Monday, October 27, 2025
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राजनीति

आई लव मोहम्मद : साम्प्रदायिक हिंसा का नया बहाना

इन दिनों हम ‘आई लव मोहम्मद‘ के सीधे-सादे नारे को लेकर हिंसा भड़काने के नजारे देख रहे हैं। इसकी शुरुआत कानपुर से हुई जब मिलादुन्नबी के दिन पैगम्बर मोहम्मद के जन्म दिवस के अवसर पर निकाले गए जुलूस में शामिल ‘आई लव मोहम्मद‘ बैनर पर कुछ लोगों द्वारा इस आधार पर आपत्ति की गई कि इस धार्मिक उत्सव में यह नई परंपरा जोड़ी जा रही है।

भारतीय संविधान और सामाजिक न्याय : एक सिंहावलोकन

भारतीय समाज में अनेक असमानताएं व्याप्त हैं। कुछ ऐसी ताकतें हैं जो भारतीय संविधान का ही अंत कर देना चाहती हैं। वह इसलिए क्योंकि संविधान समानता की स्थापना के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण औज़ार है। इस समय जो लोग सामाजिक न्याय की अवधारणा के खिलाफ हैं वे खुलकर भारत के संविधान में बदलाव की मांग कर रहे हैं। लेकिन जरूरी है कि संविधान के सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले उसके प्रावधानों सहित, रक्षा की जाये और उसे मज़बूत बनाये जाये।

उत्तर प्रदेश : जाति की राजनीति के बहाने विपक्ष को कमजोर करने की रणनीति

उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि पुलिस रिकॉर्ड, एफआईआर और गिरफ्तारियों में जातिगत उल्लेख नहीं होगा। सार्वजनिक स्थानों से जातिसूचक स्टिकर हटाए जाएँगे और जाति-आधारित रैलियों पर रोक लगाई जाएगी। सतही तौर पर यह कदम जातिगत भेदभाव खत्म करने की दिशा में क्रांतिकारी प्रतीत होता है, लेकिन जब इसे राजनीतिक संदर्भ में देखा जाता है, तो इसके पीछे कई गहरे प्रश्न खड़े हो जाते हैं।

बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री ही नहीं सामाजिक न्याय के सूत्रधार भी थे भोला पासवान शास्त्री

आमतौर पर भोला पासवान शास्त्री का जिक्र आते ही एक व्यक्तिगत ईमानदार और आदर्शवादी राजनेता का चेहरा उभरता है जिसने तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बावजूद अपने लिए कुछ नहीं किया। अत्यंत संयम और किफायत के साथ अपना पूरा जीवन गुजार दिया। लेकिन केवल इतना ही काफी नहीं है बल्कि भोला पासवान शास्त्री ने सामाजिक न्याय की दिशा में बेमिसाल काम किया है जिसकी ओर प्रायः ध्यान नहीं दिया गया है। अपने कार्यकाल में मुंगेरी लाल आयोग का गठन करके उन्होंने भविष्य में मण्डल आयोग की जरूरत का सूत्रपात कर दिया था। हरवाहे-चरवाहे के रूप में जीवन शुरू करनेवाले भोला पासवान शास्त्री के रोचक और प्रेरक जीवन पर एच एल दुसाध का लेख।

देश का सांप्रदायिककरण करने में आरएसएस के बाद ढोंगी बाबाओं की कतार सबसे आगे 

बाबा पंडा-पुरोहितों के परंपरागत वर्ग से ताल्लुक नहीं रखते। वे लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की स्वयं की नई-नई तरकीबें ईजाद करते हैं। कुछ परंपरागत ज्ञान और कुछ अपनी कल्पनाओं को मिश्रित कर वे ऐसे विचार प्रस्तुत करते हैं जो उनकी पहचान का केन्द्रीय बिंदु होता है। अपने हुनर पर उनका भरोसा वाकई काबिले तारीफ होता है और वे प्रायः बहुत अच्छे वक्ता होते हैं। 

मिल्कीपुर रेप काण्ड  : राजनीतिक अश्लीलता के बीच दलित की बेटी को न्याय कैसे मिलेगा?

