Sunday, October 12, 2025
Sunday, October 12, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमपर्यावरणपर्यावरण के लिए समर्पित राजस्थान का नाथवाना गांव

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

पर्यावरण के लिए समर्पित राजस्थान का नाथवाना गांव

नाथवाना गांव के लोग केवल पेड़ लगाते ही नहीं, बल्कि उनकी रक्षा भी करते हैं। अक्सर देखने को मिलता है कि गांव के बच्चे स्कूल जाते समय रास्ते में लगे पौधों को पानी देते हैं। खेतों से लौटती महिलाएं पौधों को अपने मटके से दो-चार लोटा पानी जरूर डालती हैं। यहां तक कि शादी-ब्याह और धार्मिक आयोजनों में भी पौधे लगाने की परंपरा बन चुकी है। यह मानवीय पहलू इस गांव की सबसे बड़ी ताकत है, जिसने वृक्षों और इंसानों के बीच एक आत्मीय रिश्ता बना दिया

राजस्थान का बीकानेर जिला अपने शुष्क और रेगिस्तानी भूभाग के लिए जाना जाता है। यहां की कठिन जलवायु, कम बारिश और घटते भूजल स्तर के बीच जीवन को संभालना आसान नहीं है। लूणकरणसर ब्लॉक का नाथवाना गांव इन सब चुनौतियों के बीच एक अनोखी पहचान बना रहा है। यह गांव पर्यावरण संरक्षण और पेड़-पौधों को संवारने की दिशा में उल्लेखनीय प्रयास कर रहा है। यहां के लोग मानते हैं कि उनका जीवन और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य पेड़ों से ही जुड़ा है। यही कारण है कि वे अपने आसपास पौधे लगाते हैं और उन्हें बच्चों की तरह संवारते हैं।

नाथवाना गांव की गलियों और खेतों में खेजड़ी, नीम, शीशम और बबूल जैसे पेड़ नजर आते हैं। खेतों की मेड़ों पर लगाए गए ये पेड़ न केवल मिट्टी को बांधकर रखते हैं, बल्कि खेतों में नमी बनाए रखने का काम भी करते हैं। गांव के लोग जानते हैं कि पेड़-पौधों का होना सिर्फ हरियाली का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह उनके जीवन का आधार है। गर्मी के मौसम में जब तापमान 45 डिग्री से ऊपर चला जाता है, तब पेड़ों की छांव ही उन्हें राहत देती है। महिलाएं अक्सर अपने घरों के आंगन में तुलसी और नीम के पौधे लगाती हैं और उनकी देखभाल आस्था और परंपरा से जोड़कर करती हैं।

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले रेगिस्तान में पौधे लगाना आसान नहीं माना जाता था। पानी की कमी और तेज हवाओं के कारण पौधे लंबे समय तक टिक नहीं पाते थे। लेकिन अब नाथवाना के लोग सामूहिक रूप से काम कर रहे हैं। वे बारिश के मौसम में सामूहिक वृक्षारोपण अभियान चलाते हैं। गांव की महिलाएं मिट्टी और पानी का प्रबंध करती हैं, बच्चे पौधे लगाते हैं और बुजुर्ग उनकी देखरेख का जिम्मा उठाते हैं। यह सामूहिकता इस बात का प्रमाण है कि जब समाज एकजुट होकर काम करता है तो कठिनाइयों के बावजूद सफलता मिल सकती है।

यह भी पढ़ें –बौद्धिक गुलामी को रेखांकित करने वाले विचारक थे किशन पटनायक

बीकानेर जिले में वन क्षेत्र कुल क्षेत्रफल का मात्र 1.7 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत लगभग 21 प्रतिशत है। ऐसे में नाथवाना गांव का वृक्षारोपण अभियान बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। पिछले पांच वर्षों में यहां के ग्रामीणों ने पंचायत और व्यक्तिगत स्तर पर मिलकर लगभग तीन हजार पौधे लगाए हैं, जिनमें से 65 प्रतिशत पौधे आज भी जीवित हैं। यह आंकड़ा अपने आप में बहुत मायने रखता है क्योंकि मरुस्थलीय क्षेत्रों में पौधों का जीवित रहना बड़ी चुनौती होती है।

नाथवाना गांव के लोग केवल पेड़ लगाते ही नहीं, बल्कि उनकी रक्षा भी करते हैं। अक्सर देखने को मिलता है कि गांव के बच्चे स्कूल जाते समय रास्ते में लगे पौधों को पानी देते हैं। खेतों से लौटती महिलाएं पौधों को अपने मटके से दो-चार लोटा पानी जरूर डालती हैं। यहां तक कि शादी-ब्याह और धार्मिक आयोजनों में भी पौधे लगाने की परंपरा बन चुकी है। यह मानवीय पहलू इस गांव की सबसे बड़ी ताकत है, जिसने वृक्षों और इंसानों के बीच एक आत्मीय रिश्ता बना दिया है।

