किसानों की आत्महत्या के मामले में मध्य प्रदेश पांचवें नंबर पर है वहीं एक बार फिर बेमौसम बारिश मध्य प्रदेश के किसानों पर कहर बनकर गिरी है। सवाल है कि निजी बीमा कम्पनियाँ और सरकार किसानों को कितनी राहत पहुंचा पाती हैं?
आज समूचे देश में कृषि-क्षेत्र में 72 प्रतिशत से ज़्यादा लड़कियाँ और महिलाएँ दिन-रात पसीना बहा रही हैं। मगर उनका अस्तित्व आज भी उनके पति के अस्तित्व पर निर्भर करता है। फिर भी इन औरतों ने परिस्थितियों से जूझना बंद नहीं किया है। महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या के बाद उनकी पत्नियाँ किस तरह उनका कर्ज उतारकर जीवन जी रही हैं, पढ़िये ग्राउंड रिपोर्ट
आत्महत्या करने वाले अधिकतर किसान ओबीसी जातियों के हैं। मगर उनकी आत्महत्या का मुद्दा जब कहीं भी उन जातिगत राजनीतिक संगठनों के एजेंडे में शामिल नहीं है, तब ये आत्महत्याग्रस्त किसान महिलाएँ तो उस आंदोलन में अदृश्य ही हैं। आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार की विदर्भ से ग्राउंड रिपोर्ट
महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र का नाम किसानों की आत्महत्या के मामले में अक्सर सुनाई देता रहा है। लेखिका डॉ लता प्रतिभा मधुकर ने विदर्भ के यवतमाल और वर्धा जिले के मृतक किसानों की पत्नियों से मिलकर उनके संघर्ष और जीजीविषा को नजदीक से देखा। ये आत्महत्या न कर ज़िंदगी से क्यो और कैसे लड़ती हैं? पढ़िये ग्राउंड रिपोर्ट का भाग एक-