Thursday, November 21, 2024
Thursday, November 21, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमTagsLokrang

TAG

lokrang

मालवा के प्रीतम मालवीय और साथियों का कबीर गायन

कबीर का निर्गुण गायन जीवन के दर्शन का पर्याय है. लोकरंग में मालवा के शाजापुर जिले के मोहन बड़ोदिया से आये प्रीतम मालवीय और...

बहुरूपियों को चंद तालियों के अलावा क्या मिलता है?

तरह-तरह से लोगों का मनोरंजन करके इनाम के सहारे अपनी आजीविका चलानेवाले बहुरूपियों की संख्या राजस्थान में इस समय 17-18 हज़ार से ज्यादा है।...

बहुरूपिया कला जवानी में तो ज़िंदा है लेकिन बुढ़ापे में मर जाती है

उन्होंने बताया कि दस वर्ष की उम्र में चेहरा कच्चा था। इस वजह से वे पिता के साथ लुहारिन, सब्जी वाली और अन्य स्त्री पात्र के लिए तैयार होते थे। वह कहते हैं - ‘आज चालीस वर्ष का हो चुका हूँ। तब से लेकर आज तक सैकड़ों किरदार के लिए बहुरूपिया बन चुका है। वह समय दूसरा था और आज का समय एकदम बदल चुका है। पहले धार्मिक किरदार में शिव, हनुमान, राम जैसे पात्र बनता था, लोग खुश होते थे और सम्मान देते थे लेकिन इधर 8-9 वर्षों से हम धार्मिक किरदारों से बचते हैं।

प्रदर्शनकारी लोककलाओं को संजोने का माध्यम है लोकरंग

लोकरंग लोक जीवन पर आधारित सांस्कृतिक कला, संगीत और साहित्य का केंद्र है। लोकरंग सांस्कृतिक समिति के अध्यक्ष और लेखक सुभाष चंद्र कुशवाहा उत्तर...

लोकरंग की यादगार यात्रा ने दी विलुप्त होती संस्कृतियों की मार्मिक झलक

मैं कुशीनगर के लोकरंग कार्यक्रम के बारे में बहुत दिनों से सुन रहा था। इसकी चर्चा कभी-कभी काशी हिंदू विश्वविद्यालय में शोधार्थी मित्रों एवं...

सत्ता चौरी चौरा शताब्दी वर्ष मनाकर, बहुजनों के नायकत्व में लड़े गए सामंत विरोधी चौरी-चौरा विद्रोह का अपहरण करना चाहती है(कथाकार, इतिहासकार सुभाषचन्द्र कुशवाहा...

राजे-रजवाड़े तो सदा से निम्नजातियों को असभ्य, डाकू, अपराधी या लुटेरे ही मानते थे (चौथा और अंतिम हिस्सा )आपकी कहानियों में अनेक मुस्लिम पात्र...

ताज़ा ख़बरें