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ग्राउंड रिपोर्ट

अपनी मुक्ति की आस में तिल-तिल कर मर रहा है मीरजापुर का मुक्ति धाम चौबे घाट

उत्तर प्रदेश की राजनीति में बढ़ती धार्मिक पक्षधरता ने श्मशान और कब्रिस्तान को भी राजनीतिक मुद्दे के तौर पर सामने लाने का काम किया। अन्त्येष्टि स्थलों को राजनीति की प्रत्यंचा पर चढ़ाकर, जनमत के ध्रुवीकरण के बहुतेरे प्रयास भी हुये। हर धर्म में अंतिम संस्कार के अपने-अपने तौर तरीके रहे हैं। मुस्लिम समुदाय में जहां […]

उत्तर प्रदेश की राजनीति में बढ़ती धार्मिक पक्षधरता ने श्मशान और कब्रिस्तान को भी राजनीतिक मुद्दे के तौर पर सामने लाने का काम किया। अन्त्येष्टि स्थलों को राजनीति की प्रत्यंचा पर चढ़ाकर, जनमत के ध्रुवीकरण के बहुतेरे प्रयास भी हुये। हर धर्म में अंतिम संस्कार के अपने-अपने तौर तरीके रहे हैं। मुस्लिम समुदाय में जहां दफनाने का रिवाज रहा है वहीं हिन्दू समुदाय में अन्त्येष्टि का विधान शवदाह  है।  जो प्रायः नदियों के किनारे किया जाता है और शवदाह के उपरांत राख़ नदी में प्रवाहित कर दी जाती है। मुस्लिम समुदाय अपने ग्राम के आस-पास ही कब्रिस्तान में शव को दफनाते रहे हैं। कब्रिस्तान के लिए ग्राम स्तर पर जमीन और निर्माण की आवश्यकता होती थी जिसकी वजह से उन्हें सरकारी सहयोग भी दिया जाता था। कट्टर हिंदूवादी राजनीतिक पार्टियों को यह बात चुभ रही थी कि मुस्लिम समुदाय को श्मशान यानी कब्रिस्तान के लिए भी आर्थिक सहयोग दिया जा रहा है जबकि हिंदुओं के लिए इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। इसी सोच के तहत सरकार ने हिन्दू श्मशान भूमि या शवदाह घाट के विकास का कार्य शुरू कर दिया और हिन्दू हिस्से के तौर पर सरकारी खजाने का मुंह खोल दिया गया। मीरजापुर जनपद में भी इस दिशा में प्रयास हुये, सरकारी पैसा भी जमकर खर्च हुआ पर आज विकास के नाम पर स्थापित यह शवदाह गृह अपनी ही राख़ में अपना शोक माना रहे हैं। मिरजापुर के चौबेघाट जिसे मुक्तिधाम के नाम से भी जाना जाता है की  दुर्दशा पर संतोष देव गिरि की रिपोर्ट –

मीरजापुर। श्मशान घाट यानि शवदाह स्थल जिसे हिन्दू समाज मुक्ति धाम भी कहता है, आज उसके विकास के नाम पर सरकारें लाखों रूपए खर्च कर रहीं हैं। शहरों, महानगरों की ग्रामीण क्षेत्रों में भी तालाब, पोखरों, नदी-नालों से लगाए गांव के बाहर शवदाह गृह के निर्माण पर सरकार का जोर रहा है।  इसके पीछे सरकार की मंशा रही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों को शवदाह गृह की उपयुक्त सुविधा मुहैया हो, ताकि लोगों को मृत्यु के पश्चात शवदाह के लिए भटकना न पड़े। इसके लिए बाकायदा ग्रामीण इलाकों में शवदाह गृह का निर्माण भी कराया गया है। ग्रामीण इलाकों में स्थित शवदाह गृह की स्थिति किसी से छुपी हुई नहीं है। रखरखाव और देखभाल के अभाव में यह बदहाल बने हुए हैं। जिले के राजगढ़, हलिया विकास खण्ड में बने हुए शवदाह गृह बदहाली के दौर से गुज़र रहें हैं, जहां साफ-सफाई होना तो दूर की बात है इनकी ओर कोई झांकने तक नहीं आता है। जिससे यह पूरी तरह से बदहाल बने हुए खर पतवार से घिरते जा रहे हैं।

गंगा के किनारे पर शवदाह

नगरीय इलाके के गंगा घाट स्थित शवदाह स्थलों की ओर जिनकी दशा देखकर बरबस ही जुबान से यह शब्द निकलते हैं कि आखिरकार ‘मुक्ति धाम’ को कब मिलेगी समस्याओं से ‘मुक्ति’?

