Sunday, September 8, 2024
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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सुधा अरोरा

एक लाइन में कई कमरों वाला वह तीसरा तल्ला -2

दूसरा हिस्सा मौसी मां की बड़ी लाड़ली थी। मुझे अपने होश संभालने के बाद जो पहली शादी याद है, वह मौसी की शादी थी। विदाई...

सेचुरेशन पॉयन्ट पर पहुंचने के बाद औरत के संबंध महज एक औपचारिकता भर रह जाते हैं – 3

मन्नू जी ने सचमुच आत्मकथा लिखी ही कहां! लिखना संभव ही नहीं था। मन्नू जी के साथ दिक्कत यह है कि उन्होंने अपनी त्रासदी...

सीढ़ियों पर बैठी वह लड़की ….  (भाग – एक)

अपनी ज़िन्दगी के नब्बे साल पूरे करके 1981 में मेरी माँ ने इस दुनिया से विदा ली थी। आज अगर वे ज़िन्दा होतीं तो...

बाल बंधुआ से सामाजिक कार्यकर्ता बनने वाली सखुबाई की कहानी

‘संघटना’ के गांव में लाए जाने के पहले औरतें अपने पतियों द्वारा प्रताड़ित की जाती थीं। वे खेतों में कड़ी मेहनत करती हैं और जब पति घर लौटती है तो पति हुकुम चलाते हैं - पानी लाओ, दारु लाओ, आदि। ऊपर से पीटते भी हैं। अब संघटना के कारण बांदघर मे हम पतियों से नहीं डरतीं और न ही पुलिस और वन अधिकारियों से। पहले पति मुझे पीटा करते थे। अब मैं उनसे सीधे कह देती हूं कि अगर मुझ पर हाथ उठाया तो मेरा भी हाथ उठ जायेगा। मुझे तुमसे डर नहीं लगता, मैं भी पलटकर जवाब दूंगी।

जीवन और मृत्यु के बीच अस्तित्व की तलाश

शांत, सरल, सहज और बहुत ही धीमी आवाज़ में अपनी बात कहने वालीं सुधा अरोरा जी का आज जन्मदिन है। जन्मदिन  तो पूरे वर्ष...

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