दरअसल इस अधिवेशन से या ऐसे किसी भी अन्य आयोजन से किसी तरह का कोई नया विचार, जो देश की बदहाली से निकालने के लिए सहायक हो, निकलता नहीं है। मुझे ऐसा महसूस नहीं हुआ। ऐसे भाषण तो अब हर शहर के गली चौराहों पर सुनने को मिलते रहते हैं। सभी ने देश की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार रोगों या कारणों को सविस्तार वर्णन किया, जो आजकल सभी नेता करते हैं, लेकिन इस रोग का या कारण का निदान कैसे हो? वे यह नहीं बताते हैं।
हम सब जानते हैं कि मनुवादियों ने वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यवस्था का जाल इतनी खूबसूरती से बुना है कि कोई भी फंसे बिना न रहेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि ब्राह्मणों ने सबसे ऊँचा और प्रतिभाशाली स्वयं को रखा है और इस हिसाब से तो क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और अन्त्यज सभी उससे नीच हो गए। यह आपत्तिजनक और संविधानविरोधी बात है। सभी को इस विषमता और नफरत पैदा करने वाली मान्यता के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।
रोग गिनाने की नहीं, इलाज की जरूरत है
लेखक शूद्र एकता मंच के संयोजक हैं और मुम्बई में रहते हैं।
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बिलकुल सही बात है उखाड़ फेंकना चाहिए ऐसे ग्रंथ और समाज को