Tuesday, October 28, 2025
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राजनीति

आई लव मोहम्मद : साम्प्रदायिक हिंसा का नया बहाना

इन दिनों हम ‘आई लव मोहम्मद‘ के सीधे-सादे नारे को लेकर हिंसा भड़काने के नजारे देख रहे हैं। इसकी शुरुआत कानपुर से हुई जब मिलादुन्नबी के दिन पैगम्बर मोहम्मद के जन्म दिवस के अवसर पर निकाले गए जुलूस में शामिल ‘आई लव मोहम्मद‘ बैनर पर कुछ लोगों द्वारा इस आधार पर आपत्ति की गई कि इस धार्मिक उत्सव में यह नई परंपरा जोड़ी जा रही है।

भारतीय संविधान और सामाजिक न्याय : एक सिंहावलोकन

भारतीय समाज में अनेक असमानताएं व्याप्त हैं। कुछ ऐसी ताकतें हैं जो भारतीय संविधान का ही अंत कर देना चाहती हैं। वह इसलिए क्योंकि संविधान समानता की स्थापना के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण औज़ार है। इस समय जो लोग सामाजिक न्याय की अवधारणा के खिलाफ हैं वे खुलकर भारत के संविधान में बदलाव की मांग कर रहे हैं। लेकिन जरूरी है कि संविधान के सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले उसके प्रावधानों सहित, रक्षा की जाये और उसे मज़बूत बनाये जाये।

उत्तर प्रदेश : जाति की राजनीति के बहाने विपक्ष को कमजोर करने की रणनीति

उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि पुलिस रिकॉर्ड, एफआईआर और गिरफ्तारियों में जातिगत उल्लेख नहीं होगा। सार्वजनिक स्थानों से जातिसूचक स्टिकर हटाए जाएँगे और जाति-आधारित रैलियों पर रोक लगाई जाएगी। सतही तौर पर यह कदम जातिगत भेदभाव खत्म करने की दिशा में क्रांतिकारी प्रतीत होता है, लेकिन जब इसे राजनीतिक संदर्भ में देखा जाता है, तो इसके पीछे कई गहरे प्रश्न खड़े हो जाते हैं।

बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री ही नहीं सामाजिक न्याय के सूत्रधार भी थे भोला पासवान शास्त्री

आमतौर पर भोला पासवान शास्त्री का जिक्र आते ही एक व्यक्तिगत ईमानदार और आदर्शवादी राजनेता का चेहरा उभरता है जिसने तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बावजूद अपने लिए कुछ नहीं किया। अत्यंत संयम और किफायत के साथ अपना पूरा जीवन गुजार दिया। लेकिन केवल इतना ही काफी नहीं है बल्कि भोला पासवान शास्त्री ने सामाजिक न्याय की दिशा में बेमिसाल काम किया है जिसकी ओर प्रायः ध्यान नहीं दिया गया है। अपने कार्यकाल में मुंगेरी लाल आयोग का गठन करके उन्होंने भविष्य में मण्डल आयोग की जरूरत का सूत्रपात कर दिया था। हरवाहे-चरवाहे के रूप में जीवन शुरू करनेवाले भोला पासवान शास्त्री के रोचक और प्रेरक जीवन पर एच एल दुसाध का लेख।

देश का सांप्रदायिककरण करने में आरएसएस के बाद ढोंगी बाबाओं की कतार सबसे आगे 

बाबा पंडा-पुरोहितों के परंपरागत वर्ग से ताल्लुक नहीं रखते। वे लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की स्वयं की नई-नई तरकीबें ईजाद करते हैं। कुछ परंपरागत ज्ञान और कुछ अपनी कल्पनाओं को मिश्रित कर वे ऐसे विचार प्रस्तुत करते हैं जो उनकी पहचान का केन्द्रीय बिंदु होता है। अपने हुनर पर उनका भरोसा वाकई काबिले तारीफ होता है और वे प्रायः बहुत अच्छे वक्ता होते हैं। 

