Tuesday, December 3, 2024
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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गाँव में जब मुझे खटोला में बिठाकर स्कूल ले जाया गया..

'मेरा गाँव' कॉलम में उन लोगों की कहानी होती है, जिन्होंने गाँव को जिया ही नहीं बल्कि भरपूर जिया है। इस में आज तेजपाल सिंह 'तेज' अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए यह बता रहे हैं कि उनका गाँव, अलाबास बातरी, बुलंदशहर (उप्र) बचपन में कैसा था? अपने गाँव को याद करते हुए कैसे लगता है और उन्हें गाँव ने कैसे तैयार किया?

बहुजन समाज को फिर से अपनी चेतना, नैतिक बल के जरिए देश को नया का रास्ता दिखलाना होगा – डॉ सुनील सहस्रबुद्धे

डॉ सुनील सहस्रबुद्धे भारत के जाने-माने दार्शनिक-बुद्धिजीवी और सामाजिक चिंतक हैं। जिन दिनों वह आईआईटी कानपुर के छात्र थे उन्हीं दिनों से भारत के...

पढ़ी-लिखी महिलाएं ही भारत का भविष्य हैं

वर्ष 2023 राजनीतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टिकोण से भारत के लिए ऐतिहासिक रहा है। धरती से लेकर अंतरिक्ष तक भारत ने अपनी प्रतिभा...

बेपरवाह स्वास्थ्य विभाग, बिना इलाज के जीने पर मजबूर हैं ग्रामीण किशोरियां

संकुचित सोच के कारण आज भी समाज में माहवारी को अभिशाप माना जाता है। हालांकि यह अभिशाप नहीं बल्कि वरदान है। आज भी समाज...

आरक्षण की वजह से लड़कियों के प्रति बदलेगी सामाजिक सोच

देश के ऐसे कई दूर दराज़ ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। उसे शिक्षा से वंचित रखने का प्रयास किया जाता है। समाज की यह सोच बनी हुई है कि लड़की को शिक्षित करने से कहीं अधिक उसे चूल्हा चौका में पारंगत होना आवश्यक है।

बहू और बेटी में भेदभाव करता समाज

भारतीय समाज जटिलताओं से भरा हुआ है, जहाँ रीति-रिवाज के नाम पर कई प्रकार की कुरीतियां भी शामिल हो गई हैं, जिसका खामियाज़ा महिलाओं...

लड़कियों के लिए भी जरूरी है खेल

खेल खेलना आम तौर पर आपकी फिटनेस और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का एक शानदार तरीका है। इससे न सिर्फ आपका शरीर स्वस्थ रहता...

आज भी रंगभेद का शिकार हो रही हैं लड़कियां

21वीं सदी को साइंस और टेक्नोलॉजी का दौर कहा जाता है,  इसके बावजूद कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो आज भी मानव सभ्यता के लिए...

वृद्धाश्रमों का बढ़ता चलन चिंताजनक है

भारत भूमि के संस्कारों ने हमेशा बड़े बुजुर्गों को सम्मान दिलाया है। हमारी संस्कृति यह सिखाती है कि बड़ों की इज्जत करो और उनका...

इन्हें किसी बैसाखी की जरूरत नहीं

 पिछले पचास सालों में यह बदलाव तो आया ही है कि क्षेत्र कोई भी हो, आप उसमें साधिकार, सप्रमाण, सगर्व कुछ ऐसी महिलाओं के...

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