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मनरेगा की अकथकथा : गाँवों में मशीनों से काम और भ्रष्ट स्थानीय तंत्र ने रोज़गार गारंटी का बंटाढार किया

मनरेगा की शुरुआत सौ दिन की मजदूरी के गारंटी के साथ हुई थी लेकिन बीस वर्ष भी नहीं बीते कि अब यह योजना मजदूर विरोधी गतिविधियों में तब्दील हो गई। गाँव में ज्यादातर काम मशीनों से कराया जा रहा है, जिसके बाद मस्टर रोल में नाम मजदूरों के चढ़ाए जा रहे हैं और उनसे अंगूठा लगवाकर मजदूरी प्रधान और रोजगार सेवक हड़प रहे हैं। इस तरह मजदूरों को काम से वंचित किया जा रहा है। हमने वाराणसी के कपसेठी ब्लाक के नवादा नट बस्ती में पता किया, जिसमें यह बात सामने आई कि वर्ष भर में मुश्किल से उन्हें 10 दिन ही काम मिलता है और मजदूरी आने में महीनों लग जाते हैं। इस तरह देखा जाए तो मजदूरों के लिए मनरेगा दु:स्वप्न बनकर रह गया है। नवादा नट बस्ती से लौटकर अपर्णा की रिपोर्ट

बनारस के किसान क्यों ‘काशी द्वार प्रोजेक्ट’ की वजह से अपनी जान दे रहे हैं?

वाराणसी में पिंडरा ब्लॉक में काशी द्वार परियोजना प्रस्तावित है, जिसका विरोध यहाँ के किसान कर रहे हैं।

वाराणसी : लकड़ी की कारीगरी का नया अंदाज़ है जोगई

उमेश जोगई ने बताया कि शिवाला में जो वर्कशॉप था वह भी जोगई के नाम से ही था लेकिन टैग लाइन थी–क्रिएटिविटी द मैटर और जब आज से चार माह पहले अपना वर्कशॉप और शोरूम यहाँ लेकर आये तो टैग लाइन बदली–इनोवेशन विद ट्रेडिशन, क्योंकि पुराने चीजों की ओर हम फिर लौटना चाहते हैं। प्लास्टिक के आ जाने से लकड़ी की चीजें विलुप्त हो गईं। यहाँ तक कि हाथ से झलने वाला लकड़ी का पंखा और रसोई में पानी भरने की गगरी तक प्लास्टिक की आ चुकी है।

दर-दर पानी के लिए भटकते ग्रामीण

राजातालाब के निवासी सत्यनारायण कन्नोजिया जेएनयू से पढ़े हुए हैं और नब्बे के दशक में अपने इलाके राजातालाब में पानी की सही आपूर्ति को...

यूपी चुनाव में बेरोज़गारी और पलायन का मुद्दा

https://www.youtube.com/watch?v=Qx1gjIGDe4M&t=10s   यूपी चुनाव में बेरोज़गारी और पलायन का मुद्दा जगन्नाथ कुशवाहा डॉ. ओमशंकर रामजी यादव

लगता हैं काशीनाथ जी ठाकुर नहीं अहीर हैं तभी यादव जी से इतनी दोस्ती है!

https://www.youtube.com/watch?v=LjDmFM1W3X0&t=9s प्रोफेसर चौथीराम यादव जब अपने जीवन के किस्से सुनाते हैं तो सुनते हुये भले ही हंसी आ जाती हो लेकिन उनके पीछे जो सच...

वाराणसी : गंगा के साथ हो रहे खिलवाड़ के खिलाफ खड़ा होना होगा

बनारस को निडर होकर गंगा के साथ हो रहे खिलवाड़ के खिलाफ खड़ा होना होगा और इस अभियान को रोजाना गतिविधियों और नयी सूझ के साथ जोड़ना होगा। बनारस सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों की ही नहीं, हमारी अंतर्राष्ट्रीयता की भी राजधानी है। साफ नदी जल और खोई हुई पहचान को वापस पाने के लिए हमें संघर्ष करना होगा।

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