Tuesday, December 3, 2024
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राजनीति

पूजा स्थल विवाद : आरएसएस और भाजपा पूजा स्थल अधिनियम 1991 का खुला उल्लंघन कर रहे हैं

क्या कारण है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 के पारित के बाद भी अभी हाल के समय में अनेक मस्जिद व दरगाहों के सर्वे के दावे सामने आने लगे, और इसके बाद सेवा निवृत हुए मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड लगातार निशाने पर हैं क्योंकि उन्होंने वाराणसी के ज्ञानवापी में सर्वे की अनुमति देने के बाद कहा था कि पूजा स्थल अधिनियम की धारा 3 में पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाने पर कोई रोक नहीं है, उनका यही बयान मस्जिदों के सर्वे की याचिकाकर्ताओं के साथ है जबकि इसी अधिनियम की धारा 4, 15 अगस्त, 1947 को मौजूद धार्मिक स्थलों के स्वरूप को बदलने पर रोक लगाती है। मस्जिदों और दरगाहों के सर्वे की अनुमति साम्प्रदायिक माहौल को बिगाड़ने की साजिश के अलावा कुछ और नहीं है।

डॉग व्हिसल के माध्यम से अल्पसंख्यकों पर निशाना साधते भाजपा नेता

वर्ष 2014 के बाद  अल्पसंख्यकों को लेकर देश की कुर्सी संभालने वाले जिस तरह की भाषा का प्रयोग लगातार कर  नफरत फैला रहे हैं। जिसका परिणाम यह हुआ कि ध्रुवीकरण की राजनीति तेज हुई और जिसका सीधा असर मतदान पैटर्न  पर दिखाई दिया। सामाजिक धारणायें भी इससे अछूती नहीं रहीं। आज हर हिंदू परिवारों के हजारों व्हाट्सएप ग्रुप और ड्राइंग रूम चैट में मुसलमानों को गुनहगार बनाकर नफरत फैलाई जा रही है। लेकिन इस विभाजनकारी भावना से कैसे निपटा जाए? लोगों के बीच वैकल्पिक आख्यान को विकसित करने की आवश्यकता है

भाजपा क्यों भारत जोड़ो यात्रा से घबराई हुई है

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले देवेन्द्र फड़णवीस का बयान आया कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी शहरी नक्सलियों और अति वामपंथी तत्वों से घिरे हुए थे और वे कांग्रेसी कम और अति वामपंथी विचारधारा वाले अधिक लग रहे थे। दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी अपने गुरु एमएस गोलवलकर के कथन (बंच ऑफ थॉट्स पेज 133) के अनुसार मुस्लिम, ईसाई और कम्युनिस्ट हिंदू राष्ट्र के लिए आंतरिक खतरा हैं, फडणवीस और उनके जैसे लोग हिंदू राष्ट्र के एजेंडे के खिलाफ किसी भी चीज को या तो मुस्लिमों या ईसाइयों या शहरी नक्सलियों या अति वामपंथी के रूप में प्रचारित करते हैं।

क्या हमारे देश में डेमोक्रेसी को करोड़पतियों ने हाइजैक कर लिया है?

जिस तरह की डेमोक्रेसी आज हमारे देश में चल रही है, उसे करोड़ोक्रेसी कहना ज्यादा सही होगा। अब कल महाराष्ट में भाजपा के सांसद और महाराष्ट्र के महासचिव ने मतदान के एक दिन पहले जिस तरह करोड़ों रूपये बांटते हुए पकडे गए, उससे चुनाव आयोग को लेकर निश्चय ही अति अविश्वास की स्थिति पैदा हुई है। यदि चुनाव आयोग के हाथ में कुछ भी नहीं रह गया है तो इसे खत्म कर देना चाहिए और यह जिम्मेदारी सत्तारूढ़ पार्टी के हाथों में खुलकर दे देनी चाहिए, जैसा कि अभी है।

व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी : इतिहास पर आधारित या राजनीतिक एजेंडे पर

आज का युवा अकादमिक संस्थानों से भले ही पढ़ाई न कर पाता हो लेकिन व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट की उपाधि जरूर हासिल कर लेता है। इस यूनिवर्सिटी की स्थापना पिछले कुछ वर्षों पहले ही हुई है, जिसके बाद प्राचीन इतिहासकारों द्वारा खोजी और लिखे गए तथ्यों को एक सिरे ने नकारा जा रहा है। इसमें आरएसएस ने बड़ी और महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। असली मुद्दा यह है कि दक्षिणपंथी राजनीति का बोलबाला बढ़ने के साथ ही, उसने बहुत चतुराई से अपना राजनैतिक एजेंडा लागू करना शुरू कर दिया है। वे एक ऐसे इतिहास का निर्माण कर रहे हैं जो न तार्किक हैं और न तथ्यात्मक।

यौन अपराध के आरोपी सीपीएम विधायक के विरुद्ध वृंदा करात और एनी राजा द्वारा कार्यवाही की मांग

केरल के फिल्म उद्योग पर भारी संकट छाया हुआ है। वहां की महिला कलाकारों ने अपने साथ यौन दुष्कर्म की शिकायतें कीं है । इन शिकायतों में सत्यता पाई गई है परंतु किन्हीं कारणों के चलते मुख्यमंत्री ने यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की। उनका कहना था कि ऐसा नहीं करने की सलाह उन्हें समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ने स्वयं दी थी। उसके बाद 2024 के अगस्त माह में मुख्यमंत्री ने रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी। उनमें अनेक तथ्य चौंकाने वाले थे।रिपोर्ट में जिन लोगों के बारे में आरोप सत्य पाये गये उनमें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक मुकेश भी शामिल हैं। वृंदा करात सीपीएम के पोलिट ब्यूरो की सदस्य हैं। उन्होंने बताया कि हमारी पार्टी ने सारे मामले को बहुत गंभीरता से लिया है। न्यायमूर्ति हेमा समिति की रिपोर्ट का हम स्वागत करते हैं। इस कमेटी ने केरल के फिल्म उद्योग में जो गंदगी है, उसको उजागर किया है।

