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सावित्रीबाई फुले : स्त्री शिक्षा के लिए ब्राह्मणवाद और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ डटकर लड़ीं

आज सावित्री बाई फुले की 194 वीं जयंती है। 1848 में जब सावित्रीबाई ने पहली बार लड़कियों के विद्यालय की शुरुआत की, उस समय ब्रह्मणवाद अपने चरम पर था। ब्रह्मणवाद आज भी खत्म नहीं हुआ है लेकिन उन दिनों उसका मुकाबला करना आज से ज्यादा मुश्किल और कठिन था। तब भी उन्होंने विद्यालय खोला। उन दिनों किसी महिला का, वह भी पिछड़े समाज से आने वाली के लिए साहस का काम था। आज तो पूरे देश में लाखों विद्यालय होंगे, जहां लड़कियां पढ़ रही हैं और पढ़ा भी रही हैं। सब इनके द्वारा शुरू किए गए काम का परिणाम है।

भीमा कोरेगांव : एक युद्ध जिसने दलित समुदाय का इतिहास बदल दिया

भीमा कोरेगाँव का युद्ध भारतीय इतिहास का एक जरूरी मोड़ था, जिसने न केवल राजनैतिक परिदृश्य को बदला, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का एक जरूरी कारण बना। यह युद्ध आज भी दलित समुदाय के लिए गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक है। वर्ष 2018 में भीमा कोरेगाओं के 200वीं  सालगिरह पर एकत्रित सामाजिक कार्यकर्ताओं और सामाजिक आंदोलन से जुड़े लोगों को  हिंदुवादी संगठनों द्वारा हिंसा फैलाकर उन्हें दोषी बनाते हुए गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया, जहां मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दी गई। इसी आरोप में गिरफ्तार स्टेन स्वामी की कस्टडी में मौत हो गई। अभी भी कुछ लोग जेल में है, कुछ जमानत पर हैं। आज 206वीं सालगिरह पर पढ़िए डॉ सुरेश खैरनार का यह लेख।

कठमुल्लावाद और सांप्रदायिकता के विरोधी थे मुस्लिम सत्यशोधक समाज के संस्थापक हमीद दलवाई

कोंकण क्षेत्र के छोटे से गाँव में हमीद ने उम्र के 14वें साल में सिर्फ 9 साल पहले शुरू किए गए राष्ट्र सेवा दल नाम के बच्चों के संगठन में शामिल हुए। 25 साल अपनी जान जोखिम में डालकर वे महात्मा जोतिबा फुले की तरह सामाजिक जागृति के काम में लगे रहे। 

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