हमारे देश का झंडा कैसा हो, उस झंडे के पीछे कौन सा विचार है, उसका इतिहास क्या है। इस पर संविधान सभा में लंबी बहस हुई थी। बहस की शुरूआत पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी। नेहरू जी ने इस संबंध में एक प्रस्ताव पेश किया था।
अपने भाषण की शुरूआत करते हुए उन्होंने कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मुझे इस संबंध में प्रस्ताव पेश करने को कहा गया है। प्रस्ताव इस प्रकार था-कि हमारे देश के झंडे का स्वरूप क्या होगा? इसमें कौन से रंग डाले जायेंगे। यह हमें तय करना है। इस संबंध में उन्होंने विस्तृत प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव पर चर्चा प्रारंभ करते हुए उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव बहुत ही सादा है। इसमें न तो कोई चमक है और ना ही कोई अन्य गर्माहट है। परंतु मुझे पूरा विश्वास है कि इस संदर्भ में लोगों की क्या भावना होगी। परंतु मैं जानता हूँ कि इस झंडे का एक इतिहास है। कभी-कभी यह लगता है कि इसके पीछे सदियों का इतिहास है। इस झंडे के पीछे इतिहास की अनेक करवटें हैं, विशेषकर पिछले 25 सालों की। अनेक स्मृतियाँ मुझे झकझोर रही हैं। मैं और इस सदन में अनेक लोग यह महसूस करेंगे कि हमने इस झंडे को किस गर्व से और किस उत्साह से देखा। उसकी आवाज़ें आज भी हमारे कानों में सुनाई पड़ रही हैं। यह झंडा हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। इस सदन में ऐसे अनेक लोग हैं जो झंडे को अंत तक सम्हाले रहे। इस झंडे को सम्हालने वाले ऐसे अनेक लोग हैं जो हमारे बीच में अब नहीं रहे। जो इसे अंत तक सम्हाले रहे हैं और जो इसे सम्हाले हुए मौत से भी नहीं डरे। सच पूछा जाए तो इस झंडे का संघर्ष का इतिहास है। जिस संघर्ष के माध्यम से हम आज़ादी की कामना करते रहे और आज भी कर रहे हैं। इस झंडे को जब हम हाथ में लेते हैं तो हमें एक प्रकार की विजय महसूस होती है।
इस तरह मैं यह प्रस्ताव पेश कर रहा हूँ। मैं इस प्रस्ताव से इस झंडे की परिभाषा रख रहा हूँ और वह परिभाषा क्या होनी चाहिए यह भी बता रहा हूँ। यह झंडा हमें बड़े से बड़ा बलिदान करने की प्रेरणा देता है। वैसे हम सब ने इस झंडे को तरह-तरह के दृष्टिकोण से देखा है। परंतु मैं यह कहने की स्थिति में हूँ कि जब हमने इस झंडे का स्वरूप तय किया था तब वह हमें बहुत ही सुंदर लगा था। वैसे तो हर झंडा सुंदर होना चाहिए परंतु जब वह किसी देश की चेतना का प्रतीक होता है तो उसका सुंदर होना लाज़मी है।