भारत बंद से पुराने फॉर्म में लौटीं मायावती क्या अपनी बिखरी राजनीति को समेट पाएँगी                                              

भारत बंद की सफलता के बाद जहां अधिकांश राजनीतिक विश्लेषकों ने दलित आंदोलनकारियों के व्यवहार में आए बड़े बदलाव को देखते हुए भविष्य में धरना- प्रदर्शनों के सैलाब आने की संभावना जाहिर किया, वहीं दलित आंदोलनकारी अपनी बहन जी को पुराने रूप में लौटते देख खुशी से झूम उठे। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जिस कांशीराम का नाम लेकर मायावती राजनीति करती रही हैं, लोग राहुल गांधी में अब कांशीराम की छवि देखने लगे हैं। यदि कांशीराम के रूप में राहुल गांधी की छवि स्थापित हो जाती  है, तब पहले से ही काफी हद तक अपना वोटबैंक गवां चुकी मायावती का राजनीतिक भविष्य का क्या होगा?

लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा-आरएसएस किस रणनीति पर काम कर रहे हैं।

लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव की अपेक्षा कम सीटों से जीत दर्ज की।लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम से ऐसा लगता है कि आरएसएस अपने राजनीतिक वंशज यानी भाजपा की मदद के लिए आगे नहीं आया।आरएसएस की गहरी समझ यह है कि इस चुनाव में भाजपा की हार का मुख्य कारण दलित वोटों का भारत गठबंधन की ओर जाना है।आरएसएस के नेता पहले से ही भाजपा नेताओं के साथ लंबी बैठकें कर रहे हैं, ताकि चुनाव के नतीजों का विश्लेषण किया जा सके और भविष्य की रणनीति बनाई जा सके। भाजपा-आरएसएस किस रणनीति पर काम कर रहे हैं इस पर राम पुनियानी का लेख।

कितनी खतरनाक है आरक्षण में बंटवारे के पीछे की मूल मंशा

ताज़ा उदाहरणों से भी जानना हो कि भाजपा को ज्यादा पीछे रह गए ओबीसी-एससी-एसटी समाज की कितनी चिंता है तो लैटरल इंट्री की ख़तरनाक पॉलिसी को ही देख लीजिए, जिसे अभी-अभी भारी दबाव के चलते स्थगित तो करना पड़ा है। इसके जरिए भारत की नौकरशाही पर कारपोरेट वर्चस्व को न केवल स्थापित करना है बल्कि आरक्षण को भी हायर लेवल पर पूरी तरह खत्म करने की योजना की झलक साफ-साफ दिखती है।

शहरों में मेहनतकशों के घरों पर बुलडोजर न्याय नहीं, आवास की भीषण समस्या पर पर्दा डालना है

मनुष्य की तीन चिंताओं रोटी कपड़ा और मकान में सब की सब किसी न किसी रूप में भयावह होती जा रही हैं। रोटी के लिए अस्सी करोड़ लोगों का सरकारी अनाज पर निर्भर होते जाना यह बताता है कि सरकार और पूँजीपति वर्ग लोगों को रोजगार देने में पूरी तरह नाकाम हो चुके हैं। कपड़े का संकट भी कम नहीं है लेकिन मकान सबसे भयावह संकट में घिरा हुआ है। बेहतर आवासीय पर्यावरण निम्नमध्यवर्ग के लिए एक दुर्लभ सपना बन चुका। ऐसे में किसी राज्य सरकार का बुलडोजर नीति में भरोसा और सत्ता की ताकत से लोगों का घर गिरा देना और उन्हें बेघर कर देना एक राजनीतिक षड्यंत्र और अक्षम्य अपराध के सिवा कुछ नहीं है। जो लोग राजसत्ता की बुलडोजर नीति की तरफ़दारी कर रहे हैं वे वास्तव में समस्या को एकांगी तरीके से देखने को अभिशप्त हो चुके हैं। अंजनी कुमार अपने इस लेख में भारत की आवास समस्या के लगातार विकराल होते जाने को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देख और समझ रहे हैं। उन्होंने राजनीतिक अर्थशास्त्र के नजरिये से मेहनतकश वर्ग के प्रति सरकारों और पूँजीपतियों की बेइमानियों को उजागर करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया है।

बंगलादेश की आड़ में महाराष्ट्र चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण का खेल शुरू कर चुके हैं सांप्रदायिक दल  

भाजपा का यह रिकॉर्ड रहा है कि जब-जब केंद्र या राज्यों में चुनाव होना होते हैं, वे ऐसी परिस्थिति पैदा कर देते हैं ताकि धार्मिक ध्रुविकारण का पूरा लाभ मिल सके। अभी हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद जिस तरह की स्थितियाँ पैदा हुई हैं, उसके लिए वे चिंतित कम नजर आ रहे हैं बल्कि महाराष्ट्र चुनाव में वहाँ के हिंदुओं को लेकर धार्मिक ध्रुवीकरण का खेल शुरू कर चुके हैं।