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बिहार में योजनाओं से बदल रही है महिलाओं की ज़िंदगी

देश भर में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए केंद्र से लेकर सभी राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर विभिन्न योजनाएं संचालित कर रही हैं। महिला आरक्षण से संबंधित विधेयक का सर्वसम्मति से संसद से पारित होना इस बात का सबूत है कि इस मुद्दे पर देश की सभी राजनीतिक दल पार्टी लाइन से ऊपर उठ […]

देश भर में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए केंद्र से लेकर सभी राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर विभिन्न योजनाएं संचालित कर रही हैं। महिला आरक्षण से संबंधित विधेयक का सर्वसम्मति से संसद से पारित होना इस बात का सबूत है कि इस मुद्दे पर देश की सभी राजनीतिक दल पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर एकमत हैं। महिला सशक्तीकरण की दिशा में बिहार का काम सभी राज्यों के लिए एक नजीर बन रहा है। पिछले दो दशकों में बिहार की आधी आबादी की जिंदगी में जो असाधारण बदलाव आए हैं, वे काबिले-तारीफ हैं।

बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने से लेकर त्रिस्तरीय पंचायतीराज संस्थाओं एवं नौकरियों में महिलाओं को 33 फीसदी से लेकर 50 फीसदी तक आरक्षण देकर आधी आबादी को राष्ट्र-निर्माण में भागीदार बनाने की नीतीश सरकार की पहल उल्लेखनीय है। सरकार की इस पहल का नतीजा है कि आज घर की दहलीज में कैद रहने वाली किशोरियां और महिलाएं बाहर निकल कर विभिन्न सरकारी कार्यालयों, गैर सरकारी संगठनों, पंचायती राज संस्थाओं में बखूबी कामकाज संभाल रही हैं। स्कूलों से लेकर कॉलेजों में लड़कियों की अच्छी-खासी संख्या यह दर्शाती है कि राज्य में महिला साक्षरता का दर बढ़ रहा है और यह सब निःसंदेह सरकारी पहल एवं कई योजनाओं के संचालन से ही संभव हुआ है।

मुख्यमंत्री साइकिल एवं पोशाक योजना की जब शुरुआत हुई थी, तब बिहार सरकार की इस पहल की देश-विदेश की मीडिया में खूब चर्चा हुई थी। इस पर कई संस्थानों द्वारा शोध कार्य भी किये गए। कल तक जिस सरकारी स्कूल का कैंपस छात्र-छात्राओं से वीरान रहता था, वह अचानक से गुलजार रहने लगा है। जिन ग्रामीण क्षेत्रों और समुदायों में बालिका शिक्षा के प्रति कोई रुचि नहीं थी, वही क्षेत्र और समुदाय आज उत्साह के साथ अपनी लड़कियों को स्कूल से लेकर कॉलेज तक भेज रहा है। तमाम तरह के नारों और वायदों के बाद भी आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े जिन समुदायों में बालिका शिक्षा का ग्राफ नीचे की ओर जा रहा था, आज वहां परिस्थिति बिल्कुल बदल चुकी है।

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नये-नये पोशाक एवं नयी साइकिल पर सवार होकर दर्जनों लड़कियां जब एक साथ गांव की पगडंडियों व टूटी-फूटी कच्ची सड़कों से स्कूल के लिए निकलती हैं, तो नजारा देखने लायक होता है। इस योजना ने सुदूर ग्रामीण इलाके में रहने वाली किशोरियों के सपने को जैसे पंख लगा दी है। नयी-नयी साइकिल स्कूल-ट्यूशन जाने का माध्यम तो बनी ही, यह घर के कामकाज जैसे- मवेशियों का चारा काट कर लाना, गेहूं-मक्के की बोरी को मिल तक पहुंचाने में भी मददगार साबित हुईं है।

मुख्यमंत्री कन्या साइकिल योजना के लागू होने के बाद पहली बार इसका लाभ उठाने वाली अनेकों छात्राएं पढ़-लिख कर सशक्त हो चुकी हैं। उनमें से कुछ आज बिहार पुलिस में नौकरी भी कर रही हैं, तो कई सरकारी स्कूलों की शिक्षिकाएं बन गयी हैं। आधी आबादी की जिंदगी में यह बदलाव न केवल महिला सशक्तिकरण की बेहतरीन मिसाल है बल्कि यह अन्य राज्यों के लिए भी नज़ीर बन चुका है।  बेटी को सशक्त देख कर आज ग्रामीण क्षेत्रों के मां-बाप में भी आत्मविश्वास जगा है। उन्हें पहली बार एहसास हुआ है कि बेटी बोझ नहीं सच में लक्ष्मी होती है।  आज घर-घर में बेटियां लाडली बन चुकी है। इन योजनाओं ने माता-पिता के उस सोच को भी बदल दिया है जहां वह लड़की की शिक्षा पर पैसा खर्च करने से अधिक उसके दहेज़ का इंतज़ाम करने के फिक्र में रहते थे।

महिला सशक्तिकरण की दिशा में साइकिल-पोशाक योजना तो एक शुरुआत भर थी। आज बिहार में ऐसी कई योजनाएं चल रही हैं, जो महिलाओं के सर्वांगीण विकास व उनके उत्थान में अहम भूमिका निभा रही हैं। त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण देकर सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाया था। इस आरक्षण के प्रावधान की बदौलत वंचित समुदाय की महिलाओं के हाथ में भी जब कमान आयी, तो पुरुष वर्चस्व को एक चुनौती मिली।

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बिहार देश का पहला राज्य बना, जिसने पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण दिया है। इसी तरह पुलिस बल में भी महिलाओं को सरकार ने 35 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया है। इसका असर यह हुआ कि ऐसे-ऐसे परिवार की बेटियां कांस्टेबल बनीं, जिनके घर कच्चे फूस के बने हुए थे। इसी आरक्षण के कारण 2022 में बिहार पुलिस बल में महिलाओं का प्रतिशत 21.21 हो गया, जो 2013 में मात्र 3.4 फीसदी था।

बिहार लोक सेवा आयोग के माध्यम से सातवें चरण की हो रही शिक्षक भर्ती परीक्षा में भी कक्षा पहली से लेकर कक्षा आठ तक के शिक्षकों की नियुक्ति में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है, साथ ही माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालयों में महिला अभ्यर्थी के लिए 35 फीसदी सीटें आरक्षित की गयी हैं। महिलाओं के लिए आरक्षण का ऐसा ऐतिहासिक प्रावधान करने वाला बिहार शायद देश का पहला राज्य है। इसका ज़मीनी स्तर पर फल भी दिख रहा है। आज हर स्कूल में, सरकारी कार्यालयों में, हर थाने में महिलाओं की उपस्थिति दिख जाती है।

दरअसल बिहार सरकार ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में योजनाओं की बाढ़ ला दी है। मुख्यमंत्री महिला उद्यमी योजना, मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना, मुख्यमंत्री बालिका प्रोत्साहन योजना, सिविल सेवा प्रोत्साहन योजना, आरक्षित रोजगार महिलाओं का अधिकार, जननी बाल सुरक्षा योजना, मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना, जीविका योजना समेत ऐसी अनगिनत योजनाएं हैं जो महिलाओं की बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार एवं उनके सशक्तिकरण के लिए चलायी जा रही हैं। इन योजनाओं ने बिहार के शहरी इलाकों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक की महिलाओं की ज़िंदगी को बदल दिया है।

(सौजन्य से चरखा फीचर) 

रिंकू कुमारी मुजफ्फरपुर, बिहार की  सामाजिक कार्यकर्ता हैं। 

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