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गर्भसमापन के दौरान महिलाओं का रखें विशेष ख्याल

वाराणसी। ‘अंतरराष्ट्रीय सुरक्षित गर्भ समापन दिवस’ के अवसर पर आराजी लाइन वाराणसी में कार्यशाला का आयोजन हुआ। एशियन ब्रिज इंडिया के तत्वावधान में ‘क्रिया’ दिल्ली के सहयोग से कार्यक्रम का आयोजन दोपहर 12 से 3 बजे तक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, आराजी लाइन में आयोजित किया गया। ब्लॉक परियोजन अधिकारी ने कहा कि गर्भ धारण करने, […]

वाराणसी। ‘अंतरराष्ट्रीय सुरक्षित गर्भ समापन दिवस’ के अवसर पर आराजी लाइन वाराणसी में कार्यशाला का आयोजन हुआ। एशियन ब्रिज इंडिया के तत्वावधान में ‘क्रिया’ दिल्ली के सहयोग से कार्यक्रम का आयोजन दोपहर 12 से 3 बजे तक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, आराजी लाइन में आयोजित किया गया।

ब्लॉक परियोजन अधिकारी ने कहा कि गर्भ धारण करने, संतति को जन्म देने, उसे पालने और बड़ा करने में पोषण के विस्तृत आयाम पर तैयारी की जरूरत होती है। इनमें कई स्तर पर मानसिक, शारीरिक, पारिवारिक कारक प्रभाव डालते हैं। परिवार की आर्थिक, सामाजिक दशा से प्रभाव पड़ता है। उपरोक्त में से किसी भी स्तर पर कोई बाधा या परेशानी महसूस होने पर गर्भ के समापन का विकल्प प्रयोग में लेना समझदारी की निशानी है।

महिलाओं को किसी भी जबरदस्ती या हिंसा से मुक्त होकर इस संबंध में निर्णय लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।

कंचन (कम्यूनिटी हेल्थ ऑफिसर) ने कहा कि जच्चा असंतुलित मानसिक स्थिति में या खराब शारीरिक हालात में यदि बच्चे को जन्म देती है तो बच्चे के कुल क्षमता, शारीरिक और मानसिक योग्यता पर दुष्प्रभाव पड़ने का अंदेशा रहता है।

गर्भसमापन जिसे हम स्थानीय भाषा में बच्चा गिराना कहते हैं, को लेकर समाज मे कई तरह के मिथक हैं। हमे रूढ़ियों से बचने की जरूरत है। किसी निर्णय पर पहुँचने से पहले हमें गर्भ धारण करने वाली महिला और जन्म लेने वाले बच्चे दोनों के भले-बुरे का ख्याल रखना चाहिए।

महिला डॉक्टर अनामिका ने बताया कि MTP ( मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम संशोधित 2021) के तहत गर्भसमापन के मामले में कई जरूरी बदलाव किए गए हैं। एमटीपी से जुड़े प्रावधानों को विस्तार से बताया गया।

अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षित गर्भ समापन दिवस की कार्यशाला में जानकारी देते हुए

  1. 20 सप्ताह से कम के गर्भकाल गर्भवती की सहमति या यदि अल्पवयस्क या ‘मानसिक रूप से बीमार’ महिला का मामला है तो उनके अभिभावक की सहमति और एक पंजिकृत चिकित्सक की सलाह से किया जा सकता है।
  2. 20 से 24 सप्ताह के गर्भकाल गर्भवती की सहमति या यदि अल्पवयस्क या ‘मानसिक रूप से बीमार’ महिला का मामला है तो उनके अभिभावक की सहमति से दो पंजिकृत चिकित्सकों के सलाह से करवाया जाना वैध है।
  3. 24 सप्ताह से अधिक केगर्भकाल गर्भवती की सहमति या यदि अल्पवयस्क या ‘मानसिक रूप से बीमार’ महिला का मामला है तो उनके अभिभावक की सहमति और मडिकल बोर्ड की संस्तुति से किया जाना वैध है।

कार्यकर्ता सरिता ने कहा कि प्रजनन अधिकारों का पैमाना केवल महिलाओं के बच्चा पैदा करने या न करने के हक तक सीमित नहीं है। महिला को उसके यौन और प्रजनन स्वास्थ्य से संबंधित सभी मामलों पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का हक़ होना चाहिए। इस बिंदु के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाना आज के कार्यशाला का एक प्रमुख हिस्सा है।

नीति (एशियन ब्रिज इंडिया) ने बताया कि प्रजनन अधिकारों में गर्भनिरोधन और यौन स्वास्थ्य के बारे में शिक्षा और जानकारी प्राप्त करने का हक, यौन निर्णय करने का हक, कि कौन से प्रकार के गर्भनिरोधक प्रयोग करने हैं, बच्चे कब और कितने पैदा करते हैं, सुरक्षित और कानूनी गर्भ समापन का हक और प्रजनन स्वास्थ्य का हक़, में उपरोक्त सब कुछ शामिल है।

पिछड़े दलित, मुस्लिम और अल्पसंख्यक समुदाय के अन्य लोग, अविवहित, विकलांग और सेक्स वर्कर आदि लोगों को गर्भ समापन की सुविधाओं तक पहुँचने में जो दिक्क़तें आ रहीं हैं, इसके विषय मे प्रतिभागियों से संवाद किया गया। स्वास्थ्यकर्मियों, पेशेवरों को और संवेदनशील व धैर्य से काम करने की जरूरत समझी गयी।

कार्यशाला के समापन में शिवांगी ने उपरोक्त सूचनाप्रद जानकारियों के साथ गर्भ समापन के मामलों में पहले से अधिक संवेदनशील होकर कोशिशों में जुटने का संकल्प दिलवाया। पिछड़े दलित और अन्य वंचित समुदाय की महिलाओं तक रूढ़ियों] मिथकों को वैज्ञानिक समझ भागीदारी और सहिष्णुता के साथ बातचीत के माध्यम तलाशते हुए काम करने का ‘प्लान ऑफ ऐक्शन’ बनाया गया।

कार्यशाला में प्रमुख रुप से बृज मोहन (BPM), महिला डॉ. अनामिका, 2 CHO, 25 आशा, 3 एएनएम और 3 संगिनीयों के अतिरिक्त साहिल, अनुज, किरन, सरिता आदि सक्रिय रूप से मौजूद रहे।

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