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बिहार: ‘जीविका’ से गरीब महिलाओं को मिल रही आजीविका

जीविका से लोन लेकर समूह की महिलाएं बकरी पालन, सब्जी की खेती व व्यवसाय, छोटे-छोटे कारोबार कर रही हैं। इसके साथ ही वे सामाजिक परिवर्तन की वाहक भी बन रही हैं। जन्म-मृत्यु प्रमाण-पत्र, नशामुक्ति अभियान, महिला हिंसा, शुद्ध पेयजल, स्वच्छता-सफाई, बाल-विवाह, दहेज के लिए हिंसा जैसे मुद्दों पर जीविका दीदी बढ़-चढ़ कर भाग ले रही हैं।

मुजफ्फरपुर (बिहार)। तमाम सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों के बाद भी अपना देश निर्धनता के दंश से अभी तक नहीं उबर पाया है। गरीबी उन्मूलन जैसे सरकारी कार्यक्रम बस एक ख्याली नारा बनकर रह गए हैं। ग्रामीण भारत की एक बड़ी आबादी आज भी आर्थिक समस्याओं से जूझ रही है। भुखमरी, कुपोषण, अशिक्षा से अब भी हमारा देश पीड़ित है और इन सब समस्याओं से सबसे अधिक यदि कोई प्रभावित है, तो वह आधी आबादी व उनके बच्चे हैं। निर्धन परिवार का मुखिया आर्थिक उपार्जन करता है और शेष सदस्य उस पर निर्भर रहते हैं। किसी भी निम्न परिवार की तरक्की तभी संभव है, जब उस घर की महिलाएं भी आत्मनिर्भर व स्वावलंबी बने। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसी तस्वीरें अब तक बहुत अधिक नहीं बन पाई हैं।

महिला सशक्तीकरण की अवधारणा इन्हीं विचारों के बीच से पनपी हैं। महिलाएं सामाजिक रूप से सशक्त, आर्थिक रूप से स्वावलंबी बने, इसके लिए वीमेन एम्पावरमेंट मुहिम के साथ-साथ, लघु उद्योग के क्रियान्वयन पर जोर दिया गया है। इसमें माइक्रोफाइनेंस महिलाओं की जिंदगी में बदलाव का सशक्त हथियार बना है। समूह में शक्ति होती है, इस बात को साबित किया है स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) ने। महिला सशक्तीकरण की एक महत्वपूर्ण मुहिम है एसएचजी। स्वयं सहायता समूह का अर्थ है स्वयं की सहायता के लिए गठित समूह। दुनिया के कई देशों के साथ ही भारत में भी एसएचजी के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इस मुहिम में सरकारी तंत्र के साथ-साथ एनजीओ की भी भागीदारी अहम होती है। बिहार, कई कारणों से विभिन्न क्षेत्रों में आज भी पिछड़ा हुआ है। बिहार बंटवारे के बाद प्राकृतिक संसाधन, कोयला खदान, खनिज संपदा सब झारखंड के हिस्से में चले गए। ऊपर से बाढ़-सुखाड़ जैसे प्राकृतिक प्रकोप की वजह से बिहार बार-बार उठने की कोशिश करता है, पर उसे फिसलना पड़ता है। इसका सर्वाधिक असर राज्य के ग्रामीण जनजीवन पर पड़ता है।

बैठक में चर्चा करते लोग

ऐसे में जीविका कार्यक्रम एक ऐसी योजना है, जो बीमारू बिहार के अत्यंत निर्धन परिवार की ग्रामीण महिलाओं को स्वयं सहायता समूह व लघु उद्योग से जोड़कर एवं सूक्ष्म ऋण मुहैया कराकर उन्हें आर्थिक व सामाजिक रूप से मजबूत बनाता है। गायत्री देवी का निर्धन परिवार कल तक एक-एक पैसे के लिए मोहताज रहता था, लेकिन जब से वह पार्वती जीविका समूह से जुड़ी हैं, उनके हाथों में भी पैसे आने लगे हैं। गायत्री बिहार के प्रमुख शहर मुजफ्फरपुर जिला स्थित मुसहरी प्रखंडन्तर्गत राजवाड़ा भगवान की रहनेवाली हैं। गायत्री बताती हैं कि पहले हमें खाने-पीने, खेती-पथारी में बहुत दिक्कत होती थी, लेकिन जब से जीविका से जुड़ी हूं तब से मेरी स्थिति सुधर रही है। खेती-बाड़ी के लिए जीविका से मामूली दर पर लोन मिल जाता है। शादी-ब्याह के समय भी जीविका समूह से आर्थिक सहयोग मिल जाता है। पहले महाजन को 5-6 रुपये प्रति सैकड़ा सूद देना पड़ता था। जब पहली बार समूह से जुड़ने के लिए घर से निकली थी, तो पति ने मना किया था। अब तो मैं बैंक, थाना सभी जगह जाकर बोलती हूं। अब तो समूह की महिलाओं ने दारू की कई भट्ठियों को भी बंद करवाया है। गायत्री आज एसएचजी से प्रोमोट होकर ग्राम-संगठन से जुड़ गयी हैं, जिसके अंतर्गत कई समूह होते हैं।

