भारतीय समाज का ताना-बाना ही ऐसा बना हुआ है कि जातिवाद से मुक्ति दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। हाँ, राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में वोट की राजनीति के लिए राजनैतिक दल और नेता भले ही इसे हटाने की बात करें लेकिन जमीनी स्तर पर इसमें कोई भी बदलाव नहीं हुआ है। दो पक्षीय व्यवहार खुलकर किया जाता रहा है और यही वजह है कि ओबीसी, एससी और एसटी का शोषित हो लगातार प्रताड़ित हो रहे हैं।
शूद्रों को गुमराह करने के लिए गीता का आधार थोड़ा व्यापक बनाया गया है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इसे भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकला हुआ धर्म ग्रंथ बताते हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि इसी गीता को श्रीकृष्ण के वंशजों को पढ़ने की बात दूर रही, छूने तक का अधिकार नहीं था।