Sunday, July 7, 2024
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नरक से भी बदतर जिंदगी जी रहे हैं नकहरा नई बस्ती के लोग, कोई नहीं सुन रहा फरियाद

मिर्ज़ापुर। तकरीबन पांच सौ की आबादी, जिला और ब्लाक मुख्यालय से कुछ किलोमीटर की दूरी, बावजूद इसके विकास के नाम पर पूरी तरह उपेक्षित। यह दास्तां किसी पिछड़े ग्रामीण और पहाड़ी इलाके की नहीं, बल्कि उस नकहरा नई बस्ती की है जो एबीसी कंपनी के बगल की कालोनी में स्थित है। यहाँ आज भी सड़क, […]

मिर्ज़ापुर। तकरीबन पांच सौ की आबादी, जिला और ब्लाक मुख्यालय से कुछ किलोमीटर की दूरी, बावजूद इसके विकास के नाम पर पूरी तरह उपेक्षित। यह दास्तां किसी पिछड़े ग्रामीण और पहाड़ी इलाके की नहीं, बल्कि उस नकहरा नई बस्ती की है जो एबीसी कंपनी के बगल की कालोनी में स्थित है।

यहाँ आज भी सड़क, खड़ंजा का अभाव है। जल निकासी के नाम पर मिट्टी के मार्ग पर खुले में बहता पानी, स्वच्छता अभियान को मुंह चिढ़ाते हुए फैली गंदगी, पेयजल आपूर्ति के नाम पर अमृत जल योजना की खड़ी पाइपलाइन से नदारद टोटी, यह स्थिति बस्ती की बदहाल हकीकत को बयां करने के लिए काफी है। बिजली की आंख मिचौली, आने और जाने का कोई समय सुनिश्चित नहीं। सफाई कर्मी बस्ती में सफाई करने कब-कब आते हैं? यह रहस्य का विषय हो सकता है, क्योंकि उन्हें कभी किसी ने देखा ही नहीं।

नकहरा नई बस्ती मीरजापुर मंडल के जनपद मुख्यालय से लगे शहरी विकास खंड मुख्यालय से तकरीबन तीन-चार किमी की दूरी पर स्थित है। बावजूद इसके यह विकास से कोसों है। नर्क की तरफ फैले यहाँ की दुर्व्यवस्थाओं पर न तो किसी अधिकारी की नजर पड़ रही है और ना ही जनप्रतिनिधियों की।

स्थानीय नागरिक राकेश श्रीवास्तव और रवि विश्वकर्मा

समस्याओं के बावत बस्ती के राकेश श्रीवास्तव और रवि विश्वकर्मा ने  ‘गांव के लोग’ को बताया कि हल्की बारिश में भी मुख्य मार्ग से बस्ती में आना मुश्किल होने लगता है। बस्ती की समस्याओं को लेकर ग्राम प्रधान से लगायत मुख्यमंत्री पोर्टल तक शिकायत की जा चुकी है, लेकिन समाधान आज तक नहीं हो पाया है। सड़क, बिजली, पानी और साफ-सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं से जूझते आ रहे नकहरा नई बस्ती के लोगों को बरसात के दिनों में अपने घरों तक आने के लिए तमाम दुश्वारियां से दो-चार होना पड़ता है। लोग घायल भी हो जाते हैं। रहवासियों के लिए यह स्थिति समस्या नहीं अब यातना बन चुकी है। हालात यह कि तमाम शिकायतों के बाद भी कोई कार्रवाई तो दूर कोई इधर झांकने तक भी नहीं आता है।

शहर से लगे ग्रामीण इलाके भी हैं बदहाल

देखा जाए तो किसी भी इलाके का आकलन वहां की सड़क, साफ-सफाई की व्यवस्था, बिजली-पानी जैसी बुनियादी जरुरतों को देखकर सहज ही किया जा सकता है और उसी आधार पर उसका मूल्यांकन भी किया जा सकता है। लेकिन जब इन्हीं बुनियादी जरुरतों का घोर अभाव बना हो तो उसकी पहचान बदहाली के तौर पर उभर कर सामने आती है। नकहरा नई बस्ती की पहचान भी कुछ ऐसी ही है।

