कल विरहा के सुप्रसिद्ध गायक श्यामदेव प्रजापति ने दुनिया को अलविदा कह दिया। यह सहसा विश्वास करने वाली खबर नहीं थी लेकिन यह सत्य था कि श्यामदेव चले गए। वह एक धुरंधर गायक थे और दो दशक तक उन्होंने अपनी गायकी के जलवे बिखेरे। उन्होंने तथाकथित सम्राटों-सुल्तानों से बहुत अच्छा गाया। यह और बात है कि बिरहा के षड्यंत्रकारी और चारण समाज में जिस तरह की जोड़-तोड़ और चरण-वंदना मजबूत होती गई श्यामदेव प्रायः उससे बाहर होते गए लेकिन जिन लोगों ने एक बार भी उनकी गायकी सुनी होगी वह जानते होंगे कि श्यामदेव कैसे गायक थे। उनकी एक विशिष्ट शैली थी, जिसके बल पर उन्होंने अपनी ऊँची जगह बनाई।
श्यामदेव प्रजापति का जन्म 5 जनवरी सन् 1964 में ग्राम गदाईपुर, जखनियां, गाजीपुर में हुआ था। उनकी माँ का नाम बसमती देवी तथा पिता का नाम बिरई प्रजापति था। वह बंबई बन्दरगाह में नौकरी करते थे। वह गणेश अखाड़े के गायक थे। श्यामदेव को बिरहा से लगाव बचपन के दिनों में ही हो गया। स्कूल की बाल सभाओं और क्षेत्रीय राजनीतिक रैलियों में कविता गीत गाते रहे। जब कुछ बड़े हुए तो कैसेटों के द्वारा बिरहा सुनते- सुनते उसके प्रति रुझान बढ़ता गया। वह गुरु पत्तू अखाड़े के मशहूर गायक शिवमूरत यादव को ज्यादा पसंद करते थे। धीरे-धीरे वह शिवमूरत यादव से मिलने-जुलने लगे तथा इंटर में पढ़ाई के दौरान 1981 में उनको सिन्नी-पान देकर अपना आदर्श और गुरु मानकर बिरहा सीखने और गाने लगे। कई जगहों पर बिरहा गाने से उनकी ख्याति बढ़ने लगी।
श्यामदेव ने बी ए तक शिक्षा प्राप्त की और जब एम ए के पहले साल में थे तभी उन्हें रेलवे में टीटी की नौकरी मिली। लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें लगा कि वह अपनी दिलचस्पी के उलट काम कर रहे हैं। वह अजीब सी घुटन के शिकार होने लगे और अंततः अपने पिता के पास गए और अपनी इच्छा बताई। यह उनके पिता के लिए वज्राघात जैसा था। वह आगबबूला हो उठे। उन्होंने श्यामदेव को डांटते हुये कहा कि जो मैंने बनाया है तुम वह सब बरबाद कर दोगे। लेकिन श्यामदेव ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और इस बात पर अडिग रहे कि उन्हें बिरहा ही गाना है। उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी।
श्यामदेव मुंबई से गाँव लौट आए। उनकी दीवानगी बढ़ती गई। उनके पिता का गुस्सा कम नहीं हुआ। उन्होंने कई पन्नों की चिट्ठी गाँव भेजी जिसमें बक़ौल श्यामदेव गालियाँ लिखी हुई थीं। वह घरवालों को ताकीद करते कि श्यामदेव को घर से भगा दो। इन सबके बावजूद श्यामदेव अपनी ज़िद पर अड़े रहे। संयोग से उनके बाबा उनके साथ खड़े रहे और अपने पौत्र को प्रोत्साहित करते रहे। बाबा कजरी के बहुत बड़े कलाकार थे। इसलिए वे अपने पौत्र की मनःस्थिति और एक कलाकार की बेचैनी समझते थे। आगे चलकर श्यामदेव मशहूर गायक बन गए। उन्होंने इतना अच्छा गाया कि तथाकथित बिरहा सम्राटों के छकके छुड़ा दिये।
श्यामदेव ने तमाम नामी-गिरामी कलाकारों के साथ विरहा दंगल गाया। उनका बिरहा टी सीरीज से लेकर तमाम नामी-गिरामी कैसेट कम्पनियों में बिरहा रिकॉर्ड हुआ और गाँव-गाँव तक उनकी गूंज सुनाई पड़ने लगी। फिलहाल अब कैसेट का ज़माना गया लेकिन उनके कई गाने यूट्यूब चैनलों पर मौजूद हैं। उन्होंने महुआ टीवी चैनल विरहा दंगल टू में भी अपने गायकी का परचम लहराया।
