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moolchand sonakr
मृत्युंजय के लिए मेरे मन में आजीवन गिल्ट रहा क्योंकि मेरे लिए बच्चे से भी बढ़कर था -1
जी करता है घर छोड़कर भाग जाऊं लेकिन मैंने दो बच्चे पाले हैं। उनका ख्याल आते ही रुक जाता हूँ।' मैंने पूछा कौन बच्चे? वे दोनों कुत्ते? उन्होंने तुरंत बात काटते हुए कहा - कुत्ते न कहो,उनका नाम चेरी और फेथ है। मृत्युंजय और टफी भी था अब दोनों नहीं हैं। इस बातचीत से मूलचन्दजी के कुत्तों से विशेष प्रेम का पता चलता है। मृत्युंजय ...मूलचन्दजी का एक पालतू कुत्ता था, जिसके बारे में बहुत ही मार्मिक लेख उन्होंने उसके मृत्यु के बाद लिखा। कोई भी इंसान अपने पाले हुए जानवर के साथ रहते हुए कैसे उससे जुड़ जाता और उसे परिवार का एक सदस्य जैसा मानने लगते हैं। दो भागों में प्रकाशित इस लेख में मृत्युंजय के जीवन से लेकर मृत्यु तक की कहानी जो एक रूखे दिखने वाले व्यक्ति के मन की अंदरूनी परतों को खोलती है। वैसे बता दूँ कि हर किसी से दो-दो हाथ करने को तत्पर मूलचन्द सोनकर वास्तव में बहुत दोस्तना, सहयोगी और संवेदनशील इंसान थे।
मूलचन्द सोनकर से बातचीत : जैसी घटनाएँ हो रही हैं वैसे में संगीत सुनकर लगता है जैसे कोई मुझे गालियां दे रहा हैं
अपर्णा -
कवि-आलोचक मूलचन्द सोनकर से बातचीत हमेशा न सिर्फ मजेदार होती थी बल्कि उसमें तुर्शी और तल्खी भी पर्याप्त होती थी। वह बहुत अच्छे अध्येता थे। बनारस ही नहीं देश के गिने-चुने अध्येताओं में उनका शुमार होना चाहिए। उनके लेखन में आए संदर्भों से बाहर भी उनकी एक दुनिया थी। उन्होंने समकालीन भारतीय साहित्य का व्यापक अवलोकन किया था इसीलिए वे तल्ख बोलते और लिखते थे। ठकुरसुहाती करना उनका स्वभाव न था। अपर्णा द्वारा लिया गया उनके जीवन का यह पहला और अंतिम साक्षात्कार है। प्रस्तुत है शेष अंश।
दलित साहित्य और विचारों का एक मुकम्मल दस्तावेज़
सम्पादक रामजी यादव की पत्रिका गाँव के लोग का 24 वां अंक जनवरी-फरवरी 2021 आज प्राप्त हुआ। इस पत्रिका का संपादन सुयोग्य साहित्यकार डॉ....