गायत्री की तरह मुसहरी ब्लॉक की दर्जन महिलाएं सूरज जीविका ग्राम संगठन के कार्यालय परिसर में हर महीने बैठक कर बचत, लोन, स्वरोजगार आदि मुद्दों पर चर्चा करती हैं। चमेली जीविका समूह की ऊषा देवी, फूल जीविका समूह की इंदिरा देवी, धरती जीविका समूह की चंदा देवी जैसी जिले की सैकड़ों निम्न निर्धन महिलाएं खुद को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बना ही रही हैं। जीविका से लोन लेकर समूह की महिलाएं बकरी पालन, सब्जी की खेती व व्यवसाय, छोटे-छोटे कारोबार कर रही हैं। इसके साथ ही वे सामाजिक परिवर्तन की वाहक भी बन रही हैं। जन्म-मृत्यु प्रमाण-पत्र, नशामुक्ति अभियान, महिला हिंसा, शुद्ध पेयजल, स्वच्छता-सफाई, बाल-विवाह, दहेज के लिए हिंसा जैसे मुद्दों पर जीविका दीदी बढ़-चढ़ कर भाग ले रही हैं।

दरअसल, राज्य में ग्रामीण गरीबी उन्मूलन की दिशा में बिहार जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति (जीविका) एक सशक्त व प्रभावी कार्यक्रम के रूप में सूबे की ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी में बदलाव लाने का माध्यम बन रही है। बिहार सरकार आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े ऐसे ही परिवारों को संबल देने के उद्देश्य से ‘जीविका’ कार्यक्रम चला रही है। बिहार सरकार के मंत्रिमंडल ने 26 अप्रैल, 2018 को सतत जीविकोपार्जन योजना को मंजूरी दी थी, जिसे मुख्यमंत्री ने औपचारिक रूप से 5 अगस्त, 2018 को एसजेवाई योजना की शुरुआत की थी। शुरू के तीन वर्षों के लिए 840 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे। इस योजना के अंतर्गत देसी शराब एवं ताड़ी के उत्पादन तथा बिक्री में पारंपरिक रूप से जुड़े परिवार, अनुसूचित जाति-जनजाति एवं अन्य समुदाय के लक्षित अत्यंत निर्धन परिवारों का चयन कर उनका क्षमतावर्द्धन, आजीविका संवर्धन एवं वित्तीय सहायता के माध्यम से आर्थिक व सामाजिक सशक्तीकरण करना लक्ष्य रखा गया है। अत्यंत निर्धन परिवार का अर्थ है जिनका संसाधनों तक पहुंच न हो, जिनके पास आय का कोई नियमित स्त्रोत व सुरक्षा जाल उपलब्ध न हो, जो सामाजिक बहिष्कार झेलते रहे हों एवं जिनमें जागरूकता व ज्ञान की कमी हो।

