कनहर सिंचाई परियोजना के विस्थापितों की हृदय विदारक सचाइयों को देखकर लगता है जैसे ये लोग पचास साल लंबे किसी ऑपेरा के पात्र हैं जो करुणा, विषाद, हास्य, उम्मीद और हताशा के बीच जीने के अभिशाप को चित्रित कर रहे हैं और अभी आगे यह कितना लंबा खिंचेगा इसका कोई संकेत नहीं है।
क्या ये लोग सिर्फ खीर पीने और मनोरंजन करने आए हैं? खासतौर से इन दिनों जब लोगों को बदलती आर्थिक और राजनीतिक स्थितियों के कारण एक अंधेरा भविष्य दिख रहा है। जब संविधान खतरे में है। युवाओं की नौकरियाँ ही नहीं सामान्य आदमी का रोजगार भी खत्म किया जा रहा है।