पर्यावरण संरक्षण की इस जागरूकता के बावजूद नाथवाना गांव शिक्षा, विशेषकर बालिका शिक्षा के मामले में पीछे है। गांव में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर तक सरकारी स्कूल हैं, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए बच्चों को दूर जाना पड़ता है। लड़कियों के लिए यह और भी मुश्किल हो जाता है। कई परिवार आर्थिक तंगी और सामाजिक परंपराओं के कारण लड़कियों की पढ़ाई को बोझ मानते हैं। यही वजह है कि गांव में कम उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती है।

गांव की साक्षरता दर लगभग 62 प्रतिशत है, जिसमें पुरुषों की साक्षरता 72 प्रतिशत है जबकि महिलाओं की साक्षरता केवल 52 प्रतिशत तक सीमित है। बालिका शिक्षा का नामांकन दर 55 प्रतिशत है, लेकिन माध्यमिक स्तर तक पहुंचते-पहुंचते यह घटकर केवल 30 प्रतिशत रह जाती है। लगभग 40 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल से पहले कर दी जाती है। यह आंकड़े बताते हैं कि जहां गांव पर्यावरण के प्रति जागरूक है, वहीं शिक्षा और विशेषकर बालिका शिक्षा को लेकर अभी लंबा सफर तय करना बाकी है।

यह भी पढ़ें –भारतीय संविधान और सामाजिक न्याय : एक सिंहावलोकन

गांव की 14 वर्षीय रेखा (काल्पनिक नाम) रोज़ सुबह अपने घर के सामने लगे नीम के पेड़ को पानी देती है। उसके अनुसार यह पेड़ उसका दोस्त है, जिसके नीचे बैठकर वह पढ़ाई करती है। लेकिन अगले साल उसकी शादी तय कर दी गई है। उसकी किताबें अधूरी रह जाएंगी, मगर जिस पेड़ को वह रोज़ संवारती है, वह आने वाले वर्षों तक गांव के बच्चों को छांव देता रहेगा। यह कहानी केवल रेखा की नहीं है, बल्कि नाथवाना गांव की कई लड़कियों की है, जिनके सपने कम उम्र में ही सामाजिक बंधनों के कारण टूट जाते हैं।

इस समय नाथवाना गांव की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि पर्यावरण जागरूकता और शैक्षिक विकास में संतुलन कैसे बनाया जाए? ग्रामीणों का मानना है कि यदि लड़कियां शिक्षित होंगी, तो वे न केवल अपने जीवन को बेहतर बना पाएंगी, बल्कि पेड़-पौधों और पर्यावरण की इस परंपरा को भी नई दिशा देंगी। पंचायत बैठकों में अब यह चर्चा होने लगी है कि हर पौधे की जिम्मेदारी बच्चों को दी जाए और इसके बदले उन्हें स्कूल में प्रोत्साहन मिले। इस तरह शिक्षा और पर्यावरण दोनों को एक साथ आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा सकता है।

नाथवाना गांव की कहानी यह संदेश देती है कि कठिन परिस्थितियों और सीमित संसाधनों के बावजूद यदि समाज में जागरूकता और सामूहिक प्रयास हों, तो बदलाव संभव है। यह गांव पर्यावरण के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रहा है, लेकिन शिक्षा, विशेषकर बालिका शिक्षा, के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। पेड़-पौधे और शिक्षा दोनों ही जीवन की जड़ों को मजबूत करते हैं। यदि नाथवाना गांव की लड़कियां भी पेड़ों की तरह बढ़ें, खिलें और छांव दें, तो यह गांव वास्तव में विकास की नई मिसाल बनेगा।

नाथवाना गांव हमें यह सिखाता है कि पेड़ केवल पर्यावरण को नहीं बचाते, बल्कि समाज में उम्मीद, जीवन और भविष्य को भी संवारते हैं। जैसे-जैसे गांव के लोग पौधों को अपनी संस्कृति और परंपरा का हिस्सा बना रहे हैं, वैसे-वैसे यह संभावना बढ़ रही है कि एक दिन यह गांव शिक्षा और पर्यावरण दोनों ही क्षेत्रों में प्रदेश के लिए आदर्श उदाहरण बनेगा।

 

माया
माया
लेखिका लूणकरणसर, राजस्थान में रहती हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Bollywood Lifestyle and Entertainment