नकहरा नई बस्ती शहरी (नगर पालिका) इलाके में घरों से निकलने वाला गंदा पानी लोगों के दरवाजे के सामने बहता रहता है। एक प्रमुख कालीन कंपनी के बगल में स्थित नई बस्ती नकहरा का नाम सुनते ही लोगों के जेहन में नकारात्मक भाव आ जाता है। वजह बनती है यहां की बदहाल सड़क, जहां बरसात के दिनों में बरसात के पानी से भरी सड़क तालाब के रूप में तब्दील हो जाती है। जल निकासी की समुचित व्यवस्था न होने से यहां बराबर जल-जमाव का दृश्य देखा जा सकता है। कुछ महीने पहले बस्ती में सीवर लाइन का कार्य शुरू किया गया था, लेकिन काम आधा-अधूरा छोड़ दिए जाने से यह बस्ती के लोगों के लिए जानलेवा साबित होने लगा था। सीवर के नाम पर जगह-जगह बनाई गई टंकियाँ ढंके न जाने से कई लोग इसमें गिर कर अब-तक चोटिल हो चुकें हैं।

बस्ती में रहने वाली प्रियंका केसरी बताती हैं कि बुनियादी सुविधाएं इस बस्ती में नदारद हैं। मानों हम लोग मतदाता ही नहीं हैं। उनके शब्दों में बस्ती को लेकर बरती जा रही उपेक्षा साफ झलकती है। आक्रोश भरे शब्दों में वह कहती हैं कि क्या यहां के लोग मतदान नहीं करते या सरकार को टैक्स नहीं देते हैं? वोट देने के बावजूद हमारी इतनी उपेक्षा क्यों?

पेयजलापूर्ति के नाम पर घरों के बाहर लगे टोटी विहीन पाइप की ओर इशारा करते हुए प्रियंका कहती हैं, ‘इसे देख कर क्या प्यास बुझाई जा सकती है, इस पाइप लाइन से पानी की बूंदें कब निकलेंगी?’

प्रियंका की बातों का समर्थन करते हुए गोलू कहते हैं, ‘बरसात के दिनों में तो बस्ती में आना-जाना कठिन हो जाता है। रास्ता बन जाता तो बहुत सहूलियत हो जाती, आवागमन आसान हो जाता।

बस्ती में व्यवस्थाओं को लेकर यहाँ के निवासियों ने मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई, जिलाधिकारी को भी ज्ञापन सौंप कर सड़क निर्माण और जल निकासी की व्यवस्था को दुरुस्त करने की मांग की, लेकिन अब तक समाधान नहीं हो पाया है।

संक्रामक बीमारी फैलने का भय

मौजूदा समय में डेंगू और वायरल फीवर सहित मौसम जनित बीमारियों ने पांव फैला रखे हैं। जिसे देखते हुए तथाकथित तौर पर शासन, प्रशासन, स्वास्थ विभाग तथा पंचायतों द्वारा निरंतर नालियों की साफ-सफाई के साथ-साथ मच्छर रोधी दवा इत्यादि का छिड़काव कराया जा रहा है, लेकिन यह सब कहने की बातें हैं। नकहरा नई बस्ती में सफाई कर्मियों के चेहरे तक लोगों ने नहीं देखे हैं। दवा छिड़काव के लिए कोई भी इधर झांकने तक नहीं आया है। बस्ती निवासी 18 वर्षीय करन टंडन तकरीबन 15 दिन पूर्व डेंगू की चपेट में आ गया था। जांच में पुष्टि हुई थी। व्यक्ति का इलाज तो हो गया पर समस्या का इलाज कब होगा? यह अब भी, सिर्फ सवाल है और इसका कोई अनुमानित उत्तर भी नहीं है।

शाम ढलते ही यहाँ बड़ी संख्या में मच्छर नजर आने लगते हैं। वहीं, दिन के उजाले में घरों के कोने से लेकर नालियों तक, जहां भी गंदा पानी एकत्र होता है, वहां मच्छर जमा हो जाते हैं। जिसकी वजह से मच्छर काटने से होने वाली बीमारियों का खतरा लगातार बना रहता है। ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम प्रधान से लेकर ब्लॉक के अधिकारियों तक से कई बार बस्ती में कीटनाशक दवा का छिड़काव कराए जाने का आग्रह किया जा चुका है, लेकिन किसी भी अधिकारी ने अब तक इन शिकायतों को तवज्जो नहीं दी है। ग्रामीण कहते हैं कि ‘शायद किसी बीमारी के महामारी बनने  के बाद ही जिम्मेदार अधिकारी इस बस्ती की ओर झांकने की जहमत उठाएंगे।’

