आरएसएस के विचारक यह दावा करते हैं कि हिन्दू धर्म सहिष्णु और समावेशी है, लेकिन हकीकत इससे बहुत अलग है। भागवत दंभपूर्ण लहजे में कहते हैं, ‘हिन्दू वह है जो दूसरों की आस्थाओं को नीचा दिखाए बिना अपने मार्ग पर चलने में विश्वास रखता है और दूसरों की आस्था का अपमान नहीं करता, जो इस परंपरा और संस्कृति का पालन करते हैं, वे हिन्दू हैं।' संघ संचालक प्रमुख कोई भी दावा करें लेकिन लेकिन वातविकता क्या है,यह सबके सामने है।
अंग्रेजों के समय से आज तक इस देश में ईसाई शैक्षणिक संस्थाएं सेवा और उत्कृष्टता के केंद्र हैं। ईसाई समुदाय, विशेष रूप से ननों और पादरियों ने स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सेवा क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया है। यही कारण है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा सहित संघी गिरोह के कई बड़े नेता, जो आज हिंदुत्व के पुजारी बने हुए हैं, इन्हीं शिक्षा संस्थाओं से पढ़कर निकले हैं और उनका हिंदुत्व की कोई नसबंदी नहीं हुई है। इसलिए ईसाई संस्थाओं पर धर्मांतरण का थोक के भाव में आरोप लगाने का एक ही उद्देश्य है कि उनकी धार्मिक स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया जाए और समाज में सांप्रदायिक विभाजन किया जाए।
फिलहाल सिस्टर प्रीति मैरी, वंदना फ्रांसिस और आदिवासी युवक सुखमई को जमानत मिल गई है। इस प्रकरण में पूरे देश में हुए हंगामे के बाद एनआईए अदालत से आरोपियों को जमानत मिलने का एक ही अर्थ है कि सरकार के प्रथम दृष्टया सबूतों को अदालत ने खारिज कर दिया है।
हिन्दुत्ववादी राजनीति का हमारे उत्सवों पर पड़ा प्रभाव उस राजनीति के बारे में बहुत कुछ कहता है। जिस प्रकार इनमें से कुछ त्योहारों को हथियार बना लिया गया है, यह शर्मनाक है। हिंदू राष्ट्रवादियों का एक छोटा सा समूह भी धार्मिक जुलूस होने का दावा करते हुए अल्पसंख्यकों की बस्तियों से जाने की जिद कर सकता है। राजनैतिक और गाली-गलौज भरे नारे लगाकर और हिंसक गाने और संगीत बजाकर वह कोशिश करता है कि वहां के निवासी युवक भड़क जाएं और उन पर एकाध पत्थर फेकें। इसके आगे का काम सरकार करती है।
उत्तर प्रदेश के पचहत्तर जिलों में विभाजित किया जाय तो प्रत्येक जिले में 15786 आवारा पशु सड़कों पर घूम रहे हैं। इनका कोई पुरसाहाल नहीं है। ये पशु ऐसे हैं जिन्हें कोई भी चारा नहीं देता बल्कि ये यहाँ-वहाँ घूम कर कूड़े के ढेर से भोजन अथवा सब्जी मंडियों में फेंकी गई सब्जियाँ खाकर गुजारा करते हैं। कई ऐसी लोमहर्षक रिपोर्टें छपती रहती हैं जिनमें गायों के पेट में ढेर सारा प्लास्टिक पाये जाने की बात सामने आई है। सड़कों पर घूमते ये पशु न सिर्फ सड़कों पर गंदगी फैलाते हैं बल्कि दुर्घटनाओं के कारण भी बनते हैं।