इस झंडे के आसपास अनेक महत्वपूर्ण घटनाएँ हुई हैं जिन्हें हम सदा याद करेंगे। इन घटनाओं के याद आते ही हम दुखी हो जाते हैं। यह झंडा हमें अंतिम मंजिल पाने की प्रेरणा देता है। शायद हम अपनी अंतिम मंजिल उस रूप में पैदा न कर पाएं जिसकी हमनें परिकल्पना की थी परंतु हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हम बहुत कम उन सपनों को साकार कर पाते हैं जो हमने देखे हैं। इस संदर्भ में हमें बहुत उदाहरण याद रहते हैं। कुछ सालों पहले एक बड़ा युद्ध लड़ा गया था। उस युद्ध ने मानवता पर अनेक संकट लादे थे। कुछ राष्ट्र उस युद्ध के माध्यम से आज़ादी और लोकतंत्र हासिल करना चाहते थे। कुछ ने उस युद्ध के दौरान अपनी आज़ादी भी खोई और लोकतंत्र को भी खोया। उस युद्ध में ऐसे लोगों ने सफलता पाई जो आज़ादी और प्रजातंत्र के हामी थे। परंतु कुछ समय बाद फिर दूसरा युद्ध चालू हो गया, जिसने फिर अनेक मुसीबतें मानवता पर लादीं। आज़ादी दुनिया के अनेक राष्ट्रों के लिए अभी भी दूर की मंजिल है। हम भी ऐसे ही राष्ट्रों में से हैं जिनके लिए आज भी आज़ादी दूर की मंजिल है। इसमें शर्म करने की जरूरत नहीं है क्योंकि अभी तक हमने जो हासिल किया है वह कम भी नहीं है। इसलिए ऐसे समय में यह उचित होगा कि जो कुछ हमने हासिल किया है उसके प्रतीक के रूप में हम इस झंडे को स्वीकार करें।
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ऐसे अवसर पर हमें सोचना चाहिए कि आखिर आज़ादी क्या है? आज़ादी के लिए संघर्ष करने का अर्थ क्या है? मेरी मान्यता है कि आज़ादी उस समय तक जरूरी है जब हमारे देश में एक भी इंसान ऐसा हो जो अपने को आज़ाद अनुभव नहीं कर रहा हो। हमारे देश में तो क्या अगर दुनिया में भी अगर ऐसा इंसान है, जिसे भूख का सामना कर पढ़ रहा हो, जिसे अपना शरीर ढंकने के लिए यथेष्ट कपड़े नहीं हों, जो इंसान की जीवन की कुछ महत्वपूर्ण आवश्यकताओं को प्राप्त नहीं कर पा रहा हो, जिसके लिए प्रगति के दरवाजे अभी भी बंद हैं। यदि ऐसी स्थिति है तो उसे मैं आज़ादी नहीं मानूंगा। मैं सही आज़ादी उसे मानूंगा जब हमारी आने वाली पीढ़ियां ऐसा समाज हासिल कर सकें जिसमें वह सब प्राप्त हो जाए जिसका वर्णन मैंने किया है। या जिन्हें इस तरह की स्थितियाँ प्राप्त करने में कठिनाई महसूस न हो। वैसे मैं जानता हूँ कि जो कुछ हम चाहते हैं उसे पूर्ण रूप से हासिल करना संभव नहीं है। परंतु हमें ऐसे अवसर बना देना चाहिए जिसमें वह सब प्राप्त कर सकें जिसे आज़ादी कहते हैं और जिसे लोकतंत्र कहते हैं।
हम एक ऐसे झंडे की कल्पना कर रहे हैं जो एक हद तक इंसान की महत्वाकांक्षा का प्रतिनिधित्व कर सके। इसलिए मैं सोचता हूं कि हमने जिस झंडे की कल्पना की है वह हमें वह सब हासिल करने की प्रेरणा देता है जो उसके जीवन को सुखद बनाता है। इंसान सिर्फ भौतिक चीजों से सुखी और संतुष्ट नहीं होता है। यद्यपि उनको हासिल करना भी महत्वपूर्ण है।
कोई भी राष्ट्र-हमारा राष्ट्र मिलाकर, जो भौतिक चीजों के साथ-साथ उन चीजों को भी हासिल करना चाहता है जो उसे आत्मिक सुख देता है। हम सदियों से इस तरह की चीजों को हासिल किए हुए हैं। हमने भले ही भौतिक चीजे़ हासिल न की हों, हम भले ही अत्यधिक दुखी वातावरण में रहे हों परंतु ऐसी स्थिति में भी हमने अपने सिर को ऊँचा रखा है और हमने अपने आदर्शों और उसूलों को बचाकर रखा है। हम जो यहां पर एकत्रित हुए हैं वे एक संक्रमण काल से गुजर कर एकत्रित हुए हैं और हम इस संक्रमण को महसूस भी कर रहे हैं। हम इस संक्रमण को सुखद भविष्य के रूप में परिवर्तित भी कर रहे हैं।
