर्चा और गायन तथा नृत्य के कार्यक्रम का साप्ताहिक प्रसारण शुरू किया। 15 अगस्त, 2020 को मैंने पंडित परशुराम यादव का कजरी गायन और कजरी पर उनके विचारों का सीधा प्रसारण किया। वह एक यादगार कार्यक्रम था। उसको बहुसंख्य प्रबुद्ध लोगों ने पसंद किया और लोक-संबंधी चर्चा-परिचर्चा और गायन-वादन के लिए हमारे प्रयासों की प्रशंसा की। तब से लेकर आज तक परशुराम जी से मेरी आत्मीय बातचीत होती रही। मुझे इस बात का दुःख है कि मैं उनसे मिल नहीं सका। लेकिन उनको मैंने प्रत्यक्ष रूप से गाते हुए ज़रूर देखा था।

यह 1982-83 के गर्मियों की बात है। मेरे पड़ोसी गाँव चिलौना खुर्द के सखरज यादव के बेटे की शादी में वे बिरहा गाने के लिए महरुमपुर (सैदपुर) में आए थे। दूसरे गायक थे बिरहा के सार्वकालिक महान गायक रामदेव यादव। रामदेव जी के साथ उनके पिता गायक सहदेव यादव भी थे। उस दिन मैंने दोनों बड़े गायकों की बिरहा का आनंद लिया। इस घटना का ज़िक्र मैंने परशुराम जी से भी किया था। बहरहाल, परशुराम यादव अपनी तरह के विशिष्ट लोकगायक थे। उनके जैसी गंभीरता पारस यादव में थी और अब सिर्फ मंगल यादव कवि में दिखाई देती है। पारस यादव भी अपनी तरह के निराले व्यक्ति थे। मंगल कवि तो अभी भी हम लोगों के साथ हैं और सक्रिय हैं।

बिरहा के तीन रूप हैं- बिरहा की अंतर्वस्तु (विषयवस्तु), रूपबंध और उसकी प्रस्तुति। शुद्ध रूप से बिरहा के गायक को अगर विषय-वस्तु की समझ है और उसमें शब्दाडम्बर नहीं है और वह बिरहा में अवांतर विषयों को शामिल नहीं करता है तो वह एक अच्छा गायक हो सकता है। अच्छा स्वर और लय-ताल की समझ तो किसी भी गायक का मुख्य गुण है ही। पद्मश्री हीरालाल यादव, बुल्लू यादव, पारस यादव, रामदेव यादव, रामकैलाश यादव इसी तरह के गायक कलाकार थे। जो गायक कलाकार स्वयं बिरहा लिखते हैं, उनका स्वरचित बिरहा या गीत गाने या प्रस्तुत करने का तरीका थोड़ा भिन्न होता है। इसका कारण यह है कि गायन के समय उन्हें बिरहा के सभी प्रसंगों की संवेदनात्मक समझ होती है। परशुराम यादव के बिरहों और गीतों के रसिया इस बात से सहमत होंगे। यह गुण मंगल कवि में भी है। यह हुनर शिवमूरत यादव में भी था।  परशुराम यादव के उर्मिला, तुलसीदास और नूरजहाँ संबंधी बिरहों में एक खास तरह का संवेदनात्मक और सौन्दर्यपरक भावबोध है। वह विलक्षण है। महुआ चैनल पर बिरहा दंगल में ‘जहाँगीर का न्याय’ बिरहा सुनकर प्रतियोगिता के निर्णायक हीरालाल यादव, बालेश्वर यादव और भरत शर्मा व्यास की आँखें नम हो गई थीं।

परशुराम यादव की एक नहीं, कई-कई खूबियाँ थीं। बिरहा का उदात्तीकरण उनकी पहली खूबी थी। उनके बिरहों और गीतों में स्वस्थ श्रृंगार की अभिव्यक्ति हुई है। वहाँ मांसलता और फूहड़ता नहीं है। सौन्दर्य वर्णन में उन्होंने साहित्यिक रूढ़ियों का खूब इस्तेमाल किया है। लेकिन ऐसी जगहों पर न तो शब्दाडंबर दिखाई पड़ेगा और न ही विद्वत्ता प्रदर्शन। शब्दों के कलात्मक प्रयोग और वर्ण-ध्वनि-मैत्री के साथ उचित शब्दों के प्रयोग में वे माहिर थे। हर बड़ा कवि भाषा-प्रयोग के समय सचेत रहता है। परशुराम यादव में कहीं-कहीं श्लेष की छटा भी देखने को मिलती है। उनकी भाषा में उनकी शब्द-साधना स्पष्ट दिखाई देती है। भाषा की गरिमा को उन्होंने बनाये रखा है। उनकी भाषा उदात्त है। उसमें प्रसाद गुण मुख्य है। एक विशेष प्रकार की लोक-संवृत साहित्यिक भाषा का प्रयोग उनकी दूसरी खूबी है। उनकी तीसरी विशेषता है विषय की गहराई और भाव-विचार का सुन्दर मेल। उनके ऐतिहासिक और सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना वाले बिरहों में इसे महसूस किया जा सकता है। बिरहा मूलत: मनोरंजन का एक साधन रहा है, लेकिन उसके ज़रिये दर्शकों को कोई न कोई सन्देश ज़रूर दिया जाता है। बिरहा के जानकर और उसके रसिक यह जानते हैं कि अधिकांश बिरहियों में मनोरंजन का तत्व अधिक रहता है। परशुराम यादव ने मनोरंजन और लालित्य तत्व में संतुलन स्थापित किया। इसीलिए उनके बिरहों और गीतों में मनोरंजन के साथ गंभीरता दिखाई देती है। यह उनकी एक और खूबी है।

यह भी पढ़ें – https://gaonkelog.com/parshuram-yadav-will-always-be-remembered-for-the-purity-of-language-in-birha/

बिरहा गायन एक कला है।  इस कला के लिए साधना करनी पड़ती है। उस पर भी कवि और गायक होना प्राय: दुर्लभ होता है। हीरा, बुल्लू, पारस, रामदेव, रामकैलाश यादव अच्छे गायक कलाकार थे। इसी तरह परशुराम यादव अच्छे गायक थे, लेकिन वे बिरहा और लोकगीतों के अच्छे कवि भी थे।  कवि और गायक का यह मणिकांचन योग मंगल कवि और शिवमूरत यादव में भी है। परशुराम यादव की गायकी में सादगी और स्वर में मिठास है। उनमें अकुलाहट या जल्दबाजी नहीं थी। वे ठह-ठह कर मुखड़ा या बिरहा की भूमिका के छंदों को गाते थे।  इस बेजोड़ कवि-गायक के लिए प्रयुक्त ‘पंडित’ उपाधि सर्वथा उचित और सार्थक है। बिरहा का मान बढ़ने वाले इस अमर लोककवि और गायक को मेरा शतधा नमन।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here