Sunday, December 22, 2024
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वाराणसी : 100 दिन के सत्याग्रह के समापन कल

 राजघाट वाराणसी स्थित सर्व सेवा संघ परिसर के पुनर्निर्माण के संकल्प के साथ विनोबा जयंती, 11 सितंबर 2024 से प्रारंभ 100 दिन का सत्याग्रह- न्याय के दीप जलाएं का कल 19 दिसंबर 2024 को 100 दिन पूरा हो जाएगा। इसके लिए देश भर से गांधीवादी कार्यकर्ता वाराणसी पहुँच रहे हैं। 

वाराणसी : ‘मेरी रातें मेरी सड़कें’ कार्यकम में महिलाओं ने बराबरी के अधिकार का किया दावा

निर्भया गैंगरेप से अगर आज तक के सफर को देखा जाए तो हम पाएंगे कि बलात्कार, यौन हिंसा और महिला उत्पीड़न जैसे मामलों से निपटने में हमारी संवेदना का पतन हुआ है। वह दौर था जब पूरा समाज, मीडिया और विपक्ष एकजुट होकर सरकार से सवाल करता था और सरकारों को जनहित में कानून बनाने को मजबूर करता था। आज जब भी ऐसे मामले सामने आते हैं मीडिया और पूरा सरकारी तंत्र सरकार के पक्ष में खड़ा हो जाता है। अब ऐसे मामलों में न्याय से पहले पीड़िता या अपराधी की पहचान को देखा जाने लगा है।

वाराणसी : वयस्क शिक्षा के लिए डिजिटल उपकरण का वितरण

शिक्षाप्लस परियोजना का लक्ष्य ग्रामीण समुदायों को शिक्षित और सशक्त बनाना है। इसके तहत ग्रामीण भारत में वंचित तबकों को शिक्षित कर उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की परिकल्पना की गई है।

वाराणसी : शास्त्री घाट पर सत्याग्रह के 96वें दिन बैठे गांधीवादी

गांधी विरासत को बचाने के लिए प्रशासनिक दबाव के चलते सर्व सेवा संघ परिसर के सामने से स्थानांतरित होकर  शास्त्री घाट में चल रहे सत्याग्रह का आज 96 वां दिन है। स्वतंत्रता आंदोलन में विकसित हुए लोकतांत्रिक भारत की विरासत और शासन की मार्गदर्शिका- संविधान को  बचाने के लिए 11 सितंबर (विनोबा जयंती) से सर्व सेवा संघ के आह्वान पर न्याय के दीप  जलाएं -100 दिनी सत्याग्रह जारी है जो 19 दिसंबर 2024 को संपन्न होगा।

वाराणसी : जन सहभागिता और प्रशासनिक इच्छाशक्ति से ही वरुणा का पुनरुद्धार संभव 

वरुणा नदी पुनरुद्धार संभावनाएं एवं चुनौतियां विषय पर आयोजित बैठक में प्रमुख रूप से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी मुम्बई एवं आईआईटी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट देहरादून के वैज्ञानिक, पर्यावरण के प्रति सचेत नागरिक, पर्यावरण कार्यकर्ता, भू सेवा जल सेवा अभियान के कार्यकर्ता, वरुणा नदी संवाद यात्रा के सदस्य और साझा संस्कृति मंच के सदस्य शामिल रहे।

अंडिका गांव में तीसरे दिन भी किसानों और मजदूरों का धरना

हम एसडीएम फूलपुर से इस बाबत पत्रक के साथ मिले तब उन्होंने और उनके सह कर्मचारी ने इस सर्वे के बारे में अनिभिज्ञता जताई और स्पष्ट कहा कि ऐसे किसी सर्वे की जानकारी हमें नहीं है।

शिद्दत से याद किए गए बाबू शिवदयाल चौरसिया

यह गांव पहले एक अपमानजनक नाम से पुकारा जाता था जो कि सवर्ण जातियों का सबसे प्रिय शगल था, लेकिन अब इसका नाम सम्मान से लिया जा रहा है। कार्यक्रम के मुख्य आयोजक बुजुर्गवार राममगन वर्मा बहुत उत्साह से सारा इंतजाम देख रहे थे और इस बात पर प्रसन्न थे कि कार्यक्रम में दूर-दराज से लोग आए हैं।

राजातालाब तहसील में लटकाया जा रहा है सैकड़ों आय, निवास और जाति प्रमाणपत्र

अपने हक की जानकारी न होने के कारण ही लोग तहसील में शिकायतों की अर्जियां लेकर भटकते नजर आते हैं। जनहित गारंटी अधिनियम के तहत हर काम का समय तय है। आप सात दिन में शैक्षणिक कार्य हेतु जाति आय निवास प्रमाण जारी करवा सकते हैं। इसमें देरी होती है तो आप अपील कर मुआवजा लेने के लिए क्लेम कर सकते हैं।

रोजगार देने के आश्वाशन के बाद विस्थापितों की भूख हड़ताल खत्म, लेकिन जारी रहेगा अनिश्चितकालीन धरना

छत्तीसगढ़ किसान सभा के जिला सचिव प्रशांत झा, रोजगार एकता संघ के अध्यक्ष रेशम यादव और सचिव दामोदर श्याम लंबित रोजगार प्रकरणों को जल्द निपटाने की मांग को लेकर 2 मार्च से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए थे। उनके साथ सैकड़ों भूविस्थापित ग्रामीण भी लगातार तीन दिनों से धरना में शामिल हो रहे थे। इससे प्रबंधन की परेशानियां बढ़ गई थी।

गेवरा महाप्रबंधक कार्यालय का घेराव कर 15 मार्च को खदान बंद की चेतावनी

एसईसीएल प्रबंधन कुसमुंडा क्षेत्र में भूविस्थापितों के 500 दिनों से चल रहे अनवरत धरना से पहले से ही परेशान है, वहीं आज किसान सभा ने सैकड़ों भूविस्थापितों के साथ गेवरा महाप्रबंधक कार्यालय का घेराव कर दिया और रोजगार, पुनर्वास और मुआवजा संबंधी मांगें पेश कर दी। इन मांगों पर कार्यवाही न होने की स्थिति में किसान सभा ने 15 मार्च को गेवरा खदान बंद करने की चेतावनी भी प्रबंधन को दी है।

शीतलहर भी नहीं रोक पाई खिरिया बाग के किसानों का संघर्ष

खिरियाबाग आंदोलन पर हमला जारी रहा जैसे दिल्ली के किसान आंदोलन को तोड़ने की कोशिश की गई थी। खिरिया बाग किसान-मजदूर आंदोलन को अर्बन नक्सल से जोड़कर अमर उजाला ने एक झूठी खबर प्लांट की। इस खबर का उद्देश्य आंदोलन को बदनाम करके खत्म करना था। ज़ाहिर है यह सरकार के इशारे पर किया गया और इसमें पत्रकार और अखबार के प्रबंधन को भारी भुगतान किया गया था। एक ऐसे संवेदनशील मुद्दे को इतने घातक तरीके से खबर के रूप में प्लांट करना और आंदोलन के समर्थकों को अर्बन नक्सल के रूप संदिग्ध बनाना कितना खतरनाक है यह कोई भी सचेत व्यक्ति समझ सकता है।