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मिर्ज़ापुरी कजरी और लोककवि बफ्फत शेख एक दूसरे के पर्याय हैं

मिर्जापुरी कजरी को आज जो भी मुकाम हासिल है उसमें बप्फ़त का केंद्रीय योगदान है। कहा जा सकता है कि वह मिर्जापुरी कजरी के पितामह थे। वह वैसे ही थे जैसे आगरे में नज़ीर अकबराबादी थे।

कजरी की बात होने पर मिर्ज़ापुरी कजरी और लोककवि बप्फ़त का नाम आना सहज है। दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। आज भले ही कजरी गायन की रौनक कम हो रही है लेकिन कजरी लेखक बफ़्फ़्त की लिखी कजरी आज भी गाई और सुनी जाती हैं। बेशक उनकी कब्र वीरान पड़ी है, उन्हें याद करने वाले कम हो गए हों लेकिन जब-जब कजरी की बात होगी बप्फ़त की याद जरूर आएगी।

 

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