देश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठना जरूरी है। वर्ष 2021 के अंत तक देश की जेल में अब तक लगभग साढ़े पाँच लाख कैदी बंद हैं, जिनमें से 77.1 प्रतिशत विचाराधीन कैदी थे और 22.2 प्रतिशत कैदियों को ही दोषी घोषित किया गया था। इन विचाराधीन कैदियों को बिना किसी सबूत और तहकीकात के पुलिस ने जेल में डाल दिया। जबकि जेलों में जो दोषी हैं, उन्हें ही रखने की इजाजत है। सवाल यह उठता है कि विचाराधीन कैदियों की जेल में बीत रही ज़िंदगी के लिए कौन जिम्मेदार है?