बलात्कार जिस तरह पुरुषप्रधान व्यवस्था के वर्चस्व-संबंधों की पाशविक अभिव्यक्ति होती है, उसी तरह (महज़) बलात्कार का किया जाने वाला; बलात्कार की घटनाओं को नाटकीय बनाने वाला विरोध भी ‘उनकी’ महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के कारण ‘उनकी’ इज़्ज़त के ख़तरे में आने का कारण बन जाती है और फिर पुरुषप्रधान चर्चाओं की प्याली में तूफ़ान आ जाता है। इसके अंतर्गत महिलाओं पर होने वाले लैंगिक अत्याचारों की घटनाओं का ख़तरनाक तरीक़े से विरोध किया जाता है। ‘बलात्कारियों को तत्काल सरेआम फाँसी की सज़ा’ के केंद्रीय वक्तव्य के आसपास आज जो महिला सक्षमीकरण का चर्चा-विश्व निर्मित किया जा रहा है, वह महिलाओं के आत्मनिर्भर सामाजिक व्यवहार के लिए अनेक स्तरों पर ख़तरनाक साबित होता है।
लैंगिक असमानता झेलती किशोरियां और महिलाएं
गनीगांव (उत्तराखंड)। प्रत्येक बच्चे का अधिकार है कि उसे उसकी क्षमता के विकास का पूरा मौका मिले। लेकिन समाज...
जीविका से लोन लेकर समूह की महिलाएं बकरी पालन, सब्जी की खेती व व्यवसाय, छोटे-छोटे कारोबार कर रही हैं। इसके साथ ही वे सामाजिक परिवर्तन की वाहक भी बन रही हैं। जन्म-मृत्यु प्रमाण-पत्र, नशामुक्ति अभियान, महिला हिंसा, शुद्ध पेयजल, स्वच्छता-सफाई, बाल-विवाह, दहेज के लिए हिंसा जैसे मुद्दों पर जीविका दीदी बढ़-चढ़ कर भाग ले रही हैं।