श्यामदेव ने एक गायक के रूप में उत्तर प्रदेश की दो राजनीतिक पार्टियों के लिए लंबे समय तक गाया। सामाजिक कार्यों के लिए वह इतने उत्साही थे कि हमेशा आगे बढ़कर काम करते थे। नब्बे के दशक में सुखदेव राजभर के चुनाव के समय अपने घर में ही चुनाव कार्यालय बना दिया और अपनी टीम लेकर प्रचार के लिए निकल पड़े। हालांकि उन्हें इस बात का गहरा रंज था कि पार्टी ने उनके योगदान का न तो उचित मूल्यांकन और न ही कुछ दिया गाया जबकि कई लोगों को एमएलसी बनाया गाया अथवा दूसरे पद दिये गए। 1993 में कई कार्यकर्ताओं के साथ वह समाजवादी पार्टी आ गए और जमकर काम किया। वह बताते थे कि यहाँ उन्हें पर्याप्त सम्मान मिला। उन्होंने एक गायक के रूप में अलग मुकाम बनाया।
श्यामदेव ने अनेक बिरहे गाये। उन्होंने शिवमूरत के लिखे कई बिरहा गाये जिनमें कुछ की टेरियाँ बहुत लोकप्रिय हुईं मसलन 1- ऊषा भरी लालिमा लेकर किरन सुनहरी/दुपहरी में सूर्यास्त हो गया। 2- ईद बन गई मोहर्रम खुशियां मातम छाई /शहनाई गहिरे पानी में डुबी। 3- शेर हल्दीघाटी में गर्जा मेवाड़ वाला/भाला में जेकरे बरसै अगिया। 4- क्रोधित होय जटा को पटक दिए बम भोला भूमंडल पर एक शोला बन गया 5- कहीं पे ईंट कहीं पे पत्थर बने सिपाही /आशा के राही धोखे में पड़े।
इसके अतिरिक्त घुरभारी के लिखे कुछ बिरहे भी गए जो अत्यंत लोकप्रिय हुये। इनमें सबसे प्रसिद्ध बिरहा एक करोड़ का जूता है। यह हजारीबाग कांड पर आधारित है। उनके अनेक गाने यू ट्यूब पर हैं और उनके चाहनेवालों की एक बड़ी कतार है।
पिछले कुछ वर्षों से श्यामदेव अनेक परेशानियों से घिरते चले गए थे। उन्हें पक्षाघात हुआ जिससे वह बड़ी मुश्किल से उबर पाये लेकिन स्मृतिभ्रंश का शिकार होने से नहीं बच पाये। इस बीमारी ने उन्हें गहरे अवसाद में धकेल दिया और उनकी बुलंद आवाज धीरे-धीरे कमजोर पड़ती गई। विगत वर्षों में उनका गायकी सिर्फ एक रस्म अदायगी भर होकर रह गई थी जबकि अपने पुराने वैभव के कारण वे बड़े सामाजिक दायरे में सम्मानित थे और इसलिए हर कहीं आदर के साथ बुलाये जाते थे। मृत्यु से दो दिन पहले भी वह किसी जगह गाने गए थे।
अपनी बीमारी के अलावा श्यामदेव अपने घरेलू मोर्चे पर भी लगातार लड़ रहे थे और इन हालात ने उन्हें अंदर ही अंदर तोड़कर रख दिया। उनके बच्चे उनकी सोच के विपरीत निकले जिनके भविष्य की चिंताओं ने श्यामदेव को उच्च रक्तचाप और मधुमेह का स्थायी शिकार बना दिया। हालांकि बिरहा में उनके साथी-संघाती श्यामदेव को बहुत दिलेर और सहनशील मानते हैं।
श्यामदेव प्रजापति का गया एक यादगार बिरहा
दिल्ली निवासी बेचू यादव कहते हैं कि ‘श्यामदेव अहसानफरामोशी के दौर में अहसान मानने वाले दुर्लभ व्यक्ति थे। अगर किसी ने उनके लिए एक रत्ती किया तो वह कई सेर लौटानेवालों में से थे।’ बेचू लंबे समय तक कैसेट कंपनियों के साथ जुड़े रहे और प्रायः सभी बिरहा गायक-गायिकाओं के इतिहास-भूगोल से परिचित हैं। श्यामदेव से भी उनकी अच्छी मैत्री रही है। बेचू कहते हैं ‘मित्रता निभाने के लिए श्यामदेव कोई भी त्याग करने को तत्पर रहते थे।’ श्यामदेव ने बिरहा जगत में बहुतों की मदद की।
पत्तू अखाड़े की तीन विभूतियों की मूर्तियाँ स्थापित करने में श्यामदेव ने अनमोल योगदान किया। पत्तू गुरु की मूर्ति उनके पैतृक गाँव नकटी रघुनाथपुर चंदौली में स्थापित करने के लिए उन्होंने बनवाई लेकिन दुर्भाग्य से आज भी वह मूर्ति बोरे में सिली हुई रखी है। अगला दायित्व गायक काशीनाथ यादव का है कि उसका क्या होगा?
अपने गुरु शिवमूरत की मूर्ति श्यामदेव ने उनके गाँव में स्थापित करवाया है। इसके अतिरिक्त सोहित खलीफा की मूर्ति भी बनवाई। गौरतलब है कि सोहित खलीफा शिवमूरत के भी गुरु तथा ऊंचे कलाकार थे।
श्यामदेव अपनी गायकी, सहृदय व्यवहार के कारण हमेशा याद किए जाएंगे।