तरह-तरह से लोगों का मनोरंजन करके इनाम के सहारे अपनी आजीविका चलानेवाले बहुरूपियों की संख्या राजस्थान में इस समय 17-18 हज़ार से ज्यादा है। दौसा जिले में 5000 बहुरूपिया रहते हैं। यह संख्या उनके परिवार के सदस्यों से मिलकर बनती है क्योंकि ज्यादातर परिवार मिलजुल कर इस पेशे को आगे बढ़ाते हैं। लेकिन यह लगातार कम होती जा रही है क्योंकि नई पीढ़ी अब इसमें इसलिए दिलचस्पी नहीं रखती कि उसे जीवन निर्वाह का यह माध्यम बहुत पिछड़ा और कम पारिश्रमिक वाला लगता है। नयी पीढ़ी के ज़्यादातर बच्चों ने अपने अभिभावकों को लगातार आर्थिक तंगी में देखा है। बढ़ती हुई महंगाई के इस दौर में कला के भरोसे घर चलाना बेशक बहुत कठिन है। राजस्थान की भाँड़ जाति से ताल्लुक रखनेवाला बहुरूपिया जमात में हिन्दू-मुस्लिम दोनों धर्म को मानने वाले लोग हैं लेकिन एक ही पेशे में होने के बावजूद ये लोग कई विडंबनाओं के शिकार हैं। हिन्दू बहुरूपिये राजस्थान में अनुसूचित जाति में परिगणित हैं जबकि मुस्लिम बहुरूपिये किसी भी गिनती में नहीं हैं। इसलिए इनको किसी भी तरह की कोई सरकारी मदद अथवा अनुदान नहीं मिलता है। इस कारण से इस कला का के प्रति कलाकारों का मोहभंग हो रहा है। देखिये,शेयर कीजिये और सब्सक्राइब कीजिये
बहुरूपियों को चंद तालियों के अलावा क्या मिलता है?
तरह-तरह से लोगों का मनोरंजन करके इनाम के सहारे अपनी आजीविका चलानेवाले बहुरूपियों की संख्या राजस्थान में इस समय 17-18 हज़ार से ज्यादा है। दौसा जिले में 5000 बहुरूपिया रहते हैं। यह संख्या उनके परिवार के सदस्यों से मिलकर बनती है क्योंकि ज्यादातर परिवार मिलजुल कर इस पेशे को आगे बढ़ाते हैं। लेकिन यह लगातार […]