मीरजापुर नगर क्षेत्र से लगने वाले गंगा नदी के तट जहां लोग शवदाह के लिए जाते हैं उनमें विंध्याचल का शिवपुर रामगया घाट,  विंध्याचल घाट, शास्त्री पुल स्थित चौबे घाट, फतहां, विसुन्दरपुर गंगा घाट पर लोग शवदाह के लिए आते हैं। इनमें विंध्याचल का शिवपुर रामगया घाट तथा चौबे घाट को लोक में ज्यादा सम्मान दिया जाता है। जानकारो की माने तो यहां शवदाह के लिए जिले के साथ ही सोनभद्र, भदोही जनपदों के लोग भी आते हैं।

मनोज श्रीवास्तव

मीरजापुर नगर के मध्य में स्थित चौबे घाट (मुक्ति धाम) में जिले के कोने कोने से लोग शवदाह यानी  मुक्ति के लिए आते हैं, पर वर्तमान में यह मुक्ति धाम खुद ही समस्याओं से घिर हुआ मुक्ति की गुहार लगाता हुआ सा दिखाई देता है।

राष्ट्रवादी मंच के संस्थापक मनोज श्रीवास्तव चौबे घाट मुक्तिधाम की उपेक्षा तथा यहां व्याप्त दुर्व्यवस्था पर बात करते हुए कहते हैं कि विकास का ठिढ़ोरा पीटने वाले जनप्रतिनिधियों ने इधर झांकना तो दूर यहां की दुर्व्यवस्था और समस्याओं को दूर करने के लिए आगे कदम बढ़ाना मुनासिब नहीं समझा है। मनोज श्रीवास्तव की माने तो नमामि गंगे के नाम पर चौबे घाट को स्वच्छ और साफ सुथरा बनाने के लिए भारी भरकम बजट तो खर्च कर दिया गया, लेकिन इसकी कोई उपयोगिता यहां नजर नहीं आती है। चारों ओर से गंदगी से घिरा यह घाट, यहां आने वाले लोगों के लिए किसी परेशानी से कम नहीं है।

 

मार्ग के नाम पर बस यही है

बरसात में हो जाता है और बुरा हाल

शास्त्री सेतु से मिर्जापुर नगर में प्रवेश करने वाले मार्ग से तकरीबन 200 मीटर की दूरी पर स्थित चौबे घाट मुक्तिधाम का प्रवेश द्वार है, जहां से कुछ दूर तक ही ठीक ठाक सड़क नजर आती है। इसके बाद गांव की पगडंडियों जैसा नजारा नजर आने लगता है। नगर पालिका के कूड़े कचरे से पटे घाट और उसके आसपास का दृश्य देखकर गंगा नदी और उसके तटवर्ती इलाकों को स्वच्छ रखने के अभियान पर भी सवाल खड़े होने लगते हैं, दुर्गंध के मारे लोगों की सांस भी थमने लगती है। बेहतर मार्ग का अभाव होने के कारण सामान्य दिनों में जहां लोगों को आने-जाने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है वहीं हल्की सी बरसात में भी यहां कीचड़ का साम्राज्य कायम हो जाता है। स्थानीय लोगों की माने तो इसके लिए कई बार जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई जा चुकी है लेकिन अभी तक किसी ने सुधि नहीं ली है।

कैलाश चौरसिया द्वारा कराई गई पेयजल व्यवस्था

पूर्व में सूबे में समाजवादी पार्टी की सरकार होने के दौरान वर्ष 2013-14 में तत्कालीन नगर विधायक एवं बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री कैलाश चौरसिया की निधि से चौबे घाट के जीर्णोद्धार की दिशा में काफी कार्य मसलन सीढ़ियों का निर्माण, बैठने-उठने का स्थल, पक्के टाइल्स युक्त फर्श रेलिंग का निर्माण इत्यादि कराया गया था। पीने के पानी की भी व्यवस्था सुनिश्चित की गई थी, ताकि दूर-दूर से आने वाले लोगों को खासकर गर्मी में शवदाह के पश्चात पानी के लिए भटकना न पड़े। लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि सत्ता बदलते ही घाट के सौंदर्यीकरण और यहां की व्यवस्थाओं को भी मानो ग्रहण लग गया है। तत्कालीन नगर विधायक कैलाश चौरसिया के प्रयास से चौबे घाट स्थित मुक्तिधाम को चमकाने की दिशा में तथा यहां की व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के

शैलेंद्र अग्रहरी

लिए हर संभव प्रयास किए गए थे इसे आज भी यहां के लोग याद करते हैं, लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि सूबे में सत्ता बदलने के बाद किसी भी जनप्रतिनिधि ने इधर झांकना उचित नहीं समझा है।

व्यापारी नेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता शैलेंद्र अग्रहरी शवदाह स्थलों की दुर्व्यवस्था पर तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि “विकास के नाम पर पीटे जा रहे ढिंढोरों के बीच धरातल पर विकास कार्यों की उम्मीद नहीं की जा सकती है। चौबे घाट स्थित मुक्तिधाम की उपेक्षा तथा वहां की बदहाली पर छिड़ी चर्चा के बीच वह कहते हैं कि ‘मौजूदा सरकार के जनप्रतिनिधियों से लेकर कई दिग्गज नुमाइंदे भी इस घाट की सीढ़ियों तक आ चुके हैं, लेकिन शायद उन्हें यहां कि दुर्व्यवस्थाएं नजर नहीं आई होंगीं। यही कारण है कि यहां समस्याएं एक नहीं बल्कि अनगिनत दिखाई देते हैं। जिनका समाधान होना तो दूर इसकी सुध लेने वाला भी दिखाई नहीं देता है।’

