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आखिर क्यों नहीं बन पा रही है दलित-पिछड़ों में राजनीतिक एकता

भारतीय समाज का ताना-बाना ही ऐसा बना हुआ है कि जातिवाद से मुक्ति दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। हाँ, राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में वोट की राजनीति के लिए राजनैतिक दल और नेता भले ही इसे हटाने की बात करें लेकिन जमीनी स्तर पर इसमें कोई भी बदलाव नहीं हुआ है। दो पक्षीय व्यवहार खुलकर किया जाता रहा है और यही वजह है कि ओबीसी, एससी और एसटी का  शोषित हो लगातार प्रताड़ित हो रहे हैं। 

बाबा साहब का अधूरा काम जाति व्यवस्था को उखाड़ फेंकने की परियोजना है

आज बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का 67वां परिनिर्वाण दिवस है। आजादी के बाद भारत के दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज को संविधान के माध्यम...

पुरोहितों से वैदिक रीति से शादी करवाना अपराध है

 In 1819, by the Act 7, the Brahmins prohibited the purification of the women.  (On the marriage of the Shudras, the bride had to...

नेशनल दस्तक के संपादक से कुछ अनसुलझे सवाल!

14 अगस्त, 2022 को नेशनल दस्तक पर प्रख्यात पत्रकार शम्भू सिंह द्वारा लिए गए इन्टरव्यू से मुझे कुछ विचित्र अनुभव हुआ। उनका पहला सवाल था...

गीता का लेखक कौन था और उसकी जरूरत क्या थी

शूद्रों को गुमराह करने के लिए गीता का आधार थोड़ा व्यापक बनाया गया है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इसे भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकला हुआ धर्म ग्रंथ बताते हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि इसी गीता को श्रीकृष्ण के वंशजों को पढ़ने की बात दूर रही, छूने तक का अधिकार नहीं था।

मनुस्मृति बनाम शूद्रस्मृति

अभी कुछ महीने पहले सुखद समाचार सुनने को मिला था कि उत्तराखंड में सुखीडाह इन्टर कालेज के छठवीं से आठवीं के शूद्र छात्र-छात्राओं ने...

शूद्रों को ब्राह्मणवादी रोग गिनाने की बजाय उसे उखाड़ फेंकने का काम करना होगा

इसी साल छः जून की बात है। 17वेंं आल इन्डिया पीपुल्स साइंस कांग्रेस, (AIPSN) जो 6 जून से 9 जून तक, इक्स्टोल कॉलेज कैम्पस,...

लगातार उलझाया जा रहा है जाति जनगणना का सवाल

जाति जनगणना संविधान सम्मत है और सामाजिक न्याय के लिए अनिवार्य भी  भारतीय संविधान के अनुच्छेद-246 के अंतर्गत जनगणना विषयक उल्लेख है। भारत मे लॉर्ड...

रामचरितमानस में स्त्रियों की कलंकगाथा (भाग – 1)

तुलसीदास कृत रामचरित मानस उत्तर भारत की पिछड़ी जातियों के लिए धर्मग्रंथ बना दिया गया। बहुत स्पष्ट रूप से बहुजन संतों और समाजों को अपमानित करने वाली इस किताब की यह स्वीकार्यता यूं ही नहीं है बल्कि बहुजन समाजों को भ्रमजाल में बनाए रखने का एक मजबूत सांस्कृतिक हथियार है। सवर्ण बुद्धिजीवी भले ही इसे बहुत महिमामंडित करते हैं लेकिन बहुजनों को लिए यह एक जहरीली किताब है। सुप्रसिद्ध दलित साहित्यकार मूलचंद सोनकर ने इसे स्त्रियॉं की गुलामी और अपमान के मद्देनजर देखा है।

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