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वृद्धाश्रमों का बढ़ता चलन चिंताजनक है

भारत भूमि के संस्कारों ने हमेशा बड़े बुजुर्गों को सम्मान दिलाया है। हमारी संस्कृति यह सिखाती है कि बड़ों की इज्जत करो और उनका कहना मानो। वृद्धावस्था में अपने मां-बाप की सेवा तथा उनकी खुशियों को पूरा करना संतान का दायित्व है। किसी अच्छे कार्य को करने से पहले या घर से बाहर सफर करने […]

भारत भूमि के संस्कारों ने हमेशा बड़े बुजुर्गों को सम्मान दिलाया है। हमारी संस्कृति यह सिखाती है कि बड़ों की इज्जत करो और उनका कहना मानो। वृद्धावस्था में अपने मां-बाप की सेवा तथा उनकी खुशियों को पूरा करना संतान का दायित्व है। किसी अच्छे कार्य को करने से पहले या घर से बाहर सफर करने से पहले बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना हमारी परंपरा रही है। लेकिन अब सब कुछ बदल गया है क्योंकि आज बहुत सारी संतानें अपने बूढ़े मां बाप को अपने साथ घर में रखने की जगह वृद्धाश्रम भेज रहे हैं। हालांकि भारतीय समाज में तो इस कुरीति की हमेशा निंदा की गई है।

आजकल के समय में लोग अपने आपको इतना व्यस्त बता रहे हैं कि उनके पास अपने बूढ़े मां-बाप के लिए भी समय मौजूद नहीं रह गया है।  इसी भागदौड़ भरी जिंदगी में वह अपने फैसले भी खुद लेने में ज्यादा विश्वास रखते हैं। जिसके चलते वृद्ध माता-पिता से लोग बिना सलाह लिए काम करते हैं। इससे आपसी रिश्तो पर बुरा असर पड़ रहा है। रिश्तों में खटास पैदा होने लगी है। रिश्ते दिन प्रतिदिन कमजोर होते जा रहे हैं।

आज़ादी के नाम पर मां बाप के साथ रहना बुरा लगने लगा है। प्राइवेसी और ‘मेरी लाइफ’ के नाम पर माता पिता उन्हीं बच्चों की आंखों में खटकने लगते हैं जो कभी उनकी आंखों का तारा हुआ करते थे। धीरे-धीरे रिश्ते इतने कमजोर हो जाते हैं कि लोगों को इस समस्या का समाधान केवल वृद्धाश्रम लगने लगता है और फिर बच्चे अपने वृद्ध मां-बाप को उनके ही घर से निकाल कर वृद्ध आश्रम में छोड़ आते हैं।

कुछ तो ऐसे वृद्ध होते हैं जिन्होंने किसी दुर्घटना में अपना पूरा परिवार ही खो दिया है। इनका वृद्धाश्रम में पहुंचना तो फिर भी समझ में आता है। परंतु कुछ ऐसे वृद्ध माता-पिता भी होते हैं, जिनके उनके अपने बच्चों द्वारा ही उन्हें वृद्धाश्रम में पहुंचा दिया जाता है और फिर कई साल गुजर जाने के बाद भी उन बच्चों द्वारा अपने बूढ़े माता-पिता की कोई सुध नहीं ली जाती है।

यह हालात देश के किसी एक राज्य या जिले की नहीं है बल्कि देश का ऐसा कोई जिला नहीं होगा जहां वृद्ध माता पिता को ऐसी परिस्थिति से गुज़रना नहीं पड़ता है। बात चाहे दिल्ली या मुंबई जैसे महानगर हों या पटना और नागपुर जैसे मध्यम दर्जे के शहर, ऐसे वृद्धाश्रम हर कहीं खुल गए हैं।