कोरोना काल में निःशुल्क लकड़ी की रही व्यवस्था

वैश्विक महामारी कोरोना काल के दौरान जब पूरी दुनिया इस महामारी से जूझ रही थी असमय लोग दम तोड़ते हुए नज़र आ रहे थे। तब पूर्व नगर विधायक कैलाश चौरसिया के प्रयास से चौबेघाट मुक्तिधाम आने वाले गरीब असहाय, लावारिस, अशक्त लोगों के शवों के लिए निःशुल्क लकड़ी की व्यवस्था की गई थी, ताकि विधि विधान से उनका सम्मान जनक अंतिम संस्कार सुनिश्चित किया जा सके। यह योजना लोगों के लिए काफी उपयुक्त भी साबित हुई थी। लेकिन कुछ समय बाद बंद हो जाने से जहां गरीब असहाय जनों के लिए अंतिम संस्कार कर पाना भी कठिन होने लगा। अन्य जन-प्रतिनिधियों ने इससे प्रेरणा लेते हुए ना कोई पहल की ना इसे अनवरत जारी रखने का कोई भी प्रयास ही किया।

हर तरफ लगा है गंदगी का अंबार

नशेड़ियों-जुआड़ियों का लगता है जमघट

गंगा घाटों से लगे परिक्षेत्र, खासकर शवदाह स्थल के इर्द गिर्द नशेड़ियों एवं जुआड़ियों का जमघट लगने से शवदाह के लिए आने वाले लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार जेब कटने से लेकर नशेड़ियों के उत्पात पर कहासुनी से लेकर तू-तू-मैं-मैं की भी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। स्थानीय लोग नाम न छापे जाने की शर्त पर बताते हैं कि ‘मुक्तिधाम स्थल पर दिन रात नशेड़ियों और जुआड़ियों का जमघट लगा रहता है, जिससे बहन बेटियों का भी घाट तक आना-जाना कठिन होने लगता है।’ स्थानीय लोगों की माने तो इलाकाई पुलिस इस तरफ ध्यान नहीं देती है जिसके कारण इनके हौसले बुलंद बने हुए हैं।

माखौल बन कर रह गया है रेट बोर्ड

दाह संस्कार का रेट बोर्ड

कहने को तो मुक्तिधाम स्थल पर दाह संस्कार को लेकर बाकायदा नगर पालिका परिषद द्वारा रेट निर्धारित किया गया है पर यह महज खानापूर्ति बनकर रह गया है। अक्सर देखने में आता है कि जब भी कोई व्यक्ति दाह संस्कार के लिए शवदाह स्थल मुक्तिधाम चौबे घाट आता है तो अक्सर शवदाह करने को लेकर निर्धारित रेट से ज्यादा लेने देने को लेकर कहासुनी हो जाती है। आश्चर्य की बात है कि इस मसले पर नगर पालिका परिषद के जिम्मेदार मुलाजिम भी कुछ कहने से साफ कतराते हैं। ऐसे में शवदाह स्थल कि सीढ़ियों के समीप शवदाह को लेकर लगाया गया रेट बोर्ड माखौल बन कर रह गया है। रमईपट्टी निवासी धर्मेंद्र कुमार कहते हैं ‘कहने मात्र के लिए शवदाह स्थलों पर रेट बोर्ड लगाया गया है, लेकर होना मनमानी ही है। यहां तो मरने के बाद भी किचकिच से मुक्ति नहीं मिलती है।’ वह यहां की व्यवस्थाओं मसलन साफ-सफाई से लेकर वाटर कूलर की टूटी पड़ी टोटी, पाईप लाईन पर जमे काई आदि की ओर इशारा करते हुए खामियों को गिनाते हैं।

दरक गई हैं शवदाह गृह की दीवारें

मीरजापुर नगर क्षेत्र स्थित चौबे घाट मुक्तिधाम पर बने शवदाह गृह कि दरों-दीवार दरक चुकी है। टीनसेड जर्जर होकर बिखरे पड़े हुए हैं। अन्य दिनों में तो शवदाह करने के लिए लोग गंगा नदी के तट तक आकर मुक्ति भले ही पा लेते हैं, लेकिन बरसात के दिनों में खासकर गंगा नदी में बाढ़ आने पर शव जलाना मुश्किल होने लगता है।

प्रदूषण मिटाने की बात बस स्लोगन तक ही दिखती है

देखा जाए तो इससे गंगा नदी में प्रवाहित होने वाले राख कचरा आदि से प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है तो दूसरी ओर गंगा नदी के जलीय जीवों के जीवन के लिए भी खतरा पैदा हो जाता है। जबकि गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकार द्वारा प्रतिवर्ष करोड़ों रूपया पानी की तरह बहाया जा रहा है, बावजूद इसके धड़ल्ले से गंगा नदी के तट तक शव जलाए जा रहे हैं। जिस पर कोई रोक टोक नहीं है।

गाँव के लोग
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