बिहार चुनावों से पहले चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को जो आदेश पारित किया, उसमें कहा गया कि 25 जुलाई तक पूरे राज्य में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण (SIR) किया जाएगा, जिसमें डुप्लीकेट, मृत या गैर-नागरिकों के नाम हटाए जाएंगे। इस प्रक्रिया को मात्र 31 दिनों में संपन्न करना है, जो कि सामान्य सूची पुनरीक्षण की तुलना में असाधारण रूप से त्वरित है। यह निर्णय अपने आप में चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता को संदिग्ध बनाता है
आरएसएस/भाजपा की कार्यशैली काफी जटिल है। वो एक-साथ कई विरोधभासी बातें कर सकते हैं और करते हैं। वे छोटे-छोटे कदम उठाकर संविधान के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं और साथ ही संविधान के मूल्यों और नीतियों का उल्लंघन भी कर रहे हैं। पिछले एक दशक से हम यही देख रहे हैं। होसबोले का बयान एक सोची-समझी रणनीति के तहत दिया गया है।
इस साल (2025) में जून में देश ने आपातकाल (इमरजेंसी) लागू किए जाने की 50वीं वर्षगांठ मनाई। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में 25 जून को देश में आपातकाल लागू किया था। इस दौर के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है - किस तरह लोकतांत्रिक अधिकार छीन लिए गए, हजारों लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया और मीडिया का मुंह बंद कर दिया गया। इस काल को कई दलित नेता काफी अलग नजर से देखते हैं और याद करते हैं कि उसके पिछले दशक में इंदिरा गांधी ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण और प्रीविपर्स की समाप्ति जैसे कई बड़े मौलिक फैसले लिए गए थे। इनके बारे में और इनका विश्लेषण करते हुए भी बहुत कुछ लिखा जा चुका है।
संघी विचारक बार-बार एकात्म मानववाद का बखान करते हैं और भारत के बहुजन समाजों को एक प्रतिगामी इतिहास से जोड़ने की साजिश करते हैं। व्यावहारिक तौर पर यह ब्राम्हणवादी मूल्यों को बढ़ावा देता है और इसके चलते मंदिर (मस्जिदों को ढहाया जाना), पवित्र गाय (लिंचिंग), लव जिहाद और धर्मपरिवर्तन एजेंडे के मुख्य मुद्दे बन गए हैं। इस विचारधारा की मान्यता यह है कि भारत को पहले मुस्लिम राजाओं और फिर अंग्रेजों ने गुलाम बनाया। यह विचारधारा हिंदू समाज की बहुत सी खराबियों के लिए, खासतौर से मुस्लिम राजाओं के अत्याचारों को दोषी मानती है। तथ्य यह है कि हिंदू धर्म की बहुत सी कमियां जाति, वर्ण और लिंग आधारित ऊंच-नीच की वजह से हैं जिनका जिक्र हिंदुओं द्वारा पवित्र मानी जाने वाले कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।
आज खुलेआम धर्म का इस्तेमाल राजनैतिक एजेन्डे को आगे बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। बौद्ध मंदिर का संचालन ब्राम्हणवादी तौर-तरीकों से हो रहा है और सूफी दरगाहों का ब्राम्हणीकरण किया जा रहा है। बौद्ध भिक्षु अपने पवित्र स्थान का संचालन उनकी अपनी आस्थाओं और मानकों के अनुसार करना चाहते हैं और उसके ब्राम्हणीकरण का विरोध कर रहे हैं।
वैसे तो संघी गिरोह को पूरे संविधान पर ही आपत्ति है। वे इस संविधान को बदलने की फिराक में हैं। माननीय उपराष्ट्रपति ने अनुच्छेद-142 को निशाने पर लिया है। उनका कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय सुपर संसद जैसा व्यवहार कर रहा है। इसके लिए उन्होंने संविधान के अनुच्छेद-142 को जिम्मेदार ठहराया है। भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी मामले में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने हेतु आदेश जारी करने की शक्ति देता है। इसलिए इस अनुच्छेद को सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण शक्ति (सुप्रीम पॉवर ऑफ सुप्रीम कोर्ट) के रूप में भी जाना जाता है। वे सुप्रीम कोर्ट को मिले इस पॉवर पर भड़के हुए हैं। उनका कहना है कि यह अनुच्छेद लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ मिसाइल हमला करता है और इस अनुच्छेद का उपयोग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा तय नहीं कर सकता।
मुस्लिमों के खिलाफ लगातार एक नैरेटिव सेट करने का काम किया जा रहा है। जैसे एक देश लेने के बाद भी भारत में कितनी प्रॉपर्टी पर मुस्लिम वक्फ के नाम पर काबिज है। यह पूरी तरह सही नहीं है। नए कानून में वक्फ बाई यूजर का प्रावधान खत्म कर दिया गया है। इससे आने वाले समय में विपरीत असर धर्म विशेष पर हो सकता है।
जनसंघ के लोगों ने 7 अप्रैल, 1980 को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। इसकी स्थापना के अब 45 साल पूरे हो गए हैं। अपनी स्थापना के पांच साल के अंदर (1985) लाल कृष्ण आडवाणी ने शाह बानो विवाद की आड़ में बाबरी मस्जिद व राम जन्मभूमि विवाद को हवा दी, रथ यात्राओं की राजनीति की, 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस की घटना के साथ भाजपा की स्थापना से लेकर अब तक की पूरी राजनीति को आस्था के सवाल पर ला खड़ा किया और यह सफर बिना रुके आज तक चल रहा है।
केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने के बाद सबसे ज्यादा पीड़ित मुसलमान ही हुए हैं। उन्हें सड़कों पर नमाज पढ़ने के लिए पीटा जा रहा है, गोमांस खाने के लिए निशाना बनाया जा रहा है, हिंदू त्योहारों में उनका बहिष्कार किया जा रहा है या फिर कोरोना जिहाद या थूक जिहाद के बहाने उनका बहिष्कार किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के विपरीत निर्देशों के बावजूद राज्य सरकारें मुस्लिम संपत्तियों पर बुलडोजर चला रही हैं।
ग्वालियर के सांसद भरत सिंह कुशवाह की शिकायत है कि ग्वालियर का सांसद होते हुए भी उन्हें एक सांसद की तरह काम नहीं करने दिया जा रहा है, सांसद के रूप में सम्मान की तो बात ही अलग है। वे केंद्र की जिन तमाम योजनाओं के लिए भागदौड़ करते हैं, उनके स्वीकृत होते ही उन सब योजनाओं को लाने का श्रेय युवराज लूट लेते हैं और प्रशासन भी उनकी मदद करता है।
हाल ही में आरएसएस मुख्यालय नागपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जाना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय हो गया गया। आमतौर पर कयास लगाया जा रहा है कि इस वर्ष 75 वर्ष पूरे करने जा रहे मोदी की यह फेयरवेल यात्रा है। दस वर्ष के अपने दो कार्यकालों में मोदी ने नागपुर का रुख नहीं किया लेकिन तीसरे कार्यकाल में जब उनका अपराजेय होने का भ्रम टूट गया है तब संघ के शरण में उनका जाना यह संकेत कर रहा है कि शायद संघ की मदद से वह अपना कार्यकाल पूरा करना चाहते हैं जिससे वे नेहरू के कार्यकाल के करीब जा सकें। आरएसएस और भाजपा के बीच कोई विवाद या असहमति नहीं है। ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है कि दोनों के बीच हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए अपनाई जाने वाली रणनीति के मामले में कुछ मतभेद हों। पढ़िये डॉ राम पुनियानी की यह टिप्पणी ।