डोनाल्ड ट्रम्प के दोबारा अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद मंगलवार को इज़राइली प्रधानमंत्री नेतान्याहू ने मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात के बाद ट्रम्प गजा पट्टी को अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र बनाने की योजना का प्लान दुनिया के सामने रखा। इससे पूरी दुनिया का चौंकना स्वाभाविक था। लोग इसे गजा पर अमेरिका के संभावित कब्जे के रूप में देख रहे हैं। ट्रम्प ने कहा कि गजा पट्टी के लोगों का वहाँ कोई भविष्य नहीं है और उनको कहीं और चले जाना चाहिए। ट्रम्प के बयान से फिलिस्तीन और गजा पट्टी के लोगों में खलबली मच गई। इससे फिलिस्तीनीयों के वे घाव हरे हो गए जो पिछले लगभग आठ दशकों से लगातार उनकी ज़िंदगी की स्थायी त्रासदी हो गए हैं। उन्हें डर है कि गजा पट्टी को अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र बनाने के बहाने उनकी बची हुई ज़मीन उनसे छिन जाएगी। फिलिस्तीन और गजा पट्टी की त्रासदी का ऐतिहासिक लेखा-जोखा प्रस्तुत कर रहे हैं जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सुरेश खैरनार।
युद्ध किसी समस्या का हल नहीं होता लेकिन दूसरे देश पर कब्जा करने की हवस युद्ध को बढ़ावा देती है। इसका खामियाजा आम नागरिकों को सहना पड़ता है। पिछले एक वर्ष से इजरायल व फिलीस्तीन के बीच चल रहे युद्द में तबाही के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ है।
दो देशों के बीच होने वाले युद्ध से युद्ध ग्रसित क्षेत्र में जो तबाही होती है, उससे मानव पूंजी पर तात्कालिक और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इससे कौशल की हानि होती है, विस्थापन होता है और मानसिक आघात होता है, जिससे उबरने में वर्षों लग सकते हैं, यदि कभी उबर भी पाएं तब।
पूरी दुनिया में कोई देश गृह युद्ध की चपेट में है तो कहीं दो देशों के बीच सत्ता हथियाने के लिए युद्ध छिड़ा हुआ है। दुनिया में युद्ध की राजनीति इतनी विकट है कि हर कोई सुपर पावर बनना चाह रहा है। इन युद्धों से उन देशों की आर्थिक स्थिति चौपट होने के साथ, सामाजिक व राजनैतिक, सांस्कृतिक अस्थिरता पैदा हो चुकी है, युद्ध को रोकने के लिए दबाव बनाने वाला कोई संगठन नहीं है। आम नागरिक, बच्चे, स्त्रियाँ और बुजुर्ग बेवजह मारे जा रहे हैं। कल फिलिस्तीन के नेता इस्माइल हानिया की ईरान में हत्या कर दी गई। इजराइल हमास और हिजबुल्लाह के अहम् नेताओं की हत्या के ज़रिये फलिस्तीन के लिए जारी जद्दोजहद को कमज़ोर करना चाह रहा है लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा, यह तो आने वाले समय ही बताएगा
ग़सान कनाफ़ानी को याद करने की वजह सिर्फ़ यह नहीं है कि उनके साहित्य की बारीकियों को समझा जाए और उसके कलात्मक अवदान को समझा जाए बल्कि आज के दौर में कनाफ़ानी को याद करने का अर्थ है फ़िलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष के साथ एकजुटता ज़ाहिर करना और उस फ़िलिस्तीन को बेहतर तरह से समझना जो आज लगभग आठ दशकों से इस तथाकथित आधुनिक दुनिया में इज़राएल के ज़ुल्मों को सहते हुए अपनी ही जमीन पर ग़ुलामों की तरह रहने पर मजबूर है।
संयुक्त राष्ट्र(भाषा)। इजराइल-हमास संघर्ष संबंधी प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहे भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि आतंकवाद ‘हानिकारक’ है और उसकी...
हमास आज सबसे बड़ा फ़िलिस्तीनी उग्रवादी इस्लामी समूह है। हमास हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया, या इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन का संक्षिप्त रूप है। अरबी में इस...