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जम्मू के अम्बफला स्थित ‘ओल्ड एज होम’ में भी कुछ ऐसी ही हकीकत छुपी है। जहां रहने वाले अधिकतर वृद्धों को उनके ही अपने बच्चों ने ठुकरा दिया और यहां छोड़ गए। जम्मू के नवांशहर के रहने वाले 70 वर्षीय रमेश राज का कहना है कि “मेरे दो लड़के हैं। दोनों के अपने-अपने घर हैं। बच्चों के समाज में चलने के अपने तरीके हैं और हमारे अपने तरीके हैं। विचारधारा के इस टकराव के कारण अक्सर घर में लड़ाईयां हुआ करती थीं। इसलिए हमने लड़कों को बोला कि हमें वृद्धाश्रम छोड़ आए”। रमेश राज कहते हैं कि “पत्नी भी मेरे साथ वृद्धाश्रम आ गई।  बेटियां फिर भी मिलने आती हैं। परंतु आज तक लड़के नहीं मिलने आए.” वह बताते हैं कि इस वृद्धाश्रम में सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन इसके बावजूद अपने परिवार से दूर होने का गम कहीं न कहीं खटकता है। वहीं सांबा जिला की रहने वाली एक वृद्धा कहती हैं कि ‘मेरे दो बच्चे हैं। छोटा बेटा शराब का अत्यधिक सेवन करता है। उसने शराब पीकर मुझे मारा पीटा, जिससे मेरी एक बाजू भी टूट गई जबकि बड़े बेटे की पत्नी लड़ाई झगड़ा करती थी। इसलिए दो वर्ष पहले मैं वृद्धाश्रम आ गई। मेरी बेटियां मुझसे मिलने आती हैं, परंतु बेटे आज तक मिलने नहीं आए। ‘

वहीं डोडा के रहने वाले वृद्ध मोहनलाल बताते हैं कि “बहुत साल पहले मैं जंगल गया हुआ था। पीछे मेरे मकान में आग लग गई और सारा परिवार जल गया। जब तक शरीर में जान थी अपना गुजारा करता रहा। अब बूढ़ा हो गया हूं इसलिए वृद्धाश्रम आ गया। यहां सब कुछ अच्छे से अच्छा मिल रहा है। बस ईश्वर का नाम लेकर ज़िन्दगी गुजार रहा हूँ। परंतु मैं यह कहना चाहता हूं कि हमें एक हजार पेंशन मिलती थी। अब सरकार ने वह भी बंद कर दी है।” इस संबंध में जम्मू म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के डिप्टी मेयर बलदेव सिंह का कहना है कि इन पेंशन प्राप्तकर्ताओं की वेरिफिकेशन हो रही है। सरकार ने वेरिफिकेशन का आधार यह रखा है कि जो गरीबी रेखा से नीचे होंगे, अब केवल उन्हें ही पेंशन मिलेगी।

हालांकि बलदेव सिंह अपनी निजी राय व्यक्त करते हुए कहते हैं कि बिना किसी बाधा के सभी दिव्यांगों और बुज़ुर्गों को पेंशन का प्रावधान होनी चाहिए। बहुत से लोग ऐसे हैं जो घर से बाहर तक नहीं निकल पाते हैं क्योंकि वह पटवारी या तहसील ऑफिस जाने के काबिल ही नहीं होते हैं। इसलिए सरकार को ऐसे सभी लोगों के लिए पेंशन की व्यवस्था करनी चाहिए। इस संबंध में इस ओल्ड एज होम के वार्डन प्रीतम चंद कहते हैं कि यहां कुल 40 बुजुर्ग है। जिनमें 22 पुरुष और 18 महिलाएं हैं। इस आश्रम में सभी का ख्याल रखा जाता है। उन्हें घर जैसा वातावरण देने का प्रयास किया जाता है। उनके लिए डॉक्टर और अन्य सुविधाओं की बराबर व्यवस्था की जाती है।

यूनाइटेड नेशन वर्ल्ड पापुलेशन एजिंग की रिपोर्ट के अनुसार आने वाले समय में भारत में वृद्धों की संख्या तेजी से बढ़ेगी। वर्तमान में, भारत में बुज़ुर्गों की संख्या कुल आबादी का 8 प्रतिशत है जो वर्ष 2050 में बढ़कर 30 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। ऐसे में क्या इन आंकड़ों से यह अनुमान लगाया जाए कि जब बुजुर्गों की तादाद बढ़ेगी तो वृद्धाश्रम की संख्या भी बढ़ेगी? क्योंकि मौजूदा समय में देश की करीब 250 जिलों में करीब 400 वृद्धाश्रम संचालित हो रहे हैं। परंतु चाहे वृद्धों की संख्या कितनी भी बढ़े, एक बात तो साफ है कि वृद्ध व्यक्ति समाज के लिए संपत्ति की तरह हैं, बोझ की तरह नहीं और इस संपत्ति का लाभ उठाने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि उन्हें वृद्धाश्रमों की बजाय मुख्यधारा में आत्मसात किया जाए ताकि समाज और नई पीढ़ी उनके अनुभवों का लाभ उठा सके।

(सौजन्य: चरखा फीचर)

 

 

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