गुलामगीरी में फुले ने ब्रह्मा के चार मुख, आठ भुजाओं और विभिन्न मिथकों को सीधे-सादे तर्क से खारिज करते हुए उसे एक हास्यास्पद परिघटना में बदल दिया है। इसी प्रकार आगे चलकर शेषशायी विष्णु की नाभि से कमलनाल का उद्भव और उसमें ब्रह्मा का चारमुखी आकार और भी विचित्र और मनगढ़न्त कपोल कल्पना है। फुले ने ब्राह्मणवाद द्वारा फैलाए गए गहरे अंधकार को काटते हुए उस मूल धारा की नष्ट हो चुकी अस्मिता को प्रकाश में लाने के लिए ब्राह्मणवादी स्थापनाओं पर जमकर प्रहार किया है और अपनी तर्क-दृष्टि से उन्हीं मिथकों को उल्टा टाँग दिया है जिनके बल पर ब्राह्मण अपने वर्चस्व की स्थापना करता है।
समाज की रूढ परम्पराओं, अंधविश्वासों, धार्मिक मान्यताओं तथा सामाजिक भेदभाव, उपेक्षा और शोषण का प्रतिकार कर समाज के तिरस्कृत, वंचित, उपेक्षित वर्गों और जातियों में समानता, सम्मान और स्वाभिमान चेतना का संचार करने वाले कबीर की वाणी का यह उपहास उनका अपमान है। यही हाल संत रविदास का हुआ। उनको भी ईश्वर भक्त के रूप में ही प्रचारित किया गया है।