दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती में हुई अनियमितता की खबर कोई पहली खबर नहीं है बल्कि ऐसी खबरें सोशल मीडिया के माध्यम से लगातार सामने आ रही हैं। एनएफएस हो या आरक्षण का मामला हो, इनसे संबंधित गड़बड़ियाँ जानबूझकर की जा रही हैं क्योंकि संस्थानों में ऊंचे पदों पर बैठे लोग सरकार की कठपुतलियाँ हैं। सरकार की मंशा ही है कि पिछड़े, अल्पसंख्यक और दलित समाज के युवा योग्य होने के बाद भी बेरोजगार रहें, वे मुख्यधारा में शामिल न हो सकें, इसके लिए उन्हें अयोग्य ठहराने का एक उपाय है कि गड़बड़ियाँ कर उन्हें वंचित कर दिया जाए।
आजमगढ़ के फुलपुर तहसील के इमली महुआ गांव के ग्रामीणों बताया कि दर्जनों दलित-पिछड़ा किसान परिवारों को पूर्वांचल एक्सप्रेसवे में अधिग्रहित हुई अपनी सरकारी पट्टा की ज़मीन का मुआवज़ा नहीं दिया गया। सरकार ने दशकों पहले सरकारी पट्टे की ज़मीन लोगों को भूमिहीनता से निकालने के लिए दिया था।
भदोही जिले के सराय होला गाँव में आबादी की ज़मीन के झगड़े में विरोधियों की जानलेवा पिटाई से एक व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है लेकिन उसके परिजनों को इसकी एफआईआर लिखवाने में नाकों चने चबाना पड़ा। मौत के छह दिन बाद एसपी ऑफिस में गुहार लगाने के बाद ही एफआईआर दर्ज़ हो पायी। योगी आदित्यनाथ की पुलिस की कार्यशैली के ऐसे अद्भुत नमूनों के कारण ही हमलावर न केवल खुले घूम रहे हैं बल्कि अपने विरोधियों को औकात में ला देने का दावा भी ठोंक रहे हैं। भदोही से लौटकर अपर्णा की रिपोर्ट।
मनुष्य के सामाजिक सरोकार का सबसे सशक्त माध्यम है उसकी मातृभाषा। शैशवास्था से युवावस्था तक मातृभाषा के साथ सांस्कृतिक धरोहर विरासत के रूप में प्राप्त हो जाती है। हम सभी की मातृभाषा ही हमारे भावनात्मक और वैचारिक अभिव्यक्ति का सहज और सुगम माध्यम है। लगभग 5 दशकों से भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की जाती रही है लेकिन किसी भी सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया।
पूरे उत्तर प्रदेश को आपस में जोड़ने के लिए एक्स्प्रेस वे, हाई वे, रिंग रोड बनाये गए हैं और अभी बन भी रहे हैं। गाड़ियों से चलने वाले खुश हैं और 'विकास हुआ' का दावा भी कर रहे हैं लेकिन उप्र के गांवों में जाने पर विकास की असलियत सामने आती है, जहां सड़क के नाम पर दशकों पहले बनी हुई सड़कों के निशान बाकी हैं। असल में सरकार दिखावे वाले विकास पर काम करती है। पढ़िये मिर्ज़ापुर के विशुनपुरा गांव से संतोष देवगिरि की ग्राउंड रिपोर्ट
पूर्वांचल के लगभग हर जिले में नहरें सूखी हुई हैं। धान की फसल निजी सिंचाई के साधनों से संभाली जा रही है। यही हाल पूर्वी अवध का भी है। नहरों में बालू जमा है तो माइनरों में घासें उगी हुई हैं। स्थानीय किसानों से बात करने पर पता चला कि उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। नेताओं के यहाँ जाइए तो वे इस आधार पर हमसे मिलते हैं हैं कि हम उनके वोटर हैं कि नहीं। नहर विभाग से आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिलता।
मेजवां वेलफेयर सोसायटी की महिलाएं आत्मनिर्भरता की दिशा में एक प्रेरणादायक यात्रा पर थीं। उनके पास आत्म-सम्मान और आर्थिक स्वतंत्रता की गहरी इच्छा थी,...
Azamgarh जिले के मेजवां गांव में स्थित कैफ़ी आज़मी गर्ल्स इंटर कॉलेज ज्ञान विज्ञान प्रयोगशाला से संपन्न है और यहां बच्चों को आधुनिक तकनीक से शिक्षा दी जाती है।
सरकार लगातार वंदे भारत और इस तरह की अन्य तेज गति वाली ट्रेनें चलाने को लेकर योजनाएँ बना रही है लेकिन सामान्य यात्रियों को एक्सप्रेस ट्रेन की सुविधा भी मुहैया नहीं हो पा रही है। बलिया के फेफना रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को एक्सप्रेस ट्रेन के सुविधा के लिए आंदोलन चलाया जा रहा है ताकि ट्रेन पकड़ने के लिए उन्हें 10 किलोमीटर दूर बलिया न जाना पड़े।
चंदौली जिले में लगभग 73 गाँव गंगा के कटान से प्रभावित हैं। इन गांवों के बहुत से किसान कटान की वजह से अब पूरी तरह से खेतविहीन हो चुके हैं। उनके पूरे के पूरे खेत गंगा में समाहित हो गए हैं। इन किसानों को ना तो बदले में कहीं दूसरी जमीन मिली ना ही सरकार की ओर से कोई मुआवजे का प्रावधान हुआ।
बलिया में वाम मोर्चा का कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन, सौंपा मांग पत्र
बलिया। बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी एवं प्रदेश में गिरती कानूनी व्यवस्था के खिलाफ वाम मोर्चा...