जैसा कि मैंने अपने भाषण के प्रारंभ में कहा था कि यह मेरा सुखद अधिकार है कि मुझे यह प्रस्ताव पेश करने का अवसर दिया गया है। मैं अब कुछ बातें इस झंडे के बारे में भी कहना चाहूंगा। इस झंडे और उस झंडे में जिसे हम पिछले कई वर्षों से लहराते रहे हैं थोड़ा अंतर है। वैसे इस झंडे के रंग भी वही हैं जो पहले झंडे में थे। पहले झंडे में चरखा था, जो आम आदमी के श्रम का प्रतीक था। जो हमें महात्मा गाँधी के आदेश से प्राप्त हुआ था। इस झंडे में थोड़ा अंतर किया गया है। इस झंडे में चरखे के स्थान पर अब एक चक्र (spindle) रखा गया है।
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इस तरह हमने चरखे को पूरी तरह नहीं नकारा है। चरखे में चक्र होता था जिसे हमने इस झंडे में भी रखा है। परंतु किस तरह के चक्र को हमने रखा है? हमारे दिमाग में अनेक चक्र थे परंतु जो चक्र हमने रखा है वह हमें सम्राट अशोक की याद दिलाता है। उस अशोक का जिसका हमारे देश के इतिहास में अतिमहत्वपूर्ण स्थान है। न सिर्फ हमारे इतिहास में वरन् दुनिया के इतिहास में भी। आज के समय में दुनिया आपसी बैर, आपसी लड़ाई, असहिष्णुता के दौर के गुज़र रही है। हमारी स्मृति भारत के उस काल की तरफ जाती है जब हम कुछ महत्वपूर्ण आदर्शों के प्रति समर्पित थे। शायद इन्हीं आदर्शों और सिद्धांतों के कारण हमारा देश और उसकी सभ्यता आज भी जीवित है। यदि हम उन आदर्शों में विश्वास नहीं रखते तो हमारा भारत कभी का मर जाता। हम उन आदर्शों को नये वातावरण में भी जिंदा रख सकें। इन्हीं के कारण हम दुनिया के देशों से अपना संबंध बनाए रखे हैं। इन्हीं के कारण भारत दुनिया का एक महत्वपूर्ण केन्द्र रहा। इन्हीं के कारण हम अपने सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों को दुनिया के कौने-कौने में भेजते रहे। यही हमारी ताकत रही है। इसके साथ ही हम दुनिया के अच्छे उसूलों को अपनाते रहे।
इसलिए मैंने अशोक के नाम का उल्लेख किया। सच पूछा जाए तो सम्राट अशोक का काल भारतीय इतिहास का एक महानतम काल था। यह ऐसा समय था जब भारत ने अपने दूतों को दूसरे देशों में उस रूप में नहीं भेजा जिस रूप में सम्राज्यवादी देश भेजा करते थे और भेजते हैं। हमारे राजदूत शांति, संस्कृति और सद्भावना का संदेश लेकर जाते थे। इसलिए जो झंडा मैं इस सदन को अर्पित कर रहा हूँ वह एक साम्राज्य का झंडा नहीं है बल्कि आज़ादी का झंडा है। न सिर्फ हमारे लिए बल्कि दुनिया में रहने वाले हर इंसान के लिए है। इसलिए यह झंडा अब जहाँ भी जायेगा, जहां हमारे राजदूत रहेंगे, जहां हमारे जहाज जायेंगे वहां वे शांति का संदेश देंगे। दूसरे देशों से मैत्री का संदेश देंगे। यह झंडा यह संदेश देगा कि वह दुनिया के सभी देशों से मैत्री चाहता है। (एल.एस. हरदेनिया द्वारा)