यह कहानी लेखक अतुल यादव के गांव पांडेयपुर की है, जो 30 वर्षों बाद अपने गांव वापस लौटे हैं, अपने गांव लौटने का जिक्र उन्होंने अपने कई शुभचिंतकों, दोस्तों और गुरुजनों से किया, लेकिन किसी ने इस बारे में सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी , सभी ने कहा कि तुम्हें और आगे बढ़ना चाहिए गांव में क्या रखा है? आगे की कहानी अतुल की जुबानी...
मिर्जापुर में मिशन जल शक्ति के तहत हर घर नल योजना, कार्यदायी संस्था की लापरवाही की चढ़ रही भेंट। किसी के घर अभी नल ही नही लगा तो वहीँ किसी के यहां पहुंच रहा गंदा और बदबूदार पानी।
किसान चाहते हैं कि सरसों भी तय की गई एमएसपी पर बिके। ब्लॉक और जिले स्तर पर सरसों के लिए कोई भी खरीदी केंद्र न होने से किसान खुले बाजार में औने-पौने दाम में सरसों बेचने के बाद खुद को छला हुआ महसूस कर रहे है
हल्की बारिश में भी मुख्य मार्ग से बस्ती में आना मुश्किल होने लगता है। बस्ती की समस्याओं को लेकर ग्राम प्रधान से लगायत मुख्यमंत्री पोर्टल तक शिकायत की जा चुकी है, लेकिन समाधान आज तक नहीं हो पाया है। सड़क, बिजली, पानी और साफ-सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं से जूझते आ रहे नकहरा नई बस्ती के लोगों को बरसात के दिनों में अपने घरों तक आने के लिए तमाम दुश्वारियां से दो-चार होना पड़ता है। लोग घायल भी हो जाते हैं। रहवासियों के लिए यह स्थिति समस्या नहीं अब यातना बन चुकी है।