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मनोज कुमार : किसानी, देशभक्ति और भारतीय संस्कृति के जटिल प्रश्नों पर पॉपुलर सिनेमा के कर्णधार

हिन्दी सिनेमा में साठ और सत्तर के दशक में खेती और किसानी के बढ़ते संकटों, बेरोजगारी की विकराल होती समस्या, जमाखोरी, भ्रष्टाचार, महिलाओं की असुरक्षा और भारतीय समाज में आ रहे अन्य अनेक बदलाओं को मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों में बहुत बारीकी से चित्रित किया। इस तरह मुख्यधारा के हिन्दी सिनेमा में उन्होंने उन विषयों को अपने स्तर पर बरतने का प्रयास किया जो लगभग पीछे छोड़ दिये जा रहे थे। एक अभिनेता और निर्देशक के रूप में मनोज कुमार ने एक लंबी पारी खेली और अनेक सफल और उल्लेखनीय फिल्में दी। हिन्दी सिनेमा में उनकी एक अलग पहचान है। उन्होंने भारतीय सामाजिक संरचना में बेशक बहुत से सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्तों को स्थूल रूप में देखा और चित्रित किया हो लेकिन भारतीय समाज को उन्होंने उसकी बुनियादी उत्पादकता के आधार पर देखा। खासतौर से कृषि समाजों के ऊपर बढ़ते दबावों के मद्देनज़र उनकी फिल्मों को नए सिरे से विश्लेषित किए जाने की जरूरत है। 4 अप्रैल को 87 वर्ष की अवस्था में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। इस मौके पर उन्हें याद कर रहे हैं जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक विद्याभूषण रावत।

उत्तर प्रदेश: पोस्टमार्टम के दौरान आंखें निकालने का आरोप तथा अन्य खबरें

बदायूं (भाषा)।  उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में पोस्टमार्टम के बाद महिला के शव की आंखें निकालने का मामला सामने आया है। परिजनों के...

बदायूं में स्कूल बस-वैन की भिड़ंत में तीन बच्चों सहित ड्राइवर की मौत

बदायूं (उप्र) (भाषा)।  जिले के थाना उसावा क्षेत्र में सोमवार की सुबह एक स्कूल वैन और स्कूल बस की भिड़ंत होने से ड्राइवर और...

कल्याणजी आनंदजी ने रोकर कहा, मनोजजी प्राण पर यह गीत मत फिल्माइए

उपकार में प्राण के लिए बिलकुल अलग किरदार था। यह एक भले व्यक्ति की भूमिका थी जो प्राण के लिए एक सर्वथा नई जमीन थी। मनोज कुमार ने एक जगह कहा है कि मुझे हमेशा लगता है कि जब एक भला इंसान बुरे व्यक्ति का किरदार बखूबी निभा सकता है तो क्या वह किसी भले व्यक्ति का किरदार नहीं कर सकता। 

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