योगी सरकार लगातार प्रचार कर रही है कि उत्तर प्रदेश में महिलाएं पूर्णत: सुरक्षित हैं, लेकिन यहाँ रोज ही बलात्कार की अनेक घटनाएं सामने आ रही हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 से 2020 तक दलित महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के मामलों में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में दलित महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ बलात्कार की 10 घटनाएं प्रतिदिन रिपोर्ट की जाती हैं। उत्तर प्रदेश राज्य लगातार उन राज्यों की एनसीआरबी सूची में शीर्ष पर है जहां दलित विरोधी घटनाएं प्रचलित हैं। उसके खिलाफ कानून जरूर बने हुए हैं लेकिन वे पर्याप्त नहीं है क्योंकि पुलिस-प्रशासन अक्सर ही अपराधी के खिलाफ मामला दर्ज करने की बजाए उन्हें संरक्षित करने का काम करती है। संविधान में भले ही समानता व धर्मनिरपेक्षता की बात कही गई है लेकिन यहाँ रहने वाले अधिकतर आज भी जातिवादी आधार पर काम कर रहे हैं। ।

गुलबर्ग सोसायटी : न्याय पाने की उम्मीद लिये विदा हो गयी जकिया जाफरी !

जकिया जाफरी न नेता थीं, न कोई सामाजिक संस्था की संचालिका थीं और न ही किसी राजनैतिक पार्टी की सदस्य थीं लेकिन उन्होंने गोधरा कांड के समय अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी में हुए 68 लोगों के नरसंहार के न्याय के लिए पिछले बीस वर्षों से संवैधानिक लड़ाई लड़ रही थीं और अंतत: 87 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस से तत्कालीन आरएसएस प्रमुख बीमारी का बहाना बनाकर क्यों नहीं मिले

आरएसएस आज़ादी की लड़ाई में हिस्से लेने के चाहे जितने दावे प्रस्तुत करे लेकिन उसका सच व झूठ सबके सामने है। देश के महान नेताओं की कमियों को सामने रख उनकी छवि बिगाड़ने का काम आरएसएस लगातार कर रहा है जबकि नेताजी सुभाषचंद्र बोस से आरएसएस के संस्थापक और प्रथम संघ प्रमुख डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने स्वस्थ्य रहते हुए बीमारी का बहाना बना उनसे मिलने से इनकार किया। मतलब आरएसएस की सत्ता और कार्यशैली हमेशा से ही झूठ पर चल रही है। आज नेताजी की 128वीं जयंती पर आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार और नेताजी की मुलाक़ात को लेकर हुई घटना का ज़िक्र इस लेख में किया गया है।

भारत के धार्मिक विभाजन के खिलाफ थे खान अब्दुल गफ्फार खान

ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान सीमाप्रांत और बलूचिस्तान के एक महान राजनेता थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और अपने कार्य और निष्ठा के कारण बादशाह खान के नाम से पुकारे जाने लगे। वे भारतीय उपमहाद्वीप में अंग्रेज शासन के विरुद्ध अहिंसा के प्रयोग के लिए जाने जाते हैं। वह 1940 के लाहौर प्रस्ताव में पाकिस्तान के निर्माण का कड़ा विरोध करने वाले पहले लोगों में से एक थे, और उन्हें इस विरोध के परिणाम 15 अगस्त 1947 के बाद भी अपनी मृत्यु तक भुगतने पड़े। भारत में रहते हुए पाकिस्तान के खिलाफ बोलना और लिखना और पाकिस्तान में रहते हुए पाकिस्तान के खिलाफ बोलना और लिखना, दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। उनकी 36वीं पुण्यतिथि पर डॉ सुरेश खैरनार की टिप्पणी।

ईवीएम : भारत का चुनाव आयोग संदेह पैदा कर अपनी विश्वसनीयता खो रहा है

वर्तमान केंद्र सरकार ने शनिवार, 21 दिसंबर को, जबकि हरियाणा विधानसभा चुनाव की याचिका की सुनवाई हरियाणा और पंजाब उच्च न्यायालय, चंडीगढ़ में चल रही है। उसे देखते हुए चुनाव आचार संहिता के नियमों को आनन-फानन में बदलने की कार्रवाई को देखने के बाद, जिससे आम लोग चुनाव के ई-दस्तावेजों को सीधे नहीं देख पाएंगे, इलेक्ट्रॉनिक चुनाव प्रक्रिया के बारे में मेरा संदेह और भी बढ़ गया है

डॉ आंबेडकर के प्रति हिकारत के पीछे संघ-भाजपा की राजनीति क्या है

एक तरफ डॉ अंबेडकर ने जहां संविधान में समानता, बंधुत्व, स्वतंत्रता को शामिल किया, वहीं आरएसएस ने देश में हिंदुत्व को बढ़ावा देते हुए फासीवाद और ब्रह्मणवाद मार्का पर काम कर रहा है, जिसके बाद अम्बेडकरवादी विचारधारा पर लगातार हमला हो रहा है। 
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