उपेक्षा को लेकर आक्रोशित हैं ग्रामीण

दो प्रमुख मार्गों को जोड़ने वाले नकहरा नई बस्ती की उपेक्षा को लेकर बस्ती के बाशिंदे ही नहीं, बल्कि आसपास के लोग भी आक्रोशित नजर आते हैं। लोगों का कहना है कि नकहरा नई बस्ती का एक छोर मिर्जापुर-रीवा मार्ग को जोड़ता है तो दूसरा छोर मिर्जापुर-सोनभद्र मार्ग से जुड़ा हुआ है। जिस पर बड़ी संख्या में लोगों का आवागमन होता है। छोटे-बड़े वाहनों के छोड़ स्कूल, कालेज एवं कालीन फैक्ट्री में आने वालों का भी बराबर सिलसिला बना रहता है, बावजूद इस मार्ग की उपेक्षा लोगों को परेशान किए हुए है। मिश्रित आबादी वाली नई बस्ती नकहरा में आने-जाने वाले मार्ग की घोर उपेक्षा के चलते लोग अब इस बस्ती से पलायन की तयारी में हैं। बस्ती के लोग बताते हैं कि आने-जाने के मार्ग की सुगम व्यवस्था न होने के कारण हमारे यहां रिश्तेदार भी आने में संकोच करते हैं।

बस्ती की रहने वाली राधा नेत्रहीन हैं। वह घर से बाहर निकलने में भी डरती हैं। बताती हैं कि रास्ता सही नहीं होने के कारण गिरकर चोटिल होने का भय बना रहता है। कई बार वह चोटिल भी हो चुकी हैं।

राधा के परिजनों की मानें तो बस्ती में सड़क और नाली ना होने के कारण चारों ओर जंगली घास उग गए हैं, जिससे मच्छरों को बढ़ावा मिलने के साथ ही जंगली जीव-जंतुओं का भय भी बना रहता है। साफ-सफाई न होने के कारण दिनों-दिन इसका दायरा बढ़ता ही जा रहा है। बस्ती के लोगों की मानें तो यहां के लोग खुद ही साफ-सफाई का जिम्मा संभालते हैं। यह पूछे जाने पर कि सफाई कर्मी कब-कब यहां आते हैं तो लोग एक स्वर में जवाब देते हैं कि सफाई कर्मी के तो अभी इधर दर्शन ही नहीं हुए हैं।

तलाश है एक दशरथ मांझी की

मूलभूत सुविधाओं के अभाव तले जिंदगी गुजारते नकहरा नई बस्ती के बाशिंदे बुनियादी सुविधाओं की मांग को लेकर गुहार लगाते-लगाते थक चुके हैं। अब तो वास्तविक से ज्यादा आभासी उम्मीद है कि कोई दशरथ माझी मिल जाये जो इस संघर्ष को मंजिल तक पहुंचा सके। यह एक हताश उम्मीद है। इस हताशा के साथ बस्ती के लोगों में एक आक्रोश भी है। ग्राम प्रधान से लेकर सांसद, विधायक के प्रति बस्ती के लोगों का यह आक्रोश जायज भी है।

बारिश के बाद और भी दयनीय हो जाती है इस रास्ते के स्थिति

फिलहाल बस्ती के लोग अपने हिस्से का हक मांगते-मांगते थके जरूर गए हैं पर अभी भी उनके भीतर की उम्मीद नहीं सूखी है। बस्ती के कुछ लोग अपनी अनसुनी फरियाद के लिए भविष्य के आंदोलन की तैयारी भी कर रहे हैं। शायद जल्द ही इस बस्ती की चुप्पी, चिल्लाहट में बादल जाए और अधिकारियों की तंद्रा भंग हो।

गाँव के लोग
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