राहुल गाँधी को बच्चा कह देने से विपक्ष के मुद्दे कमजोर नहीं पड़ सकते

केंद्र की मोदी सरकार के पिछले दो कार्यकाल संसद में विपक्ष के नेता के बिना ही चला और बीजेपी सरकार ने खूब मनमानी की। लेकिन अठारहवीं लोकसभा के चुनाव के बाद इस बार संसद में विपक्ष के नेता की बागडोर राहुल गांधी के जिम्मे है, और वे इस ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह निभा रहे हैं। इसे उन्होंने संसद के पहले सत्र में ही दिखा दिया। इस बार सत्ता पक्ष को संसद में उन सवालों से दो-चार होना ही पड़ेगा, जिनसे वह बचता आया था।

एनडीए सरकार के हिन्दू राष्ट्रवाद का निशाना बनते मुसलमान

पिछले दस वर्षों के दो कार्यकाल में मोदी ने ध्रुवीकरण को करने के लिए साम-दंड-भेद सभी तरीके अपनाए, वह सामने है। मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक ज़हर से भरे हुए भाषण, उनके पहनावे, खान-पान, बुर्का-हिजाब, गाय की तस्करी को लेकर हुई मॉब लिंचिंग, लव जेहाद, सीएए/एनआरसी जैसे अनेक मामले सामने आए। तीसरे कार्यकाल में मुसलमानों की सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक स्थिति में कितना और कैसा बदलाव होगा? समय के साथ सामने आएगा।

लोकतन्त्र की जगह धर्म अपनाने वाला देश तानाशाही और पिछड़ेपन का शिकार हो जाता है

राजनीति और प्रशासन में किसी भी धर्म की उपस्थिति, वहाँ के पिछड़ेपन का कारण होती है। लोकतन्त्र माने जाने वाले देश भी धर्म आधारित होने पर उनका पिछड़ापन सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक धरातल पर साफ दिखाई देता है। दुनिया में 200 आज़ाद देशों में से अनेक देशों ने इस्लाम और रोमन कैथोलिक राजकीय धर्म है। जहां की सामाजिक और राजनैतिक स्थिति का आकलन कर समझा जा सकता है।

महिला आरक्षण अधिनियम लागू होने के बाद भी लोकसभा चुनाव, 2024 में महिलाओं की हिस्सेदारी घट गई है

दुनिया की आधी आबादी की हर क्षेत्र में समान भागीदारी की बातें होती हैं। हमारे देश में 18 सितंबर 2023 को नारी शक्ति  वंदन अधिनियम पारित किया गया, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभा में महिलाओं के लिए कुल सीटों में से एक तिहाई याने 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान लागू किया गया। जिसके तहत लोकसभा की 543 सीटों में से 181 सीटों पर महिला संसद के लिए हैं लेकिन लेकिन सवाल यह उठता है कि अधिनियम के आ जाने के बाद 2024 में संसद तक मात्र 74 महिलाएं ही पहुँच पाई हैं, जो पिछली लोकसभा से 1 प्रतिशत कम ही है।

क्या नरेंद्र मोदी लोकसभा स्पीकर के लिए एनडीए के बड़े दलों और लोकसभा डिप्टी स्पीकर के लिए विपक्ष को मौका देंगे?

एनडीए के शपथ ग्रहण के बाद मंत्रालय का विभाजन होगा, जिसमें भाजपा ने अपने मंत्रियों के लिए मंत्रालय की घोषणा भले न की हो लेकिन मंत्रालय तय कर दिए हैं। सवाल यह उठ रहा है कि लोकसभा स्पीकर किसे बनाया जाएगा? साथ ही क्या लोकसभा उपाध्यक्ष के लिए विपक्ष को मौका मिलेगा?

2024 का लोकसभा चुनाव : संख्या के भंवर में बहुमत का खेल और भविष्य की राजनीति

भाजपा की राजनीति ने सिर्फ लोगों के अन्दर चिंगारियां भरने का काम किया है। इसलिए हमें ऐसी राजनीति से परहेज करना चाहिए और समता मूलक समाज की स्थापना में अपना योगदान देना चाहिए। गांधी की यात्राएं कांग्रेस को गांव-गांव तक पहुंचा देने और वहां संगठन खड़ा कर देने में बदल गईं। एक जनवादी आंदोनल के लिए इस तरह की यात्राएं बहुत ही जरूरी हैं। जब ऐसी यात्राएं बंद होती हैं तो जनसंगठन और पार्टियाँ लोगों को विनाश की ओर ले जाती हैं ।
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