जीविका से अब बदल रही है गांव की दशा

ऐसा ही अत्यंत निर्धन परिवार एसजेवाई के तहत जीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़कर अपनी आजीविका के साधन जुटाता है। 10 से 15 महिला सदस्य मिलकर जीविका कार्यक्रम के तहत एसएचजी का गठन करती हैं। 8 से 20 एसएचजी मिलकर ग्राम संगठन एवं 20 से 45 ग्राम संगठन का समूह संकुल संघ कहलाता है। यह योजना राज्य के सभी 38 जिलों के सभी 534 प्रखंडों में चल रही है। राज्य सरकार ने विश्व बैंक के सहयोग से 2007 में जीविका का गठन कर परियोजना की शुरुआत की थी। जीविका समूह-संगठन के माध्यम से ग्रामीण अत्यंत निर्धन परिवार की महिलाओं को आर्थिक उपार्जन का साधन तो उपलब्ध करवाती ही है, साथ ही, उनमें वित्तीय लेनदेन, लघु ऋण एवं लेखा प्रबंधन का हुनर भी सिखाती है। सामाजिक मुद्दों की समझ पैदा करना एवं सामाजिक बुराइयों से लड़ना भी इस कार्यक्रम का एक लक्ष्य है। इन महिलाओं को स्वरोजगार व बैंकिंग क्रिया-कलापों से जोड़ना एवं सामाजिक उत्थान के कार्यक्रमों से जोड़कर उन्हें सम्मान की जिंदगी जीने की दिशा में भी जीविका कारगर सिद्ध हो रही है। वर्तमान में बिहार में लगभग 1.30 करोड़ से ज्यादा जीविका दीदी हैं। राज्य के मुख्यमंत्री भी इनके काम से खुश हैं और इनकी संख्या को बढ़ाना चाहते हैं ताकि इनकी अच्छी आमदनी हो सके।

दिसंबर के प्रथम सप्ताह में मुजफ्फरपुर के बेला स्थित औद्योगिक क्षेत्र में बैग कलस्टर के प्रथम फेज का उद्घाटन किया गया था। मेगा बैग कलस्टर के तहत प्रथम फेज में 10 महिला उद्यमियों को लेकर यूनिट की शुरुआत की गयी थी। इस कलस्टर से एक साथ 264 दीदियों को जोड़ा गया है। मुजफ्फरपुर बैग क्लस्टर विकास का एक नया मॉडल है। मुख्य सचिव आमिर सुबहानी के अनुसार इस मॉडल से जीविका की दीदियों को मजबूती मिलेगी। स्वास्थ्य विभाग ने भी जीविका दीदियों को मजबूती प्रदान करने के लिए उनके माध्यम से विभिन्न अस्पतालों में ‘दीदी की रसोई’ शुरू की है। भोजन बनाने से लेकर मरीजों को थाली परोसने तक की जिम्मेवारी जीविका दीदियों को सौंपी गयी है, जिसे वे बखूबी निभा रही हैं। इस तरह एसएचजी से जुड़ी महिलाओं को नियमित काम मिल रहा है।

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मुख्य सचिव ने कहा कि वह अन्य विभागों को भी कहेंगे कि जीविका के माध्यम से कुछ कार्यक्रमों का संचालन करें। बैग के बायोप्रोडक्ट्स निर्माण के लिए भी जीविका दीदियों को लोन मुहैया कराया जाएगा, ताकि वे आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में आगे बढ़ सकें। उद्योग विभाग के प्रधान सचिव संदीप पौंड्रिक ने बताया कि इस बैग कलस्टर यूनिट से कम से कम ढाई से तीन हजार जीविका दीदियों को रोजगार मिलने की संभावना है। फिलहाल, जीविका दीदियों ने महिला उद्यमियों के साथ मिलकर स्टार्टअप के तहत 10 यूनिट की शुरुआत की है। आगे करीब ऐसे 39 यूनिट शुरू करने को लेकर पूरी टीम लगी हुई है। मुजफ्फरपुर की डीपीएम अनिशा ने बताया कि बैग कलस्टर में फिलहाल 10 यूनिट में कुल 160 जीविका दीदी काम कर रही हैं। उन्होंने बताया कि इन जीविका दीदियों के छोटे-छोटे बच्चों के लिए पालना घर भी तैयार किया जा रहा है।

निःसंदेह, यह राज्य सरकार की एक अच्छी योजना है। सरकार और उसके विभिन्न विभाग एवं ग्रामीण बैंक-सहकारी बैंक आदि जीविका के जरिए बदलाव लाने में अहम सहभागी हैं, लेकिन इसमें लोन की सीमा कम होने के कारण निर्धन महिलाएं बड़ा कारोबार नहीं कर पाती हैं। जिसे दूर करने की आवश्यकता है। बहरहाल, एसएचजी ने ग्रामीण क्षेत्रों की निर्धन महिलाओं में आत्मविश्वास व सम्मान का भाव जगाया है। उन्हें स्वावलंबी व सशक्त बनाया है। इसने महिलाओं के लिए आजीविका के साधन उपलब्ध कराकर सकारात्मक बदलाव की दिशा में अहम कदम बढ़ाया है।

 

 

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