हिवरा ग्राम के किसान भरत राम बताते हैं, ‘तीन एकड़ में गेहूं बोए थे, तीव्र हवा और ओलावृष्टि के कारण आधे से ज्यादा गेहूं नष्ट हो गया है। जो गेहूं बचा है वह बेकार हो गया है, मार्केट में उसका भाव नहीं मिलेगा।’
मौसम और सरकार की दोहरी मार झेल रहा किसान, आत्महत्या को मज़बूर
किसानों की आत्महत्या के मामले में मध्य प्रदेश पांचवें नंबर पर है वहीं एक बार फिर बेमौसम बारिश मध्य प्रदेश के किसानों पर कहर बनकर गिरी है। सवाल है कि निजी बीमा कम्पनियाँ और सरकार किसानों को कितनी राहत पहुंचा पाती हैं?
मध्य प्रदेश में पिछले दिनों हुई बारिश और तीव्र ओलावृष्टि के चलते किसानों को भारी नुकसान हुआ है। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा, बैतूल और पांढुर्णा जैसे कई जिलों में बड़ी मात्रा में बारिश और ओलावृष्टि हुई। बारिश के साथ तेज हवा और ओलावृष्टि से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है।
इस बार जब यह बारिश हुई तो मध्यप्रदेश के किसानों के खेतों में सरसों, गेहूं, चना, मिर्च, टमाटर और संतरे की पकी फसल खड़ी थी, जिसे बारिश और ओलावृष्टि ने काफी नुकसान पहुंचाया है।
मध्य प्रदेश के पांढुर्णा जिला अंतर्गत आने वाले ग्राम हिवरा में हुई बारिश, ओलावृष्टि और तूफान के चलते गांव के किसानों की लगभग 80 फीसदी फसल खराब हो गई है। जो फसल बची है वह भी किसी काम की नहीं है। बेमौसम हुई बारिश और ओलावृष्टि ने किसानों की फसलों को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया है।
वे बताते हैं, ‘गेहूं को बोने के बाद उसे पूरी तरह तैयार करना, देखभाल करना और कटाई करना इन सबमें काफी लागत आती है। बेमौसम बारिश की वजह से सारी फसल बर्बाद हो गई और सारी लागत भी डूब गई है। गांव के किसान भारी नुकसान झेल रहे हैं।’
ग्राम हिवरा के किसान प्रकाश बताते हैं, ‘खेत में मिर्च बोई थी, फसल तैयार हो रही थी लेकिन बारिश, तूफान और ओलावृष्टि के चलते सारी फसल नष्ट हो चुकी है। जितनी लागत लगाई थी वो भी नहीं निकल पाएगी। फसल की कटाई का खर्चा अपनी जेब से ही भरना होगा।’
किसान भरतराम बताते हैं, ‘हमने स्थानीय स्तर पर ज्ञापन सौंपकर किसानों की समस्या से प्रशासन को अवगत कराया और मुआवजे की माँग की है। लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यदि किसानों को उचित मुआवजा नहीं मिला तो किसानों के हालात बद से बदतर हो जाएंगे।’
इस मामले पर हमने पांढुर्णा तहसीलदार से बात की, वे कहते हैं, ‘प्रशासन द्वारा किसानों के नुकसान का सर्वे कराया जा रहा है, सर्वे के बाद शासन के नियमानुसार किसानों के नुकसान की क्षतिपूर्ति की जाएगी।’
आल इंडिया किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘यह योजना बहुत बड़ा घोटाला है। किसानों का पैसा जमा करवा कर निजी बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा रहा है। ये बीमा कंपनियां अपनी मनमर्जी के हिसाब से मुआवजा देती हैं, हमारी मांग है कि क्षतिग्रस्त फसलों का सर्वे कराने और मुआवजा देने की जिम्मेवारी सरकार अपने हाथ में ले।’
कर्ज के जानलेवा कुचक्र में फंस रहे किसान
एक बार नुकसान होने पर किसान आगामी खेती में बेहतर उत्पादन के लिए कर्ज लेते हैं लेकिन दुबारा नुकसान होने पर उबर नहीं पाते हैं। इसी तरह किसान कर्ज के बोझ तले दबते चले जाते हैं।
किसान भरतराम बताते हैं, ‘किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के तहत उन्होंने सरकार से कर्ज लिया है, सोचा था कि फसल काटकर चुका देंगे लेकिन फसल तो नष्ट हो चुकी है अब वे अपना कर्जा नहीं चुका सकते हैं। कर्ज पर लगातार बढ़ रहे ब्याज के कारण उनका कर्जा काफी बढ़ गया है। वे कहते हैं कि हम कभी भी इस कर्जे को चुका नहीं पायेंगे और न ही अपनी बदतर आर्थिक स्थिति से बाहर निकल पाएंगे।’
आगे किसान भरतराम बताते हैं, ‘वे पिछले कई सालों से खेती कर रहे हैं, उनके परिवार में उनके बच्चे भी खेती का काम करते हैं लेकिन जितनी लागत लगाते हैं उतनी उपज नहीं हो पाती है। घर का खर्च चलाने के लिए भी उधार लेना पड़ता है। जिससे उनके ऊपर कर्ज बढ़ता जा रहा है।’
इस बार उन्होंने तीन एकड़ खेत में गेहूं की फसल बोई थी, जो मौसम की मार से खराब हो गई है। उनका कहना है, ‘जब तक किसानों के कर्ज को माफ नहीं किया जाता तब तक देश के किसानों के हालात नहीं सुधर पाएंगे। वे कहते हैं कि जो गेहूं उन्होंने बोया था वो खराब हो चुका है। इसमें मेहनत भी गई और जो लागत लगाई थी वो भी चली गई। अब हमारे पास कुछ नहीं बचा है।’
आल इंडिया किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज कहते हैं, ‘किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याएं सांस्थानिक हत्याएं हैं। सरकार की गलत नीतियों के कारण किसान लगातार कर्ज के दुष्चक्र में फँसते जा रहे हैं। एमएसपी के नाम पर किसानों के साथ सिर्फ छल किया जा रहा है। यदि सरकार को वास्तव में किसानों की चिंता है तब एमएसपी कानून लाकर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार C2+50 प्रतिशत फार्मूले के तहत एमएसपी की गारंटी दे और किसानों को स्थायी तौर पर कर्ज से मुक्ति दे।’
देश में लगातार किसानों की आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं, एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार देश में 11,290 किसानों ने आत्महत्या की है। वहीं किसानों की आत्महत्या के मामले में मध्य प्रदेश पाँचवें नंबर पर है, जहां 2022 के दौरान 641 किसानों ने आत्महत्या की है। मतलब साफ है कि भारत में हर 1 घंटे में 1 किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
यह आंकड़े साफ बताते हैं कि देश का किसान परेशान होने के साथ ही कितना ज्यादा मजबूर भी है। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं किसानों की समस्याओं को दूर करने में नाकाफी साबित हो रही हैं। केंद्र सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था लेकिन जमीन पर बिलकुल उलट तस्वीर देखने को मिल रही है। आंकड़े बताते हैं कि देश के किसान कृषि को छोड़कर अन्य कामों की ओर पलायन करने को मजबूर हैं।